RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
दीपा ने जब तरुण की और देखा और तरुण को अपने स्तनोँ की और एकटक देखते हुए पाया तो उसे समझ आया की उसके ब्लाउज के डोरे और ब्रा की पट्टी खुली हुई थीं। तब मैंने महसूस किया की दीपा के गुस्से का पारा चढ़ रहा था और जल्दी ही कुछ ना किया गया तो वह एक़दम सातवें आसमान को छू सकता था और वह तरुण की ऐसी की तैसी कर सकती थी। अगर ऐसा हुआ तो सारी शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा और दीपा एकदम वापस घर जाने की जिद पर उतर आएगी तो हमें मजबूरी में यह सारा प्रोग्राम कैंसिल करना पडेगा।
यह सोच कर मैं मेरी बीबी की और घूम गया। मैंने मेरी बीबी दीपा को ऊपर उठाया, अपनी और खींचा, सीट पर अपनी टाँगे लम्बीं कीं, और उसे अपनी बाहों में समेट मैंने दीपा की टांगें फैला कर उसको उठा कर मेरी गोद में ले लिया। उसे मेरी तरफ घुमा कर मेरी टांगों के ऊपर मेरी गोद में बैठना पड़ा।
मैं पीछे सरक कर कार के दरवाजे से अपनी पीठ टिका कर बैठ गया, जिससे मेरे पाँव सीट पर लम्बे हो सकें। पर ऐसा करने से दीपा के पाँव लम्बे नहीं हो सकते थे। दीपा को एक पाँव सीट के निचे लटकाना पड़ा और चूँकि मैं कार के दरवाजे से पीठ सटा कर बैठा हुआ था , दीपा का दुसरा पाँव घुटनों से मोड़ कर दीपा मेरी गोद में बैठी हुई थी। दीपा का घाघरा दीपा के घुटनों से भी ऊपर करीब करीब उसकी पैंटी के छोर तक चढ़ गया था। दीपा की करारी जाँघें लगभग नंगी हो चुकी थीं। हालांकि दीपा की पैंटी तरुण दीपा के पीछे होने से, और दीपा की चूत मेरे लण्ड से सटी होने के कारण तरुण को नहीं दिखाई पड़ती थी।
मेरी टांगें तरुण की जाँघों को छू रही थीं। दीपा की पीठ तरुण की तरफ थी। आगे की सीट की थोड़ी सी जगह में यह सब थोड़ा मुश्किल था। दीपा को मजबूरन अपना घाघरा फैलाकर मेरी कमर के दोनों तरफ अपनी दोनों टाँगों को करना पड़ा। दीपा का घाघरा (पेटीकोट) उसकी जाँघों के ऊपर तक चढ़ गया था। मैंने तरुण के हाथ दीपा के पीछे से हटा दिए और मैं ऐसे नाटक करने लगा जैसे मैंने ही उसके ब्लाउज की डोरी और ब्रा की पट्टी खोली हो। मेरी बीबी की गाँड़ तक अपने हाथ ले जा कर मैं उसकी गाँड़ के गालों को दबाने लगा।
बड़ी मुश्किल से मेरी पत्नी बोल पायी की "दीपक यह क्या कर रहे हो? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?"
मैंने कहा, "मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ तो तुम्हें परेशानी लगती है?" मैं यह कह कर मैं फिर से मेरी बीबी को मेरे बदन से दबा कर उसे चूमने और उसकी पीठ को प्यार से सहलाने लगा। मेरी बात सुनकर दीपा चुपचाप मुझसे अपने होँठ और जीभ चुस्वाति रही।
बाहर से देखने वाले को तो शायद ऐसा ही लगता जैसे दीपा मेरी गोद में बैठ कर मुझे चोद रही थी। मैंने दीपा को उसकी बाँहें मेरे गले में डालकर मुझे चुम्बन करने के लिए बाध्य किया। दीपा भी उकसाई हुई थी। वह भी अपनी बाँहों में मुझे लपेट कर मेरे होँठों से अपने होँठ भींच कर मुझे गहरा चुम्बन करने में जुट गयी।
ऐसा करते हुए मैंने तरुण की और देख कर एक आँख मटक कर कहा, "यार तरुण, तुम्हारी कहानी तो अच्छे अच्छों का लण्ड खड़ा कर देने वाली है। मेरा लण्ड भी कितना गरम हो कर खड़ा हो गया और फुंफकार रहा है।" मैंने फिर दीपा की और घूम कर दीपा के होँठों पर अपने होँठ रख दिए और एक पागल की तरह मैं उन्हें चूमने और चूसने लगा।
दीपा भी तो उत्तेजित हो गयी थी। वह भी काफी गरम थी। वह अपनी खुली हुई चूँचियों भूल ही गयी। उसके गुस्से पर मैंने जैसे पानी फेर दिया। जब मैं दीपा को चुम रहा था तो दीपा मुझे रोक कर कुछ खिसियानी सी आवाज में बोल पड़ी, "अरे रुको। यह क्या कर रहे हो? कुछ शर्म है की नहीं? तरुण यहाँ बैठा हुआ है और सब देख रहा है।"
मैंने दीपा को कहा, "देखा? यही तो मैं कह रहा था की आज की रात जब मैं तुम्हें प्यार करूंगा तो तुम मुझे यह कह कर रोकेगी की तरुण है। तुमने मुझे वचन दिया था की तुम ऐसा नहीं कहोगी और मुझे प्यार करने दोगी। अब तुम वापस मुकर गयी ना? अरे तरुण की ऐसी की तैसी। मुझे प्यार करने दो ना यार!"
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