RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा, "कविताओं में कहना एक और बात है पर हकीकत यह है की महिलाऐं कभी भी पुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकती। महिलाऐं नाजुक़ और कमजोर होती हैं और उनमें साहस की कमी होती है। वह छोटी छोटी बातों में पीछे हट जाती हैं। जैसे की अभी तुम्हीने व्हिस्की पीने से मना कर दिया था। भला वह पुरुषों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं?" मैंने एक तीर मारा और दीपा के जवाब का इन्तेजार करने लगा।
दीपा ने तुरंत पलट कर कहा, "तो क्या हुआ? मैं भी व्हिस्की पी सकती हूँ। पर मैं आप लोगों की तरह बहक कर भन्कस और हंगामा करना नहीं चाहती। तुम पुरुष लोग क्या समझते हो अपने आपको? क्या हम कमजोर हैं और तुम सुपरमैन हो?" दीपा ने तब तरुण की और देखा।
तरुण ने तुरंत कहा, "दीपक, दीपा भाभी बिलकुल ठीक कह रही है। आज की नारी सब तरह से पुरुषों के समान है। वह ज़माना चला गया जब औरतें घर में बैठ कर मर्दों की गुलामी करती थी। अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकती है। अब वह कोई भी तरह पुरुषों से पिछड़ी नहीं है। जो हम पुरुष करते हैं उसमे वह जरूर सहभागिनी बनती है।"
मैंने कहा, "चलो एक पल के लिए मान भी लिया जाए की दीपा या कोई भी महिला व्हिस्की भी पी सकती है। पर क्या दीपा या कोई भी भारतीय नारी पुरुषों की तरह खुल्लम खुल्ला सेक्स के बारे में बातचीत कर सकती है? अरे खुद बात भले ही ना करे पर, सुन तो सकती है की नहीं?"
दीपा ने मेरी बात का एकटुक जवाब देते हुए कहा, "क्यों नहीं सुन सकती? जब महिला पुरुष के साथ सेक्स कर सकती है तो फिर सेक्स के बारेमें सुन क्यों नहीं सकती? क्या मैंने अभी अभी सेक्स वाली बातें नहीं सुनीं? दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर थोड़ी उखड़ी हुई आवाज में तरुण से कहा, "यार तरुण, यह तुम्हारे भाई या दोस्त व्हाटएवर, मेरे जो हस्बैंड है ना, बड़े ही इर्रिटेटिंग है। बड़े बोर करते हैं। बेकार दाना पानी लेकर मेरे पीछे ही पड़ जाते हैं। तुम एक हो जो मुझे कुछ समझते हो।"
मैंने देखा की तरुण के सपोर्ट करने से दीपा खिल सी गयी थी। वह मुझ से थोड़ी उखड़ी हुई थी और तरुण की सहानुभूति से काफी प्रभावित भी हुई लग रही थी। दीपा की हिम्मत या यूँ कहिये की उच्छृंखलता शराब के नशे के कारण और मेरी स्त्री जाती को चुनौती देने के कारण बढ़ती ही जा रही थी। शायद अपनी हिम्मत मुझे दिखाने के लिए दीपाने मेरे देखते ही तरुण का हाथ पकड़ा और धड़ल्ले से उसे अपनी जांघ पर साड़ी के ऊपर रखा। मेरी प्यारी बीबी पूरा गिलास भरी शराब (जिन) की असर के कारण महिला की पुरुष के साथ बराबरी दिखाने के लिए उत्सुक ही नहीं बल्कि उतावली थी। तरुण को और क्या चाहिए था?
