RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
तरुण ने दीपा को इतनी महत्ता दे दी की उस की बात सुन कर दीपा का चौड़ा सीना (!!) और चौड़ा हो गया। दीपा खुश नजर आ रही थी। पर तरुण के चहरे पर मायूसी का साया देख कर मेरी पत्नी थोड़ी सकपका गयी ।
मैंने दीपा से कहा, "अब तो हमें सुबह ही घर लौटना है। फिर यहां बाहर देर रात सुनसान रास्ते पर कार खड़ी कर इस तरह बात करने से कुछ शकिया माहौल हो सकता है, कुछ अनहोनी हो सकती है। तरुण के घर में और कोई है भी नहीं। चलो तरुण के घर ही चलते हैं।" उस पर दीपा ने भी अपनी मुहर लगा दी और तरुण ने कार अपने घर की और मोड़ी।
पुरे रास्ते में तरुण के मुंह पर जैसे ताला लगा था। मैंने दीपा के कान में कहा, " मैंने कहा था ना की गंभीर बात है। अब तक जो फुदकता रहता था उसे एकदम यह क्या हो गया? हम तरुण के घर जा कर बात करते हैं। उसको थोड़ी पिलायेंगे और तुम थोड़ा उसको छेड़ना तो उसका मूड ठीक हो जाएगा।"
दीपा की नजर में तरुण एक निहायत शरीफ और सीधा सादा इंसान बन चुका था। उसकी छेड़ खानी और शरारत को भी दीपा तरुण की सरलता का ही नमूना मान रही थी। हम जैसे ही तरुण के घर पहुंचे तो दीपा ने तरुण की कमर पर हाथ रखा और बोली, "आज मैं तुम दोनों के साथ एक आझाद पंछी की तरह अनुभव कर रही हूँ। आप लोगों के साथ मुझे एक अनूठा अपनापन लग रहा है। मुझे आज मेरे पति और मेरे देवर के साथ बड़ा अच्छा लग रहा है। और देवरजी इसका श्रेय तुम्हे जाता है। मैं तुम्हें देवर कहूं या बहनोई?"
मैं जानता था की दीपा का आझाद पंछी की तरह अनुभव करने का कारण तो वह जीन से भरा हुआ गिलास और तरुण का तास के पत्तों से बना वह तारीफों का पूल था। पर यह देवर कहूं या बहनोई वाली बात कह कर कहीं मेरी बीबी तरुण को आधी घरवाली वाली बात पर तो नहीं लाना चाहती थी? मतलब कहीं तरुण को और छेड़ने के लिए तो नहीं उकसा नहीं रही थी? अगर ऐसा था तो जरूर वह चुदवाने के बारे में अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर रही थी। उसके मन में क्या था? यह जानना मेरे लिए जरुरी था।
दीपा सोचती थी की शायद तरुण कुछ जवाब देगा। पर तरुण ने तो जैसे मौन व्रत धारण किया हो ऐसे ही मुंह लटका कर चुप था।
मौक़ा देख कर मैंने कह दिया, "तुम तरुण को देवर समझो या बहनोई, या तरुण तुम्हें भाभी समझे या साली, क्या फर्क पड़ता है? छुरी पर खरबूजा गिरे या खरबूजे पर छुरी, कटना तो खरबूजा ही है।"
दीपा ने आँखें टेढ़ी करके पूछा, "आपका क्या मतलब है? मैं साली हूँ या भाभी, मैं आधी घरवाली तो रहूंगी ही, क्या तुम ऐसा कहना चाहते हो? या फिर तुम यह कहना चाहते हो की आज चाहे कुछ भी हो जाए आप लोगों से मुझे ही कटना है?"
मुझे मेरी बीबी की बात से ऐसा लगने लगा की कहीं ना कहीं उसके मन में यह साफ़ हो गया था की मैं और तरुण मिलकर मेरी प्यारी बीबी को चोदने का प्लान बना रहे थे। और अब तो वह तरुण को भी उसे छेड़ने के लिए उकसा रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं की वह खुद तरुण से चुदवाना चाहती थी और हमें मोहरा बना रही थी?
तरुण ने मुस्काने की कोशिश की पर उसकी मुस्कान में भी ग़म की छाया थी। तरुण ने दीपा की और दुःख भरी नज़रों से देखा पर कुछ ना बोला।
तरुण को तो उस समय बड़ा खुश होना चाहिए था। पर तरुण की शक्ल रोनी सी हो रही थी। दीपा बड़ी उलझन में थी। तरुण के मूड में यह परिवर्तन दीपा की समझ में नहीं आया। दीपा ने तब मुझे इशारा किया की मैं सब के लिए एकएक पेग बना के लाऊं।
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