RE: SexBaba Kahan विश्वासघात
मैंने एक गहरी सांस ली और पूछा — “आपका उससे क्या सम्बन्ध था?”
“वह मेरा ब्वाय-फ्रैंड था।” — वह बेहिचक बोली।
“आपको उसकी मौत का कोई भारी अफसोस हुआ हो, आपकी सूरत देखकर ऐसा तो नहीं लगता!”
“नहीं लगता होगा। आपको क्या फर्क पड़ता है इससे?”
“मैंने यह बात इसलिए कही कि शायद अफसोस आपने तब मना लिया हो जब शामनाथ ने आपको बताया हो कि सतीश कुमार की हत्या होने वाली थी और उसके साथियों की सलामती के लिए आपने झूठ गवाही देनी थी।”
“क्या मतलब? क्या कह रहे हैं आप?”
“मैंने अभी शामनाथ को यहां से निकलते देखा था। शायद वह आपको आपकी झूठी गवाही का मेहताना देने आया था।”
“कैसी झूठी गवाही?”
“कि सतीश कुमार ने अपना आखिरी भोजन रात सात बजे किया था, जबकि वह भोजन वास्तव में उसने तीन बजे से पहले किया था।”
वह एकाएक उछल कर खड़ी हो गई। उसका वक्ष जोरों से उठने गिरने लगा।
“लगता है मैंने आपको भीतर आने देकर गलती की।” — वह क्रोधित स्वर में बोली — “आप तशरीफ ले जाइये यहां से।”
मैंने देखा कि जब उसका वक्ष उठता था तो उसकी ड्रेस में से किसी नीली सी चीज का किनारा बाहर झांकने लगता था।
“रिश्वत ऐसी खूबसूरत खिड़की में से बाहर झांक रही है कि जी चाह रहा है कि...”
मैंने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
उसका हाथ फौरन अपने वक्ष पर पड़ा और उसने अपना गिरहबान ऊपर को खींचा।
“जिस चीज की झलक मुझे अभी दिखाई दी थी, वह सौ के नोट का एक कोना था। ऐसे कितने नोट इस खूबसूरत पिटारे में मौजूद हैं?”
“गो टु हैल।”
“आई वुड रादर गो टु पुलिस।” — मैं बोला।
मैं अपने स्थान से उठा और दृढ़ कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ा।
“सुनो!” — वह कम्पित स्वर में बोली।
मैं चौखट के पास ठिठका, घूमा।
“शामनाथ ने मुझे कुछ रुपये दिये हैं।” — वह बोली — “लेकिन मैं ईश्वर की सौगन्ध खाकर कहती हूं कि उनका अरविन्द की मौत से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही मैंने कोई झूठी गवाही दी है।”
“कितने?”
“पांच हजार।” — वह बोली और उसने मुझे अपने वक्ष की घाटियों में से सौ-सौ के नोट निकाल कर दिखाये।
“इस रकम का अरविन्द की मौत से कोई सम्बन्ध नहीं है।” — उसने दोहराया — “और मैंने कोई झूठी गवाही नहीं दी। मैंने और अरविन्द ने सच ही शाम सात बजे ‘नेशनल’ में खाना खाया था। आठ बजे मैं उससे जुदा हो गई थी। उसके बाद मैंने अगले दिन ही उसको देखा था...मेरा मतलब है उसकी लाश को देखा था।”
“शामनाथ ने पांच हजार रुपये क्यों दिए तुम्हें? और वह भी सतीश कुमार की मौत के फौरन बाद?”
“इनका कत्ल से कोई सम्बन्ध नहीं और न ही मैंने झूठी गवाही दी है।”
“वह बात तुम कई बार कह चुकी हो, लेकिन यह मेरे सवाल का जवाब नहीं।”
“दरअसल एक और बात थी जिसका कि कत्ल से कोई रिश्ता नहीं था और जो मैंने पुलिस को नहीं बतायी थी। मुझे खूब मालूम है कि शामनाथ का कत्ल से कोई सम्बन्ध नहीं। उसने मुझे वह बात पुलिस को न बताने के पांच हजार रुपये दिए हैं।”
“वह बात है क्या?”
वह हिचकिचायी।
“कम आन, कम आन!” — मैं उतावले स्वर में बोला।
“सुनो।” — वह धीरे से बोली — “तुम जानते हो मेरा पेशा क्या है! मैं एक कैब्रे डांसर हूं। किसी से मेरी मुहब्बत में कितनी संजीदगी हो सकती है इसका अन्दाजा तुम खूब लगा सकते हो। सतीश कुमार से मेरी मतलब की यारी थी। उसे मेरे जिस्म से मुहब्बत थी और मुझे उसके पैसे से। लेकिन अब उसका पैसा खल्लास हो चुका था और मैं किसी भी क्षण उससे रिश्ता तोड़ देने वाली थी।”
“ठीक है। मैं समझता हूं। आगे बढ़ो। शामनाथ ने तुम्हे क्यों दिये थे पांच हजार रुपये?”
