RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
राजन का घर।
राजन को उसे पनाह देनी ही होगी, चाहे इस काम के लिए उसे अपने बाप को भी राजदार क्यों न बनाना पड़े।
लाल किला उतरने के स्थान पर वह आटो वाले को दरीबे से आगे तक ले गया। वहां उसने आटो वाले को भाड़ा चुका कर विदा किया और स्वयं चारहाट की गली में घुस गया।
तब पहली बार एक बड़ा अप्रिय खयाल उसके मन में आया।
अगर ऐसा अप्रत्याशित हंगामा उसके साथ हो सकता था तो ऐसा कुछ राजन के साथ भी तो हो सकता था!
क्या पता वह पहले ही पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका हो और पुलिसिये उसके घर की निगरानी कर रहो हों!
लेकिन उस खयाल से राजन के घर की आरे बढ़ते उसके कदम न ठिठके।
आखिर कहीं तो उसने जाना ही था।
गिरफ्तारी का खतरा तो हर जगह था।
और जगहों के मुकाबले में वह खतरा वहां फिर भी कम था।
शनिवार : शाम
अपनी निगाह में जो वाकचातुर्य कौशल ने पुलिस के सामने दिखाया था, उससे वह बहुत खुश था। वह खुश था कि वह पुलिस को पूरी तरह विश्वास दिला चुका था कि पायल के कत्ल या आसिफ अली रोड वाली चोरी से उसका कोई रिश्ता नहीं था।
लेकिन भविष्य की चिन्ता उसे अभी भी सता रही थी।
आगे क्या करेगा वह?
दिल्ली शहर में रहना भी उसे अब अच्छा नहीं लग रहा था। यहां तो पुलिस जब चाहती उसे दोबारा तलब कर सकती थी। उसके यहां न रहने पर कम-से-कम यह झंझट तो खतम हो सकता था।
एक तो वैसे ही नाकामयाबी की कालिख मुंह पर पोते वह हिसार नहीं जाना चाहता था, ऊपर से पुलिस को उसका वहां का पता मालूम था जिसकी वजह से वह जब चाहती हिसार पुलिस की सहायता से उसे वापिस दिल्ली तलब कर सकती थी।
पिछले रोज वह अखाड़े गया था। वहां बातों-बातों में उसके एक दोस्त ने उसे बताया था कि मुम्बई का एक फिल्म यूनिट शूटिंग के लिए दिल्ली आया हुआ था जिन्हें अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए कुछ स्टण्टमैनों की जरूरत थी। सौ रुपये दिहाड़ी जमा लंच का काम था और काम पसन्द किया जाने पर मुम्बई ले जाए जाने की भी सम्भावनायें थीं।
उस वक्त वह पहाड़गंज से, जहां की एक निहायत मामूली लॉज में एक गुसलखाने जितने बड़े कमरे में वह उन दिनों रह रहा था, पैदल ही बाराटूटी की तरफ जा रहा था जहां कि उसका वह पहलवान दोस्त रहता था जो कि उसे फिल्म में स्टण्टमैन का काम दिलवा सकता था।
उसे नहीं मालूम था कि उसका पीछा किया जा रहा था।
उसे नहीं मालूम था कि वह एक नहीं ,दो-दो पार्टियों की निगाहों में था।
उसके पीछे पुलिसिये भी लगे हुए थे और दारा के आदमी भी।
पुलिसिये कौशल के पीछे लगे हुए थे और पुलिसियों के पीछे दारा के आदमी लगे हुए थे। दारा के आदमियों के लिए वह काम बहुत सहूलियत का था। पुलिसिये कौशल को अपनी निगाहों से ओझल न होने देने में इस कदर लीन थे कि उन्हें यह सोचने की फुरसत ही नहीं थी कि कोई उनके पीछे भी लगा हो सकता था। आखिर लगा तो चोर बदमाशों के पीछे जाता था—जैसे कि वे कौशल के पीछे लगे हुए थे—पुलिसियों के पीछे थोड़े ही लगा जाता था।
उस काम को दारा के चार आदमी कर रहे थे। उन चारों में एक बाकियों का सरगना था, जिसका नाम रईस अहमद था। रईस अहमद दारा का दायां हाथ माना जाता था। रईस अहमद को दारा के किसी अंजाम की फिक्र हो, ऐसी बात नहीं थी। उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद अगर वह जेल की सजा पा जाता था या फांसी चढ़ जाता था तो कम-से-कम वह दारा के लिए सिर धुनने वाला नहीं था क्योंकि दारा के न रहने पर दारा की जगह जिस आदमी ने लेनी थी वह रईस अहमद खुद था। वह दारा के लिए वफादार न हो, यह बात भी नहीं थी। उसको उसकी मौजूदा दुश्वारी से निजात दिलाने के लिए वह हरचन्द कोशिश कर सकता था, कर रहा था। यह उन लोगों के धन्धे का दस्तूर था कि जितना बड़ा गैंगस्टर होता था, उतने ही बड़े तरीके से उसका बेड़ागर्क होता था। इसीलिए दारा के अंजाम से वह फिक्रमन्द नहीं था और अपने अंजाम से वह नावाकिफ नहीं था।
दारा के लिए वह जो कुछ कर रहा था, दारा के लिए महज अपनी वफादारी की ही वजह से नहीं कर रहा था बल्कि उस धमकी की वजह से भी कर रहा था जो कि दारा ने जेल में से भिजवाई थी। उसके नाम दारा का पैगाम था कि पायल के कत्ल के केस में अगर उसे सजा हुई तो वह पुलिस का ऐसा ज्ञानवर्धन करेगा कि या तो रईस अहमद उसकी बगल की कोठरी में बैठा नमाज पढ़ रहा होगा और या उसके साथ फांसी पर चढ़ रहा होगा।
सरल शब्दों में दारा का पैगाम था :
मुझे बचाओ नहीं तो अपनी खैर मनाओ।
अपनी खैर मनाने के अपने अभियान के अन्तर्गत ही वह उस वक्त अपने तीन साथियों के साथ कौशल के पीछे लगा हुआ था, हालांकि यह अभी भी उसके मस्तिष्क में स्पष्ट नहीं था कि कौशल के पीछे लगने से उसे क्या हासिल होने वाला था, यूं कैसे ऐसा कोई सबूत हासिल हो सकता था जो कि दारा को बेगुनाह सिद्ध कर सकता था।
वैसे एक बात पुलिसिये भी जानते थे और दारा के आदमी भी जानते थे :
कौशल उन्हें अपने साथियों तक ले जा सकता था।
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