RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
दीपा मेरी बात सुनकर सोच में पड़ गयी। उसने कहा, "ओह! हाँ तुमने बताया तो था। तो यह बात है! मियाँ अकेले हैं तो सोचा चलो टीना नहीं तो भाभी ही सही। भाभी पर ही हाथ साफ़ कर लेते हैं! पर तुमने यह तो बताया ही नहीं की अगर टीना नहीं है तो वह खाना कहाँ खाता है?"
मैंने कहा, "पता नहीं, मैंने नहीं पूछा।"
दीपा: "कमाल के दोस्त हो तुम! वह अकेला है तो बाहर होटल में ही खाना खाता होगा। तुम्हें हुआ नहीं की चलो उसे हमारे घर खाना खाने के लिए बुलाते हैं? और वह उल्लू का पट्ठा भी कह सकता था की भाभी मैं आपके यहां खाना खाऊंगा?"
दीपा की बात सुन कर मैं हैरान रह गया! अभी तो तरुण को डाँटने की बात थी और अचानक ही उसे खाना खिलाने की बात आ गयी!
मैंने कहा, "उसे छोडो और यह बताओ की मैं क्या करूँ? उसे डाँटू या फिर शाम को साथ में आने के लिए कहूं?" मैंने दीपा से ही उसके मन की बात जाननी चाही।
मेरी भोली भाली पत्नी एकदम सोच में पड़ गयी। वह थोड़ी घबरायी सी भी थी। थोड़ी देर बाद वह धीरे से बोली, "बाप रे, तरुण शाम को भी आएगा? वह भी अकेले? अम्मा, मेरी तो शामत ही आ जायेगी। हाय दैया, मैं अकेली क्या करुँगी?"
फिर दीपा एकदम चुप हो गयी। दीपा की सूरत कुछ गुस्सेसे, कुछ शर्म से और बाकी रंग से एकदम लाल हो रही थी। वह रोनी सी सूरत बना कर फिर दोबारा बोली, "अब मैं आपको क्या बताऊँ की उसको बुलाना चाहिए या नहीं? देखिये, मुझे आप को कहना था सो मैंने कह दिया। अब आगे आप जानो। मुझे आप दोनों की दोस्ती के बिच में मत डालिये। पर जहां तक मैं समझती हूँ, इस बात का बतंगड़ बनाने का कोई फायदा नहीं। मैं नहीं चाहती के इस बात पर आप दोनों घने दोस्तों में कुछ अनबन पैदा हो। बेहतर यही रहेगा की आप तरुण को कुछ भी मत कहिये। उसे डाँटना मत।"
मैं चुपचाप मेरी बीबी की बात सुन रहा था। वह फिर बोलने लगी, "एक तो होली के त्यौहार का जोश, ऊपर से मुझे लगता है की तरुण ने शराब कुछ ज्यादा ही पी ली थी शायद। उसके मुंह से शराब की बू भी आ रही थी। तो बहक गया होगा नशेमें। एक तो बन्दर और ऊपर से नीम चढ़ा। और फिर टीना भी तो नहीं है, उसको कण्ट्रोल करने के लिए। तो यह सब हुआ। मैंने कहीं पढ़ा था की कई वीर्यवान मर्द सेक्सुअली बहुत ज्यादा चंचल होते हैं। ऐसे मर्दों के अंडकोषमें हमेशा उनका वीर्य कूदता रहता है। सेक्सी औरत को देखकर वह सेक्स के मारे उत्तेजित हो जाते हैं और वह बड़े ही तिलमिलाने लगते हैं। मुझे लगता है शायद तरुण का किस्सा भी ऐसा ही है। तुम्ही ने तो कहा था ना की मुझे देखकर पता नहीं उसे क्या हो जाता है की वह मुझे छेड़े बगैर रह नहीं सकता?"
