RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
जिस सुइट में जुए की महफिल जमी थी, वह दूसरी मंजिल पर था और उसका नम्बर 203 था। मैं उसके सामने पहुंचा। मैंने दायें बायें देखा। उस वक्त गलियारा खाली था। मैंने उसका हैंडल घुमाया तो मुझे मालूम हुआ कि उसे ताला नहीं लगा हुआ था। मैं चुपचाप भीतर दाखिल हुआ। जिस कमरे में जुए की महफिल जमी थी, मैं उसमें रुकने का उपक्रम किए बिना सीधा भीतरी कमरे में पहुंचा। परसों रात जब मैं वहां आया था तो मैंने कमरे के साजोसामान और जुगराफिये की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया था। लेकिन तब मैंने बड़ी बारीकी से वहां का मुआयना किया। मुझे कोई विशेष बात नहीं दिखाई दी। फिर मैंने कमरे की इकलौती खिड़की खोली और बाहर झांका। मेरा माथा ठनका। उस खिड़की की बगल से ही फायरएस्केप की लोहे की घुमावदार सीढ़ियां गुजरती थीं और सीधे पिछवाड़े की सड़क तक जाती थीं।
मैं वहां से निकला और अमीठिया से मिला।
“अमीठिया” — मैं बोला — “मुझे पूरा विश्वास है कि हत्या इन्हीं लोगों में से किसी ने की है लेकिन कैसे की है, यह मेरी समझ से बाहर है। मेरा खयाल है कि तुम्हारे पुलिस के डाक्टर से कोई गलती हुई है। वह कहता है कि हत्या रात को दो बजे के करीब हुई है लेकिन मेरे खयाल से हत्या या तो दस बजे से पहले हुई है या सुबह सात बजे के बाद यानी कि या तो जुए की महफिल की शुरुआत से पहले या समाप्ति के बाद हई है। अगर हत्या उन चारों में से किसी ने की है तो यह सम्भव नहीं कि वह रात के दो बजे हुई हो।”
“हत्या दो बजे के आसपास ही हुई है। हमारा पुलिस का डाक्टर गारंटी करता है।”
“मैंने सुना है कि हत्या के समय के मामले में पुलिस को धोखा दिया जा सकता है।”
“कैसे?”
“जैसे हत्या के बाद लाश को रेफ्रिजरेटर में बन्द करके रख दिया जाए और बहुत बाद में किसी समय निकाला जाए। जब वह वातावरण वाले तापमान पर पहुंचेगी तो ऐसा लगेगा जैसे हत्या थोड़ी देर पहले ही हुई हो जब कि वह कई घन्टों पहले हुई होगी।”
“इस केस में ऐसा नहीं हुआ।”
“क्यों नहीं हुआ?”
“क्योंकि हमने हत्या की रात सतीश कुमार की एक-एक गतिविधि की जानकारी हासिल की है। उसने परसों शाम सात बजे नेशनल रेस्टोरेन्ट में खाना खाया था। इस आधार पर हम उसके खाना खाने के समय के साथ-साथ डाक्टर को यह भी बता सके थे कि उसने क्या खाया था। खाने के पेट में पचने का हिसाब होता है जो ये चीर फाड़ करने वाले पुलिस के डाक्टर जानते होते हैं। उसने भोजन में चिकन खाया था। डाक्टर ने पेट खोल कर चिकन के उन अवशेषों का मुआयना किया था तो अभी तक पूरी तरह पच नहीं पाये थे और उसी के आधार पर उसने कहा था कि उसकी हत्या उसके भोजन करने के कोई सात घन्टे बाद हुई थी। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।”
“लेकिन....”
“और इस बात की कोई सम्भावना नहीं है कि हमारा डाक्टर उन बदमाशों से मिला हुआ हो और उनकी खातिर झूठ बोल रहा हो। उसकी तीस साल की पुलिस की एकदम बेदाग नौकरी है। पाठक साहब, हत्या तो रात दो बजे के करीब ही हुई है। यह अलग बात है कि हत्या उन्होंने की है या नहीं।”
“अगर हत्या रात के दो बजे हुई है तो यह उन्होंने नहीं की हो सकती। उनके पास वहां से खिसक कर हत्या कर आने का न वक्त था और न इस बात की कोई सम्भावना दिखाई देती है।”
“तो फिर उन्होंने हत्या नहीं की होगी।”
“यह भी नहीं हो सकता। उनका मुझे जुए की महफिल में शामिल करना ही इस बात की चुगली कर रहा है कि उन्हें खबर थी की सतीश कुमार की हत्या होने वाली थी। वे लोग मेरे माध्यम से अपने लिए एक मजबूत एलीबाई गढ़ना चाहते थे। तुम कहते हो कि हत्या उन्होंने करवाई भी नहीं है। उन्होंने हत्या खुद की हो यह सम्भव नहीं लगता, तो हत्या हुई कैसे?”
“यही तो समस्या है जो समझ में नहीं आ रही।”
“तुम्हें हत्या की खबर कैसे लगी थी?”
