RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
“शाबाश!”—भजनलाल बोला—“दैट्स ए गुड ब्वाय। तुम्हारा नाम रंगीला है न?”
रंगीला ने सहमति में सिर हिलाया और बोला—“दारा के आदमी मेरे खून के प्यासे हो उठे थे। यह पिस्तौल मैंने उनसे अपनी हिफाजत के लिए रखी हुई थी।”
“अब वे लोग तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे। उलटे तुम हमारी मदद करोगे तो हम उन सबकी गरदनें भी नाप लेंगे।”
“मैं आपकी हर मुमकिन मदद करूंगा।”
“शाबाश! हम तुम्हें गिरफ्तार कर रहे हैं। तुम्हें कोई एतराज?”
रंगीला ने इन्कार में सिर हिलाया।
“तुम्हें मालूम है तुम क्यों गिरफ्तार किए जा रहे हो?”
“जी हां।”
“तुम अपना अपराध कबूल करते हो?”
रंगीला हिचकिचाया।
“तुम्हारा राजन नाम का साथी अपना अपराध पहले ही कबूल कर चुका है”—भजनलाल सख्त स्वर में बोला—“और वह आसिफ अली रोड वाली चोरी के सिलसिले में अपने साथी के तौर पर तुम्हारा नाम ले भी चुका है।”
“मैं अपना अपराध कबूल करता हूं।”—रंगीला तनिक हड़बड़ाए स्वर में बोला।
“शाबाश!”
तुरन्त उसके हाथों में हथकड़ियां भर दी गईं।
उसने एक निगाह फोटोग्राफर पर डाली।
फोटोग्राफर भीगी बिल्ली बना काउन्टर के पीछे खड़ा था और पूरी कोशिश कर रहा था कि रंगीला से उसकी निगाह न मिलने पाती।
फिर उसकी तलाशी ली गई।
जवाहरात से भरी शनील की थैली और सारा नकद रुपया पुलिस ने अपने अधिकार में ले लिया।
रंगीला के मुंह से एक आह निकल गई।
कितने बखेड़े हो गए थे प्रत्यक्षत: इन्तहाई आसान लगने वाले काम में!
भजनलाल उसकी जेब से बरामद हुई उस चिट्ठी को उलट पलट रहा था, जो सलमान अली ने उसे नबी करीम वाले एनग्रेवर के नाम लिखकर दी थी।
“तुम उर्दू जानते हो?”—भजनलाल ने पूछा।
रंगीला ने इनकार में सिर हिलाया।
“यानी तुम्हें नहीं मालूम कि इसमें क्या लिखा है?”
रंगीला खामोश। वह सोच रहा था कि उसमें जाली पासपोर्ट के बारे में जो कुछ लिखा था, वह क्या उस पर अलग से कोई इलजाम बन सकता था?
“सुनो, क्या लिखा है चिट्ठी में!”—भजनलाल बोला—“इसमें लिखा है—पत्रवाहक का नाम रंगीला कुमार है। यह सोमवार रात को आसिफ अली रोड पर हुई कामिनी देवी की हत्या और उसके बेशकीमती जवाहरात की चोरी के लिए जिम्मेदार है। यह फरार अपराधी है और पुलिस को इसकी तलाश है। यह तुम्हारे पास आए तो इसे बहाने से अटकाए रखना और फिर पुलिस को खबर करके इसे गिरफ्तार करवा देना।”
रंगीला सन्नाटे में आ गया।
कितना बड़ा धोखा देने जा रहा था मौलाना उसे।
“हूं।”—भजनलाल बोला—“तुम्हारी सूरत बता रही है कि चिट्ठी में तुम्हें यह सब लिखा होने की उम्मीद नहीं थी।”
रंगीला खामोश रहा।
लेकिन अब वह सन्तुष्ट था कि मौलाना जैसा दगाबाज आदमी मर चुका था।
उस क्षण उसे अगर अफसोस था तो सिर्फ इस बात का था कि वह अपनी बीवी के यार से बदला नहीं ले सका था।
वह श्रीकान्त को तन्दूर में नहीं लगा सका था।
और अब कहानी
जुए की महफिल
