RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
तब उसे मालूम हुआ कि लड़की विदेशी थी। वह अपने कपड़े झाड़ रही थी और बार-बार अपने बालों को अपने चेहरे से परे कर रही थी जो कि वापिस फिर वहीं आ जाते थे।
रंगीला ने हाथ बढ़ा कर लड़की की तरफ की खिड़की का शीशा नीचे गिराया और फिर बोला—“क्या हुआ?”
लड़की ने सवाल को पता नहीं क्या समझा, उसने कार का उधर का दरवाजा खोला और भीतर आ बैठी।
“दि फिल्दी सन ऑफ ए बिच!”—वह मुट्ठियां भीचें, नथुने फुलाये सांप की तरह फुंफकारती बोली—“दि लाउजी बास्टर्ड! फर्स्ट ही लेड मी, दैन ही लेड मी अगेन, दैन अगेन, दैन अगेन, दैन अगेन, दैन ही किक्ड मी आउट ऑफ हिज कार।”
रंगीला को उसकी फैंसी अंग्रेजी समझ न आई। वह इतना ही समझा कि वह विलायती कार वाले को गलियां दे रही थी।
“मिस्टर, कैन यू फालो दैट कार?”
“लिसन।”—रंगीला कठिन स्वर में अंग्रेजी में बोला—“मुझे अंग्रेजी खूब अच्छी तरह नहीं आती। इसलिए धीरे-धीरे बोलो और साफ-साफ बोलो।”
“तुम उस कार वाले को पकड़ सकते हो जो मुझे यहां धक्का देकर गया?”
“तुम्हें मालूम है वह कहां गया होगा?”
“नहीं।”
“तो फिर कैसे पकड़ सकता हूं?”
“यह सड़क तो काफी दूर तक सीधी जाती लगती है!”
“सीधी तो यह अमृतसर तक जाती है लेकिन इस पर दाएं-बाएं मुड़ जाने पर कोई पाबन्दी तो नहीं है।”
“ओह!”
“था कौन वो कार वाला?”
“था कोई हरामी का पिल्ला।”
“वह तो वह सरासर था वर्ना तुम्हारी जैसी खूबसूरत लड़की को यूं सड़क पर न फेंक गया होता!”
“स्वाइन! डर्टी डबल क्रासर! मदर लवर...”
“कौन था वो?”
“मेरा कोई सगे वाला नहीं था।”
“वाकिफकार होगा।”
“वह भी नहीं।”
“तो?”
“मिस्टर, आई एम इन ट्रबल।”
“सो एम आई।”
“फिर तो शायद हम एक-दूसरे के काम आ सकें।”
“शायद।”
“तुम्हारा क्या प्राब्लम है?”
“पहले तुम बताओ।”
“मैं एक टूरिस्ट हूं। कैनेडा से आठ जनों के एक ग्रुप के साथ घर से निकली हुई हूं। यहां हम इन्टरस्टेट बस टर्मिनस के सामने स्थित टूरिस्ट कैम्प में ठहेर हुए थे। आजकल शहर में डेंगू बुखार फैला हुआ है, वह बद्किस्मती से मुझे हो गया। मेरे साथी इतने हरामजादे निकले कि मुझे पीछे यहां छोड़कर पाकिस्तान चले गए और मुझे कह गए कि मैं दस दिन के अन्दर-अन्दर लाहौर पहुंच जाऊं। कुत्ते के पिल्ले कहते थे कि उनके मेरे साथ ठहरने से वह वायरल फीवर उन सबको हो सकता था इसलिए कमीनों ने मुझे डिच कर दिया।”
“लेकिन वह कार वाला...”
“सुनते रहो। बीच में मत बोलो।”
“ओके।”
“टूरिस्ट कैम्प में से मेरा सारा नकद रुपया चोरी चला गया। जो कीमती सामान मेरी मिल्कियत था, वह मेरे साथी अपने साथ ले गए। अब मेरे पास लाहौर पहुंचने के लिए किराया तक नहीं है। जो कार वाला अभी मुझे यहां फेंक कर गया था, वो कोई हिन्दोस्तानी था जो टूरिस्ट कैम्प में ठहरे किसी फ्रांसीसी टूरिस्ट से मिलने आया था। वह मेरे पास भी आया था।”
“तुम्हारे पास क्यों?”