मैंने कहाँ, "हाँ वह तो हकीकत है। तरुण ने खुद मुझसे यह बात कई बार कबुली थी। उसने कहा था की उसे तुम्हें देख कर कुछ हो जाता है और वह तुम्हें छेड़ देता है अपने आप को रोक नहीं पाता। पर फिर बाद में वह बहुत पछताता भी है। तुम्ही तो कह रही थी की उसने तुमसे कई बार माफ़ी भी मांगी है।"
दीपा ने मेरी बात को सुनकर अपनी उंगली से चुटकी बजाते हुए बोली, "हाँ बिल्कुल। बस यही बात है।"
दीपा फिर एक गहरी साँस ले कर बोली, " शायद मेरी तक़दीर में तुम्हारे दोस्त को झेलना ही लिखा है। अब क्या करें? तरुण तो सुधरने से रहा। अगर आप उसे बुलाना चाहते हो तो जरूर बुलाओ। बस आप मेरे साथ रहना, ताकि वक्त आने पर हम उसे कण्ट्रोल कर सकें। जो हो गया सो हो गया। अब आगे ध्यान रखेंगे।"
फिर अचानक दीपा को कुछ याद आया तो मेरी बाँह पकड़ कर दीपा ने कहा, "और हाँ, एक बात और। इस बार मुझे भी तरुण में कुछ फर्क नजर आया। हालांकि उसने मुझे रंग बगैरह तो लगाया और जो करना था वह तो किया पर मुझे लगा की वह कुछ कुछ बुझा बुझा सा मायूस लग रहा था। वो कह रहा था की वह बहुत दुखी है पर जब वह मेरे साथ होता है तो वह दर्द भूल जाता है। मुझे लग रहा है वह टीना को लेकर कुछ अपसेट है। बात करने का मौक़ा नहीं था वरना मैं पूछ लेती। शाम को जब वह आये तो हम उसे उसके बारेमें जरूर पूछेंगे। शायद हम से बात करके उसका मन हल्का हो जाए। शायद हम उसकी कुछ मदद कर सकें।"
मेरी सीधी सादी पत्नी की बात सुनकर मैं मन में हंसने लगा। एक तरफ वह तरुण की शिकायत कर रही थी, उस का सामना करने से डर रही थी तो दूसरी और उसकी हरकतों के लिए कारण ढूंढ रही थी, उसे बुलाने के लिए कह रही थी। यही तो प्यार और गुस्से का अद्भुत संयोग था।
मैं मन ही मन हंसकर लेकिन बाहर से गम्भीरता दिखाते हुए बोला, "अगर तुम इतना कहती हो तो चलो मैं तरुण को नहीं डाँटूंगा और उसे बुला लूंगा। पर एक शर्त है। देखो तुम तरुण को तो जानती हो। वह रंगीली तबियत का है। तुमने ही तो अभी कहा की वह बन्दर के जैसा है। वह तुम्हारे जैसी खूबसूरत बंदरिया को देखते ही शायद उसका लण्ड खड़ा हो जाता है और वह अजीब हरकतें करने लगता है। उपरसे आज होली का त्यौहार है। आज तुम अकेली औरत हो। तो वह तुम्हें छेड़े बगैर तो रहेगा नहीं। जहां तक मेरी बात है, तो तुम तो जानती हो, आज होली है और मैं तुम्हें प्यार किये बगैर रह नहीं सकता। चूँकि उसके छेड़ने से तुम गुस्सा हो जाती हो इसलिए शायद बेहतर यही है की मैं उसको ना बुलाऊँ। इसका एक फायदा यह भी होगा की जब मेरा मन करेगा तो मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा और तुम मुझे यह कह कर रोकोगी नहीं की तरुण साथ में बैठा है। यार होली में तो मस्ती होनी चाहिए। ओके? अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम है तो मुझे अभी बता दो, तब फिर मैं तरुण को मना कर दूंगा और हम दोनों ही चलेंगे। मैं तुम्हें होली के मौके पर प्यार किये बिना नहीं रह सकता। तरुण आये तो भी ना ए तो भी। बोलो क्या मैं उसे बुलाऊँ?"
दीपा ने मेरी बात सुनकर बड़े ही असमंजस में कहा, "मैंने कहाँ तरुण को बुलाने से मना किया है? यह सारी बातें तो तुमने कहीं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। तुम बोलो ना क्या तुम तरुण को बुलाना चाहते हो या नहीं? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तरुण हो या ना हो।"
मैं कहा, "क्या तरुण होगा तो भी तुम मुझे प्यार करने दोगी की नहीं?"
दीपा ने शर्माते हुए कहा, "अगर मैं मना करुँगी तो क्या तुम मुझे प्यार किये बिना रुकोगे?"
मैंने कहा, "और अगर तुम्हें तरुण छेड़ेगा तो?"
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