“लाश बरामद की थी एक सुनीता नाम की लड़की ने। मालूम हुआ है कि वह सतीश कुमार की गर्लफ्रैंड थी। परसों शाम को सतीश कुमार ने उसी के साथ डिनर लिया था। बाद में वह सुनीता को ‘अलका’ में छोड़ कर आया था जहां कि सुनीता कैब्रे करती है। उसका कहना है कि रात को सतीश कुमार उसके फ्लैट पर अपेक्षित था लेकिन वह आया नहीं था। उत्सुकतावश ही वह अगली सुबह कालकाजी स्थित उसके फ्लैट पर गई थी, यह जानने के लिए कि वह पिछली रात उसके यहां क्यों नहीं आया था।”
“आई सी। यह सुनीता रहती कहां है?”
सुनीता माता सुन्दरी रोड की चौदह नम्बर इमारत में रहती थी। मैं वहां पहुंचा। मैंने बड़ी आसानी से चौदह नम्बर इमारत तलाश कर ली। वह होटल रणजीत से मुश्किल से कोई एक सौ गज दूर थी। उसके सामने एक खाली आटो खड़ा था। मेरे देखते-देखते इमारत के भीतर से शामनाथ बाहर निकला और आटो की तरफ बढ़ा।
“हल्लो, शामनाथ” — मैं बोला — “तुम क्या अब यहीं रहने लगे हो?”
“नहीं, नहीं।” — शामनाथ हड़बड़ाकर बोला — “यहां तो मैं किसी से मिलने आया था।”
“सुनीता से?”
“तुम क्या मेरा पीछा करते रहे हो?” — वह तनिक क्रोधित स्वर में बोला।
“नहीं तो।” — मैं सहज भाव से बोला।
“तुम यहां कैसे आये?”
“सुनीता से ही मिलने आया हूं।”
उसके माथे पर बल पड़ गए।
“क्यों?” — उसने पूछा।
“सतीश कुमार की मौत का समय उसकी गवाही के आधार पर निश्चित किया गया है। लेकिन मेरा खयाल है वह झूठ बोल रही है ताकि यह समझ लिया जाये कि हत्या रात दस और सुबह सात बजे के बीच हुई थी। मेरे खयाल से उसकी हत्या दस बजे से पहले हुई थी। इस हिसाब से उसने सुनीता के साथ चिकन सात बजे नहीं तीन बजे से पहले खाया होगा। मैं इसी उम्मीद में आया हूं कि शायद उससे उसका झूठ उगलवा सकूं।”
“तुम जासूस कब से हो गये हो?”
“जासूस नहीं हुआ हूं। जासूसी नावल तो लिखता ही हूं! ऐसे ही मुझे मेरी रचनाओं के लिए मसाला मिलता है।”
“ऐसा मसाला ढूंढ़ते- ढूंढ़ते किसी दिन खुद मसाला मत बन जाना, दोस्त।”
“दोस्त का लफ्ज ही इस्तेमाल कर रहे हो, शामनाथ।” — मैं शिकायतभरे स्वर में बोला — “लेकिन तुम्हारी बातों से दोस्ती की बू नहीं आ रही है।”
शामनाथ कुछ क्षण कहरभरी निगाहों से मुझे घूरता रहा, फिर वह प्रतीक्षारत आटो में सवार हुआ और वहां से चला गया।
मैं आटो के निगाहों से ओझल होने तक वहीं खड़ा रहा फिर इमारत में दाखिल हुआ।
सुनीता का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था। जिस लड़की ने दरवाजा खोला, वह निहायत खूबसूरत थी। उसके शरीर में कैब्रे डान्सर जैसा सन्तुलन था, यह उसके शरीर पर उस समय मौजूद सैक्सी ड्रेस से भी साफ दिखाई दे रहा था।
“आप का नाम सुनीता है?” — मैं बोला।
उसने हामी भरी और उलझनपूर्ण ढंग से मेरी ओर देखा।
“मैं एक फ्री-लांस जर्नलिस्ट हूं। मैं सतीश कुमार के बारे मैं आप से बात करना चाहता हूं।”
“ओह! आइये।” — वह एक ओर हटती बोली।
मैं भीतर दाखिल हुआ। उसके फ्लैट की सजावट से ऐश्वर्य की बू आ रही थी। मैं मन ही मन सोचने लगा, इस फ्लैट की सजावट में उसकी कमाई लगी हुई थी या यार लोगों की!
“क्या पूछना चाहते हैं आप सतीश कुमार के बारे में?” — उसने पूछा।
“मैंने ‘अलका’ में आपका डांस देखा है।” — मैंने झूठ बोला — “आप बहुत अच्छा नाचती हैं।”
मेरी तारीफ का उस पर कोई असर न हुआ। उसके चेहरे पर कोई भाव न आया।
“आप सतीश कुमार के बारे में कुछ जानना चाहते थे!” — वह बोली।
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