RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
मेरी प्यारी बीबी का गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच रहा था। उसे अपनी हार कतई मंजूर नहीं थी। वह मुझ पर एकदम बरस ही पड़ी। अपने स्त्री सुलभ अहंकार को आहत होना उसे कतई मंजूर नहीं था। किसी भी तरह के शिष्टाचार की परवाह ना करते हुए मेरी बात से झुंझला कर गुस्से से तिलमिलाती हुई दीपा बोली," यु आर ए लिमिट यार। व्हाट डु यु थिंक ऑफ़ योर सेल्फ? डोंट हेसल मि। तुम तो यार पीछे ही पड़ गए? क्या तुम और मैं सेक्स करते समय, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई, लण्ड, चूत ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते? तुम तरुण के सामने झूठ क्यों बोल रहे हो? क्या मैं सेक्स, मेरा मतलब है चुदाई करते समय चुदाई में तुम्हारा पूरा साथ नहीं देती?"
मैं मेरी बीबी को हक्काबक्का हो कर देखता ही रहा। तरुण भी कुछ पलों के लिए स्तब्ध सा मेरी पत्नी को देखता ही रहा। दीपा क्या बोल रही थी? मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी बीबी इतनी खुल्लम खुल्ला किसी गैर मर्द के सामने इस तरह बात कर सकती है।
दीपा ने फिर मुड कर तरुण की और देखा और बोली, "तरुण आज मेरे पति ने तुम्हारे सामने मुझे नंगी ही कर दिया, मेरा मतलब है, आज मेरे पति ने मुझे तुम्हारे सामने जो शब्द नहीं बोलने चाहिए वह भी मुझसे बुलवा लिए। तुम अब बेझिझक मेरे पति जो सुनना चाहते हैं वह खुल्ले शब्दों से भरी तुम्हारे दोस्त की चुदाई की कहानी पूरी खुल्लमखुल्ला सुनाओ। आज मैं मेरे पति को दिखा देना चाहती हूँ की वह मेरी स्त्री सुलभ सभ्यता को मेरी कमजोरी ना समझें। आई एम् ए स्ट्रॉन्ग वुमन नॉट ए ब्लडी डेलिकेट वुमन।"
तरुण तो जैसे दीपा की बात सुनकर उछल ही पड़ा। उसने सोचा नहीं था की एक तगड़े जिन के डोझ से ही भाभी इतनी जल्दी चौपट हो जायेगी। तरुण ने फ़ौरन दीपा का हाथ अपनी जांघों के बिच में रखकर दीपा की जाँघों को और फुर्ती से कामुक अंदाज से सेहलाते और अपने लण्ड पर दीपा का हाथ दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, "दीपा भाभी, मुझे आपके सामने ऐसे खुल्लमखुल्ला बात करने में शर्म आती है और आपके गुस्से का डर भी लगता है। पर आज मुझे मेरी भाभी पर गर्व भी है की वह इतनी, शुशील और सभ्य महिला होते हुए भी मर्दों के साथ धड़ल्ले से सेक्स के बारे में खुल्लमखुल्ला बात करती है और इतनी तो छुईमुई नहीं है की मर्दों की छोटीमोटी हरकतों से पीछे हट जाए। भाई तुम तक़दीर वाले हो। ऐसी पत्नी तक़दीर वालों को ही मिलती है। भाभी क्या आप वास्तव में ऐसी स्पष्ट भाषा सुन सकोगी?"
दीपा अपने जिद भरे गुस्से में थी पर तरुण के सभ्यता भरे सवाल से कुछ गुस्से से और कुछ प्यार से बोली, " यार तरुण डोन्ट फील बेड। टुडे इट इस ए क्वेश्चन ऑफ़ थ्रु एंड थ्रु। तरुण, तुमको मैं किस भाषा में समझाऊं की आज आरपार की बात है? मेरे पति मुझे कमजोर, नाहिम्मत अबला समझते हैं। पूरी जिंदगी उन्होंने मुझे इसी तरह कोमल, नाजुक, नरम आदि कह कर मुझे कमजोर समझा। वह सोचते हैं की मैं साफ़ साफ़ सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई की बातें नहीं सुन सकती। हाँ ऐसी बातें कहने और सुनने में मेरे पति की तरह मेरी जीभ 'लपलप' नहीं होती। पर मैं सुन जरूर सकती हूँ और बात भी जरूर कर सकती हूँ। तुम आगे बढ़ो और आज तो ज़रा भी घुमा फिरा के बात मत करो। आज तो होली है आज तो बस खुल्लमखुला ही चुदाई की बात करो। मैं मेरे पति को आज दिखा देना चाहती हूँ की मैं कोई छुईमुई नहीं हूँ की चूत, चुदाई, लण्ड ऐसे शब्दों से डर जाऊं। मेरे पति खुद मुझे आज तुम्हारे सामने नंगी करना चाहते हैं तो ठीक है। मैं पीछे हटने वाली नहीं हूँ। अब मर्यादा की ऐसी की तैसी। देखते हैं कौन पीछे हटता है। सुनाओ यार, बिलकुल बेझिझक हो कर तुम भी खुल्लमखुल्ला बोलो!"