“वह अपने आपको विलायती माल अच्छे दामों पर बिकवाने में स्पेशलिस्ट बता रहा था। वह मुझसे भी पूछ रहा था कि मैं कोई कैमरा, कोई टू-इन-वन या ऐसी कोई चीज बेचना चाहती थी। मैंने उसे बताया कि मेरे पास ऐसी कोई चीज नहीं थी लेकिन मुझे पैसे की सख्त जरूरत थी और यह कि क्या वह कहीं से मुझे कुछ रुपया उधार दिलवा सकता था? वह बोला छोटी मोटी रकम तो वही मुझे दे सकता था। मैंने उससे लाहौर तक के प्लेन फेयर की मांग की। बदले में उसने पूरी बेशर्मी से मेरी मांग की। मैंने हामी भर दी। मैं उसके साथ उसकी कार पर चली गयी। दिन भर हरामजादे ने मुझे खूब यूज किया। फिर जब पैसे की बात आई तो बोला टूरिस्ट कैम्प में चल कर देता हूं। लेकिन अपनी मां का यार कैम्प पहुंचने से पहले ही मुझे अपनी कार में से सड़क पर धक्का देकर भाग गया।”
“बड़ा कमीना निकला वह आदमी!”—वह हमदर्दीभरे स्वर में बोला।
“हां। और मै हरामजादे के साथ एक्सट्रा डीसेन्सी से पेश आई थी। कमीने को कोई कद्र ही न हुई। ही वाज ओनली आप्टर ए ले।”
रंगीला ने हमदर्दी में जुबान चटकाई। उस लड़की में उसे अपनी मौजूदा दुश्वारी का हल दिखाई दे रहा था।
“मिस्टर”—लड़की आशापूर्ण स्वर में बोली—“तुम मेरी मदद करोगे? मुझे प्लेन फेयर दे दोगे? आई डोंट माइन्ड इफ यू ले मी।”
“तुम्हाना नाम क्या है?”—रंगीला ने पूछा।
“टीना।”
“टूरिस्ट कैम्प में जो जगह तुम लोगों ने ली हुई है, उसका किराया वगैरह पेड अप है?”
“हां। मेरे साथी मेरा यहां हर तरह का मुनासिब इन्तजाम करके गए थे। वे तो डेंगू के डर से मुझे यहां छो़ड़ कर भागे थे।”
“तुम मुझे अपने साथ पाकिस्तान ले जा सकती हो?”
“पासपोर्ट है तुम्हारे पास?”
“पासपोर्ट?”
“और वैलिड वीसा भी?”
“है।”—रंगीला ने यूं ही कह दिया।
“तो फिर क्या प्रॉब्लम है? फिर मैंने क्या ले जाना है तुम्हें? टिकट खरीदो और पहुंचो।”
“लेकिन मैं तुम्हारे साथ जाना चाहता हूं।”
“क्यों?”
“तुम इतनी खूबसूरत जो हो।”
“नॉनसैंस।”
“पाकिस्तान तक हम दोनों का साथ रहे तो क्या हर्ज है?”
“कोई हर्ज नहीं। लेकिन मिस्टर....”
“क्या?”
“पहले मुझे प्लेन फेयर दे दो।”
“दे दू्ंगा।”
“पहले दो। ऐसा न हो कि तुम भी मुझे उस आदमी की तरह कहीं ले जाओ और फिर...”
“मैं तुम्हें कहीं नहीं ले जाऊंगा।”
“मतलब?”
“तुम मुझे लेकर जाओ।”
“कहां?”
“अपने टूरिस्ट कैम्प में। तुम्हारी तो वहां ग्रुप बुकिंग होगी?”
“हां।”
“इसलिए जाहिर है कि किसी को मेरे वहां तुम्हारे साथ रहने के कोई एतराज नहीं होगा।”
“नहीं होगा। एतराज का सवाल ही नहीं।”
“और तुम्हें? तुम्हें एतराज होगा?”
“कतई नहीं। मैं तो अकेले बोर हो जाती हूं। अच्छा है, कम्पनी रहेगी।”
“गुड।”
“लेकिन प्लेन फेयर...”
“मैं दूंगा। मेरा विश्वास करो।”
“वह आदमी भी यही कहता था। और वह तुमसे ज्यादा मीठा बोलता था।”
रंगीला ने अपनी जेब से सौ-सौ के दस नोट निकाले और उसे थमा दिए।
“यह सिक्योरिटी समझकर रखो।”—वह बोला—“तुमने दो टिकट खरीदने होंगे। एक अपना और एक मेरा। बाकी पैसे भी दे दूंगा।”
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