मैं कोई जुआरी नहीं लेकिन कभी-कभार तीज-त्यौहार में ताश खेल लेने से परहेज नहीं करता। दीवाली पर तो मैं आफिस में या किसी दोस्त के घर जरूर ही जुए की बैठक में शामिल होता हूं लेकिन जिस जुए की महफिल में मैं इस दीवाली पर शामिल हुआ, वह मेरी कल्पना से परे थी। जिन चार सज्जनों के साथ मैंने जुआ खेला उनमें से एक को मैंने पहले कभी नहीं देखा था, एक को मैं केवल सूरत से पहचानता था और बाकी दो मेरे दोस्त थे — ऐसे दोस्त जिनसे आजकल उठना बैठना कम था लेकिन बचपन में वे मेरे सहपाठी और जिगरी दोस्त रह चुके थे।उनके नाम थे शामनाथ और बिकेंद्र। अन्य दो सज्जन उन्हीं के दोस्त थे। मेरे लिए जो नितान्त अजनबी था, उसका नाम खुल्लर था और चौथे साहब थे कृष्ण बिहारी।
जुए के लिए जो स्थान चुना गया था उसकी कल्पना मैंने नहीं की थी। उन्होंने, रणजीत होटल में एक दो कमरों का सुइट बुक करवाया हुआ था। मुझे बड़ी झिझक हुई। रख-रखाव से ऐसा लग रहा था जैसे बहुत ऊंचे दर्जे के जुए का प्रोग्राम था जबकि ऊंचे दर्जे का जुआ खेलने लायक न मुझमें हौसला था और न मेरे पास पैसा था। लेकिन अब ऐन मौके पर मैं अपनी इन कमियों को उन लोगों की निगाहों में नहीं आने देना चाहता था, इसलिये मैं उनमे जम गया।
रात को दस बजे मैं शामनाथ के साथ वहां पहुंचा। बाकी के तीन सज्जन वहां पहले ही मौजूद थे। हमारे वहां पहुंचने के लगभग फौरन बाद फ्लैश का खेल शुरू हो गया।
मैंने सुना था कि बिकेंद्र पेशेवर जुआरी था और खुल्लर और कृष्ण बिहारी के बारे में मुझे तब बताया गया कि वे दोनों बड़े उस्ताद खिलाड़ी समझे जाते थे। लेकिन मुझे उन चारों में से किसी में भी कोई उस्तादी वाली बात नहीं दिखाई दी। मैं मामूली खिलाड़ी था जो जीतने की तो कभी कल्पना ही नहीं करता था, इत्तफाक से कभी जीत जाऊं, यह दूसरी बात थी वर्ना मैं कभी यह दावा नहीं कर सकता था कि मैं बड़ा होशियार खिलाड़ी था इसलिए मेरा जीतना एक असाधारण घटना थी। मैं तो जश्न में शामिल होने के अन्दाज से एक निश्चित रकम हारने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करके जुआ खेलता था लेकिन उस दिन यह खुद मेरे लिए हैरानी की बात थी मैं उन जैसे उस्ताद खिलाड़ियों से जीत रहा था और वह भी पत्ते के जोर पर नहीं, ब्लफ के दम पर।
अन्त में मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि उन लोगों का मन खेल में नहीं था और इसीलिए मेरी बन रही थी।
एक बजे तक मैं कोई नौ हजार रूपये जीत में था।
लगभग दो बजे खेल में अस्थायी व्यवधान आया। सुइट के दूसरे कमरे में खाने पीने का तगड़ा इन्तजाम था। बिकेंद्र और खुल्लर इन्तजाम करने के लिए दूसरे कमरे में चले गये। उनकी गैरहाजिरी में कोई पांच-सात मिनट हम तीन जने ताश खेलते रहे। फिर वे भी जुए की मेज पर आ गये और हम पांचों खेलने लगे।