“दरअसल पहले मुझे मालूम नहीं था कि सतीश कुमार अपना सारा पैसा जुए में उजाड़ चुका था और उस पर पेशेवर जुआरियों के कर्जे की मोटी-मोटी रकमें चढ़ी हुई थी। हाल में एक बार शामनाथ मुझसे मिला था और उसने मुझे यह बात बताई थी साथ ही उसने कहा था कि उसे कहीं से पता लगा था कि अरविन्द के पास कुछ प्रसिद्ध कम्पनियों के शेयर थे जो उसने कहीं बड़ी सावधानी से छुपा कर रखे हुए थे ताकि किसी को उनकी खबर न लग पाती। शामनाथ मेरे माध्यम से यह जानकारी चाहता था कि क्या वाकई अरविन्द के पास ऐसे कोई शेयर थे? अगर उसे यह बात मालूम हो जाती तो उसे अपनी तथा अपने दोस्तों की कर्जे की रकम की वसूली होने की नयी सूरत दिखाई दे जाती। उसी ने मुझे बताया था कि अरविन्द ने उसका, बिकेंद्र का, खुल्लर का और कृष्णबिहारी का कोई दो लाख रुपया देना था और वह अपने आपको कंगाल बता रहा था। अगर उन्हें पक्का पता लग जाता कि उसके पास कोई शेयर थे तो वे उस पर नये सिरे से दबाव डालना आरम्भ कर सकते थे। शामनाथ ने कहा था कि अगर मैं उन्हें पता करके बता सकूं कि अरविन्द के पास शेयरों के रूप में ऐसा कोई पैसा था तो वह मुझे दस हजार रुपया देगा, लेकिन अगर मैं उन्हें यह बताऊं कि उनके पास ऐसा कोई पैसा नहीं था तो वह मुझे पांच हजार रुपये देगा।”
“उसने तुम्हें पांच हजार रुपये दिये हैं, इसका मतलब यह हुआ कि उसके पास पैसा नहीं था?”
“पैसा तो था लेकिन जितने की वह उम्मीद कर रहे थे, उतना नहीं था। उसके पास केवल साठ हजार रुपये के शेयर थे जिनसे उनका मतलब हल नहीं होता था।”
“आई सी।”
“जब अरविन्द की हत्या हो गई तो शामनाथ ने अनुभव किया कि यह बात पुलिस को मालूम हो जाने पर उस पर खामखाह शक किया जा सकता था। हत्या की खबर लगते ही उसने मुझे फोन किया था कि मैं इस बारे में पुलिस को कुछ न बताऊं।”
“और अब वह तुम्हें दूसरी बार पांच हजार रुपये देने आया था?”
“नहीं! ये पांच हजार रुपये तो वही थे जो उसने मुझे जानकारी के बदले में देने थे।”
“वह कत्ल के बारे में क्या कहता है?”
“कहता है कि कत्ल से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है और अपने को निर्दोष सिद्ध करने ले लिए उसके पास बड़ी ठोस एलीबाई है, जिसमें स्वयं पुलिस इन्स्पेक्टर अमीठिया भी कोई नुक्स नहीं निकाल सका है।”
“मैं जानता हूं उसकी एलीबाई को और यह भी जानता हूं कि वह कितनी ठोस है।”
“वह कहता है कि कोई इन्स्पेक्टर अमीठिया का ही दोस्त... सुनो, तुमने मुझे अपना नाम तो बताया ही नहीं!”
मैंने उसे अपना नाम बताया।
“हे भगवान!” — वह बोली — “तुम्हीं तो हो उसकी एलीबाई और तुम तो कह रहे थे कि तुम फ्री-लांस जर्नलिस्ट हो।”
“तो क्या गलत कह रहा था मैं! एलीबाई देना क्या किसी आदमी का पेशा होता है?”
उसने कुछ कहने ले लिये मुंह खोला और फिर चुप हो गयी।
“और क्या कहा था शामनाथ ने?”
“उसने मुझे यह दी थी कि अगर मैंने पुलिस को बताया कि जिस समय सतीश कुमार की मौत हुई थी, ठीक उस समय वह यहां मेरे फ्लैट पर अपेक्षित था तो पुलिस मुझसे बहुत अनाप-शनाप सवाल पूछेगी और मुझे बहुत परेशान करेगी।”
“क्या मतलब? उस रात को दो बजे सतीश कुमार यहां आने वाला था।”
“शुक्रवार रात को वह हमेशा ही यहां आता था। मैं डेढ़ बजे ‘अलका’ से आखिरी शो करके फ्री होती हूं। दस पन्द्रह मिनट मुझे यहां पहुंचने में लगते हैं। जब से मेरी सतीश कुमार से दोस्ती हुई है, तभी से यह सिलसिला नियमित रूप से चलता चला आ रहा है कि शुक्रवार रात को ठीक दो बजे वह यहां मेरे फ्लैट पर आ जाता है।”
“यह बात शामनाथ को कैसे मालूम थी?”
“कभी वार्तालाप के दौरान मैंने ही बताई थी। मैंने ही उसे कहा था कि शुक्रवार रात को जब अरविन्द मेरे फ्लैट पर आता था, तभी उससे सहूलियत से जाना जा सकता था कि उसके पास कोई भारी रकम के शेयर थे या नहीं।”
|