तरुण को और क्या चाहिए था? उसने वही कहानी अब खुल्लमखुल्ला भाषा में कहना शुरू किया।
तरुण ने कहा, "ठीक है, देखो भाई, मैं तो बस भाभी का लिहाज कर रहा था। अगर दीपा भाभी को एतराज नहीं है और तुम सुनना चाहते हो तो उनकी सारी आपबीती मैं अब खुल्लम्खुल्ले शब्दों में सुनाता हूँ।"
ऐसा कह कर तरुण ने वह कहानी का सेक्स... मेरा मतलब है चुदाई वाला हिस्सा दुबारा खोल कर सुनाया। तरुण ने कहा, "दीपक, जब रमेश उस कपल के बैडरूम में दाखिल हुआ तो उसने देखा की बीबी अपने पति की गोद में बैठी पति के होँठों से अपने होँठ मिलाकर उनके होंठ चूस रही थी। दोनों पति पत्नी प्यार में इतने मशगूल थे की उन्हें ध्यान भी नहीं था की उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था। या हो सकता है उन्होंने जानबूझ कर दरवाजा खुला छोड़ रखा हो।
सच तो यह था की रमेश का दोस्त, रमेश की बात सुनकर इतना प्रभावित हो गया था की अपनी बीबी को रमेश से चुदवाते हुए देखना चाहता था और वह भी रमेश के साथ मिलकर अपनी बीबी को चोदना चाहता था। शायद उसकी बीबी भी अपने पुराने दोस्त से बहोत आकर्षित थी और रमेश से वह कॉलेज में पढ़ते हुए चुदाई ना करवा सकी, शायद उसके मन में यह कसक कहीं ना कहीं रह गयी थी। तो तब वह शादी के इतने सालों के बाद रमेश से चुदाई करवाने के लिए तैयार हुई।
रमेश के कमरे में आते ही रमेश ने देखा की दोस्त की बीबी के ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और ब्रा भी खुली हुई थी। दोस्त की बीबी के आकर्षक और सेक्सी बॉल रमेश की नज़रों को उकसाने के लिये काफी थे। बीबी के स्तनों की निप्पलेँ उसकी उत्तेजना के कारण ऐसी फूली हुई और कड़क थीं की जैसी एक औरत की प्यार भरी चुदाई से हो जातीं हैं।"
जब दीपा ने यह सूना तो मैंने महसूस किया की दीपा के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उस शाम तक दीपा ने पहले कभी किसी गैर मर्द से ऐसी खुली सेक्सी भाषा नहीं सुनी थी। तरुण के मुंह से ऐसी बातें सुनकर उसने अपना एक हाथ अपनी चूँचियों पर रखा और दूसरे हाथ से मेरी जांघ को दबाया। जैसे वह चेक कर रही थी की कहीं उसकी अपनीं निप्पलेँ भी तो सख्त नहीं हो गयीं।
शायद तरुण ने भी यह देखा। वह मन ही मन मुस्कराता हुआ बोला, "रमेश के दोस्त के हाथ अपनी बीबी के बब्ले दबाने में और उनको मसलने में व्यस्त थे। शायद मैंने नहीं देखा... मेरा मतलब है, रमेश ने नहीं देखा पर उस समय मेरे दोस्त का... मेरा मतलब है रमेश के दोस्त का लण्ड भी उसकी धोती में खड़ा हो गया होगा और बीबी की सुडौल गाँड़ को निचे से टॉच रहा होगा।"
जब तरुण गलती से यह बोल पड़ा तो इसका मतलब मुझे साफ़ दिखा। मैंने तरुण को बीचमें टोकते हुए कहा, "तरुण, झूठ मत बोलना। कहीं तुम अपनी ही सच्ची कहानी अपना नाम छुपाकर तुम्हारे दोस्त रमेश का नाम लेकर तो नहीं सूना रहे हो? कहीं वह रमेश तुम ही तो नहीं हो?"
