RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
समझदारी की बात तो यही थी कि वह शहर से निकल जाता, लेकिन वह काम मुमकिन कहां था। उसकी तलाश में पुलिस ने शहर से निकासी का हर रास्ता ब्लॉक किया हुआ होगा। पुलिस के पास उसकी तसवीर भी थी। हर रेलवे स्टेशन पर, बस अड्डे पर—एयरपोर्ट पर शायद नहीं, क्योंकि एयर ट्रैवल की उसकी औकात पुलिस को नहीं दिखाई दी होगी—उसकी निगरानी हो रही होगी। इतनी रात हो गई थी। सड़कों पर अकेले भटकना भी खतरनाक था। नाइट पेट्रोल वाले पुलिसिये भी उसे रोक कर उससे सवाल कर सकते थे और फिर कोई उसे पहचान भी सकता था।
तो फिर वह कहां जाए?
सबसे बड़ी समस्या उसके सामने रात गुजारने की थी।
दिन में वह सलमान अली के पास भी जा सकता था। दिन में कम से कम अपने आपको उसके मत्थे मंढ़ने की वह कोशिश तो कर सकता था, रात में तो वह मुमकिन ही नहीं था। मौलाना ने खासतौर से हिदायत दी थी कि उन तीनों में से कोई उसके पास न फटके। रंगीला को इतनी रात गए आया पाकर वह हरगिज दरवाजा न खोलता। रंगीला के बाज न आने पर शायद वह उसको पकड़वा देने से भी गुरेज न करता।
और अफसोस की बात यह थी कि चारहाट की जिस गली के दहाने पर वह उस वक्त खड़ा था, वहां से सलमान अली के घर का मुश्किल से दो मिनट का रास्ता था।
क्या वह किसी होटल में चला जाए?
पहाड़गंज का पूरा इलाका होटलों से भरा हुआ था। वहां के किसी घटिया होटल में वह रात गुजार सकता था।
लेकिन वहां उसे पुलिस से ज्यादा दारा के आदमियों से खतरा हो सकता था।
अजीब मुसीबत थी।
वह घर से बेघर हो गया था। अपनी बेवफा बीवी से उसका साथ छूट गया था। पुलिस उसे तलाश कर रही थी और इतनी मुसीबतें जिस दौलत की खातिर उस पर टूटी थीं, उसका आनन्द अभी उससे कोसों दूर था, महीनों दूर था।
चोरी का एक मामूली सा लगने वाला काम इतनी विनाशकारी सूरत अख्तियार कर लेगा, उसने कभी सोचा तक नहीं था।
भारी कदमों से वह आगे बढ़ा, यह सोच कर आगे बढ़ा कि आखिर उसने वहां तो खड़े रहना नहीं था, उसने कहीं तो जाना ही था।
दरीबे के आगे से गुजर कर वह बायीं तरफ एस्प्लेनेड रोड पर मुड़ गया।
वहां कारों की लम्बी कतारें लगी हुई थीं। रंगीला को मालूम था कि दरीबे और किनारी बाजार की तंग गलियों में रहने वाले पैसे वाले लोग वहां अपनी कारें पार्क करते थे।
क्या वह वहां से कोई कार चुरा सकता था?
कैसे चुरा सकता था? गैरेज की सुविधा और सुरक्षा से वंचित जो लोग यूं कारें खड़ी करते थे, वे छ: छ: तरह के तो ताले लगाते थे अपनी कारों में। कोई ताला क्लच के पैडल के साथ तो कोई स्टियरिंग के साथ। कोई इग्नीशन के साथ तो कोई गियर के साथ।
तभी मोती सिनेमा की तरफ से एक एम्बैसेडर कार वहां पहुंची। कार ही हैडलाइट्स बहुत तेज थीं और उसकी चौंधिया देने वाली रोशनी की वजह से वह केवल कार का आकार ही देख पाया।
वह कतार में खड़ी कारों में से एक की ओट में हो गया।
पुलिस का महकमा भी एम्बैसेडर कारें ही इस्तेमाल करता था। वह पुलिस की कोई गश्ती गाड़ी भी तो ही सकती थी। उसके गुजर जाने तक उसने रास्ते से हट जाना ही मुनासिब समझा।
लेकिन वह कार वहां से न गुजरी।
रंगीला से थोड़ा परे पहुंच कर वह रुकी, उसकी हैडलाइट बुझ गयी और पार्किंग लाइट जल उठी।
तब रंगीला को दिखाई दिया कि वह पुलिस की गाड़ी नहीं थी। उसके भीतर केवल एक ही आदमी मौजूद था जो अब कार को दो कारों के बीच मौजूद जगह में बड़ी दक्षता से बैक कर रहा था।
रंगीला ने मन ही मन एक फैसला किया और दबे पांव आगे बढ़ा।