वैसे ही दीपा की साड़ी इतनी हलके वजन की और महिम थी की हल्का सा खींचने पर भी वह फिसल जाती थी। तरुण भी दीपा की बढ़ी हुई हिम्मत का फायदा उठाते हुए दीपा की साड़ी के ऊपर अपने हाथ फैला कर मेरे देखते हुए ही वह दीपा की जांघ को ऊपर से धीरे धीरे सहलाने लगा और मेरी और देख कर बोला, "भाई, भाभी की एहमियत आप को नहीं पता, क्यूंकि वह आपकी पत्नी हैं। मैं उनकी एहमियत समझता हूँ, क्यूंकि उनकी कंपनी मुझे भी कभी कभी मिलती है।"
मैंने अपना बचाव करते हुए कहा, "नहीं तरुण ऐसी कोई बात नहीं है। मैं भी जानता हूँ मेरी पत्नी किसी से कम नहीं।"
ऐसा कह कर जैसे ही मैंने मेरी बीबी का हाथ थामने की कोशिश की तो दीपा ने मेरा हाथ दूसरी और खिसका दिया और बोली, "अरे छोडो जी। झूठ मत बोलो। अब तक तो आप मुझे कमजोर, अबला, नाजुक कह रहे थे। अब जब तुम्हारे ही दोस्त ने मेरी कदर की तब समझ आयी अपनी बीबी की एहमियत की? देखो, मैं जैसा तुम समझ रहे हो ना, वैसी कमजोर और नाजुक नहीं हूँ। मैं भी तुम दोनों मर्दों से किसी भी मामले में मुकाबला कर सकती हूँ।"
तरुण दीपा की बात सुनते ही फ़ौरन मेरी बीबी की जाँघों को साडी के ऊपर से फुर्ती से सेहलाने और दबाने लगा। दीपा उसे महसूस कर रही थी, पर कुछ ना बोली; क्यूंकि अब उसे अपनी हिम्मत जो दिखानी थी। बल्कि खुद जैसे उसे प्रोत्साहन देती हो ऐसे तरुण के हाथ के ऊपर अपना हाथ फिराने लगी।
वैसे भी अब दीपा को तरुण का शुशीलता और सभ्यता भरा रवैया अच्छा लग रहा था। और मैं चूँकि मेरी बीबी को चुनौती दे रहा था इस लिए वह मुझे दिखाना चाहती थी की वह एक हिम्मत वाली औरत है और किसी गैर मर्द (तरुण) की छेड़खानी से डरने वाली नहीं है।
मेरे रवैये से कुछ उखड़ी हुई मुझे चुनौती देते हुए वह बोली, "दीपक, तुम मुझे कम इस लिए समझ रहे हो क्यूंकि मैं तुम्हारी बीबी हूँ। पर दुनिया बहुत बड़ी है। तुम्हारा ये दोस्त तरुण को ही देखो। अपने मित्र से कुछ सीखो। वह कितना सभ्य, संस्कारी, शालीन और शुशील है? वह हम महिलाओं का सम्मान करना जानता है और हमारी महत्ता और महत्वकांक्षाओं को समझता है। उसे पूरी तरह ज्ञात है की स्त्रियों का पुरुष के जीवन में कितना महत्त्व पूर्ण और उच्चतम योगदान है।" बातें करते हुए दीपा की जीभ थरथरा रही थी और वह एकदम संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगी थी। दीपा गुस्से में अंग्रेजी और जब प्रशंषा अथवा तारीफ़ करनी हो तो संस्कृत शब्दों का इस्तमाल करने लगती थी।
मैं चुप हो गया। तरुण कितना सभ्य था वह तो मैं अच्छी तरह जानता भी था और देख भी रहा था की धीरे धीरे तरुण ने दीपा को अपने पास खीच लिया था। फिसलन वाली साड़ी पहने होने के कारण दीपा को खिसकाने में तरुण को कोई दिक्कत नहीं हुई। दीपा भी बिना विरोध किये तरुण के पास खिसक गयी थी। मैंने देखा की तरुण ने भी दीपा का हाथ पकड़ कर अपनी जाँघ पर ना सिर्फ रखा बल्कि उसे थोड़ा और खिसका कर दोनों जाँघों के बिच उसके लण्ड के करीब वाले हिस्से में रखा और उसे दीपा वहाँ से ना हटा सके इसके लिए वह थोड़ा दीपा की और घूम गया और अपना दुसरा हाथ दीपा के हाथ के ऊपर दबा कर रखा।
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