मेरी बात सुनकर तरुण खिसियाना सा कुछ देर तक सुन्न सा मेरी और देखता रहा। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर अपनी कहानी जारी रखते हुए कहा, "पहले पूरी बात सुनलो।"
उसके बाद तरुण स्पष्ट रूप से रमेश के मित्र और उसकी पर्त्नी की चुदाई के बारे में विस्तार से बताने लगा। सबसे पहले रमेश ने उसके दोस्त की पत्नी के बूब्स को खोल कर पुरे आवेश के साथ चूसा। रमेश के चूसने से रमेश के दोस्त की पत्नी मचल उठी। उसकी निप्प्लें एकदम सख्त हो गयी। रमेश ने तरुण को बताया की उसने कैसे उसके मित्र की पत्नी की चूत को चाटा और कैसे उसकी चूत के झरते हुए पानी को चूसने लगा।
रमेश के मित्र की पत्नी ने अपने पति और रमेश दोनों के लण्ड अपने दोनों हाथोंमे लिए और उन्हें धीरे धीरे सहलाने और मालिश करने लगी। जैसे जैसे उसने दोनों मर्दों के लण्ड को थोड़ी देर हिलाया तो तरुण के दोस्त रमेश और उसके दोस्त के लण्ड लोहे की छड़ की तरह खड़े हो गए।"
जब तरुण थड़ी साँस लेने के लिए रुका तो मैंने तरुण से कहा, "यार तुझे तो कोई लेखक होना चाहिए था। तू सारी बातें इतनी बारीकी से बता रहा है, जैसे तू खुद ही वहाँ था। मुझे लग रहा है कही तू ही तो वह रमेश की जगह नहीं था? अगर ऐसा है तो तू साफ़ साफ़ क्यों नहीं बता रहा की तू ही वह रमेश है?, क्यों दीपा मैंने कुछ गलत कहा?"
दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए, कुछ शर्मा कर कहा, "हाँ, दीपक मुझे भी कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है।" फिर तरुण की और मुड़कर दीपा ने कहा, "देखो तरुण, अगर तुम्ही थे जिसका नाम तुम रमेश बता रहे हो तो उसमें मुझे या मेरे पति दीपक को कोई आपत्ति नहीं है। मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी? जब तुम्हारा दोस्त और उसकी बीबी को ही कोईआपत्ति नहीं है तो हमें क्या लेनादेना? पर जब हम खुल्लमखुल्ला बात कर रहे हैं तब तुम हम से छुपाछुप्पी मत खेलो। पर खैर छोडो इस बातको। हम तुम्हें कटघरे में खड़े करना नहीं चाहते।"
मैंने भी दीपा की बात में सहमति जताते हुए अपना सर हिला दिया। तरुण की खुल्लम खुली कहानी जिसमें तरुण के दोस्त की बीबी ने बारी बारी से दोनों मर्दों के लण्ड को चूसा यह सुन कर मैं तो उत्तेजित हो ही गया पर मैंने अनुभव किया की दीपा भी काफी गरम हो रही थी। मैं उसके हांथों में हो रहे कम्पन महसूस कर रहा था। तरुण की आवाज में भी रोमांच की थरथराहट महसूस हो रही थी। हम तीनों ही उत्तेजित हो उठे थे।
दीपा ने तरुण की और देख कर कहा, "तरुण, यार तुम बड़े ही चालु निकले। इधर किसी से प्यार तो उधर किसी और से? तुम एक साथ कितने चक्कर चलाते हो यार? मैं जानती हूँ की वह रमेश कोई और नहीं, वह तुम्ही थे और तुमने ही वह, क्या कहते हैं? हाँ एम.एम.एफ़. थ्रीसम बगैरह भी तुम्हारे दोस्त और उसकी बीबी के साथ किया। एक साथ इतने चक्कर चलाना, यह ठीक बात नहीं।" बात करते करते बिच बिच में दीपा की जबान थोड़ी सी लहरा जाती थी लड़खड़ा जाती थी।
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