कार वाले ने कार को पार्क किया, उसके दरवाजों के भीतर से लॉक चैक किए और उसकी बत्तियां वगैरह बुझा कर कार से बाहर निकला।
तभी रंगीला उसके सिर पर पहुंच गया।
वह कोई पचपन साल का निहायत कृशकाय बूढ़ा था जो उसका एक घूंसा बर्दाश्त न कर सका। रंगीला का प्रचण्ड घूंसा उसकी छाती पर ऐन उसके दिल पर पड़ा। उसके मुंह से एक कराह भी न निकली और उसका शरीर कार की बॉडी के साथ फिसलता सड़क पर ढेर हो गया।
रंगीला ने अभी भी उसकी उंगलियों में मौजूद चाबी का गुच्छा निकाल लिया। उसने जानने की कोशिश नहीं की कि वह बेहोश हो गया था या मर गया था।
वह फौरन कार में सवार हुआ। उसने कार का इग्नीशन ऑन किया और बिना हैडलाइट्स जलाए उसे आगे बढ़ाया।
सड़क के पार कुछ रिक्शा वाले एक अलाव के इर्द गिर्द बैठे थे। किसी ने भी कार की दिशा में निगाह न उठायी।
वह कार को सड़क पर ले आया।
अब वह तनिक आश्वस्त था कि स्थाई नहीं तो एक चलती फिरती छत का साया उसके सिर पर था।
मोड़ से उसने कार को बाएं मोड़ा और उसे रामलीला मैदान के साथ साथ दौड़ा दिया। आगे मेन रोड पर कार के पहुंचते पहुंचते उसने हैडलाइट्स जला लीं।
उसका दिमाग अभी भी यह सोच रहा था कि वह कहां जाए!
आगे लाल किले के विशाल चौराहे की सिग्नल लाइट्स बन्द हो चुकी थीं और उस वक्त केवल ब्लिंकर चल रहा था। उसने निर्विघ्न चौराहा पार किया।
जमना पार झील के इलाके में उसका एक दोस्त रहता था जिसके पास जाने का इरादा उसके मन में आया था लेकिन अगले चौराहे पर, जहां से कि जमना पार के इलाके के लिए सड़क मुड़ती थी, पहुंचने तक उसने वह इरादा अपने मन से निकाल दिया।
नहीं, किसी नए आदमी की शरण लेने का माहौल तब नहीं था।
जीपीओ के पास से आगे बढ़ने के स्थान पर उसने कार को पीछे हाईवे को जाती सड़क पर दौड़ा दिया।
हाईवे पर आकर उसने कार के पैट्रोल वाले मीटर पर निगाह डाली। कार की टंकी तीन चौथाई भरी हुई थी। यानी कि अभी वह बहुत देर यूं ही कार चलाता रह सकता था और सोचता रह सकता था कि वह कहां जाए।
रास्ता सुनसान पड़ा था।
कभी कभार कोई इक्का दुक्का वाहन ही होता था, जो सर्र से खाली सड़क पर उसकी बगल से गुजर जाता था। उससे काफी आगे एक विलायती कार जा रही थी, जिसके ड्राइवर को उसकी तरह कहीं पहुंचने की कोई जल्दी नहीं मालूम होती थी।
तभी एकाएक ब्रेकों की भीषण चरचराहट के साथ वह कार रुकी। कार लेफ्टहैंड ड्राइव थी। उसका दाईं तरफ का दरवाजा एकाएक खुला और कोई चीज सड़क पर धप्प से आकर गिरी। तुरन्त कार का दरवाजा बन्द हुआ और कार यह जा वह जा।
उसी क्षण रंगीला ने अपनी कार को दाईं तरफ गहरा झोल न दिया होता तो कार से गिरी, या गिराई गई, चीज जरूर उसकी कार के बाएं पहियों के नीचे आ जाती। उसकी कार उस चीज की बगल से गुजरी तो उसने उसमें हरकत नोट की। कार को आगे ले जाकर उसने रोका और पीछे झांका।
सड़क पर एक लड़की उठ कर खड़ी हो रही थी।
रंगीला को बड़ी हैरानी हुई।
उसने कार को रिवर्स करना आरम्भ किया।
लड़की जींस और हाईनैक का पुलोवर पहने थी। उसके बाल कटे हुए थे जो उस वक्त उसके सारे चेहरे पर इस कदर बिखरे पड़ रहे थे कि रंगीला को उसकी सूरत दिखाई न दी। जिस्म उसका खूब नौजवान था और पके फल की तरह तैयार लग रहा था। रंगीला जानता था कि वैसे खूबसूरत जिस्म के साथ थोबड़ा खूबसूरत न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था।
उसने कार को लड़की के समीप लाकर खड़ा किया।
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