उसके बाद मुझे लगा कि अब उन लोगों के खेल में से पहले वाला अनमनापन गायब हो गया था। अब वे बड़ा चौकस खेल खेल रहे थे और अब लग रहा था कि वे उस्ताद खिलाड़ी थे। नतीजा यह हुआ कि सुबह सात बजे जब हम लोगों ने खेल खत्म किया तब मैं जीते हुये नौ हजार रुपयों के साथ अपनी जेब से भी दो सौ रुपये हार चुका था।
मैं घर पहुंचा और सीधा बिस्तर के हवाले हो गया।
उसी शाम को ईवनिंग न्यूज में मैंने एक बड़ी सनसनी खेज खबर पढ़ी थी। उस रोज सुबह दस बजे के करीब सतीश कुमार नाम का एक युवक अपने कालकाजी स्थित फ्लैट में मरा पाया गया था। किसी ने उसकी हत्या कर दी थी और सरकारी डाक्टर के अनुसार हत्या पिछली रात लगभग दो बजे हुई थी।
मैं सतीश कुमार को जानता था। वह भी जुए का बहुत शौकीन था और मैंने सुना था कि वह पेशेवर जुआरियों के साथ बहुत बड़ा जुआ खेलता था और उस पर कई लोगों का उधार चढ़ा हुआ था। मैंने यह भी सुना था कि उस पर उधार की रकमें अब इतनी चढ़ गई थीं कि जुआरियों ने उसे धमकी दी हुई थी कि अगर उसने फौरन उनका पैसा न अदा किया तो उसका अन्जाम बुरा होगा।
मैंने एक बार खुद बिकेंद्र के ही मुंह से सुना था कि अरविन्द ने बिकेंद्र का भी बहुत पैसा देना था।
रात के दो बजे उसकी हत्या हुई थी और लगभग उसी समय हमारी जुए की बैठक का मध्यान्तर हुआ था।
मेरे दिल में एक अंजानी सी चिन्ता घर करने लगी। पता नहीं क्यों मेरा मन गवाही देने लगा कि पिछली रात की जुए की महफिल में और सतीश कुमार की हत्या में कोई सम्बन्ध था।
अगले दिन सुबह मुझे पुलिस हैडक्वार्टर से बुलावा आ गया।
जब मैं पुलिस इन्स्पेक्टर एन.एस. अमीठिया के कमरे में पहुंचा तो मैंने अपने चारों जुए के साथियों को वहां पहले ही मौजूद पाया।
“तुम भी इन लोगों के साथी हो?” — अमिठिया शिकायतभरे स्वर में बोला।
“क्या मतलब?” — मैं हैरानी से बोला।
अमीठिया कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला — “तुम्हें मालूम है कि ये चारों पेशेवर जुआरी हैं और नगर में गुप्त रूप से जुए के अड्डे चलाते हैं?”
मेरे होंठ भिंच गये। मैंने बारी-बारी चारों की तरफ देखा और फिर दबे स्वर में बोला — “बिकेंद्र के बारे में तो मुझे ऐसा कुछ मालूम था लेकिन यह मुझे इसके बारे में भी नहीं मालूम था कि यह जुए का अड्डा चलाता था।”
“तुम सतीश कुमार को जानते हो?”
“मामूली जान पहचान थी।”
“यानी कि उसकी हत्या की खबर पढ़ चुके हो?”
“हां।”
“तुम्हारी जानकारी के लिये हमें तुम्हारे इन साथियों पर उसकी हत्या का सन्देह है। सतीश कुमार पर इन चारों का ही कर्जा चढ़ा हुआ है। जिन लोगों ने उसे भयंकर अंजाम की धमकी दी थी, उनमें ये चारों भी शामिल थे।”
“लेकिन क्या उसका कत्ल कर देने से इन लोगों का पैसा वसूल हो जायेगा?”
“तुम इन जुआरियों की कार्यप्रणाली को नहीं समझते। ऐसी एक हत्या हो जाने से उन और लोगों को भी सबक हो जाता है जिन्होंने इन लोगों के पैसे देने होते हैं।”
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