RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
मैंने धीरे से मेरा हाथ उसके गाउन के अंदर डाला। उसकी नाभि और उसके पतले पेट का जो उभार था उसको मैं प्यार से सहलाने लगा। मेरी पत्नी मेरे स्पर्श से काँप उठी। मैंने मेरे हाथ दीपा की पीठ के नीचे डाल दिए और उसे धीरे से बैठाया। उसे बिठाते ही उसका खुला गाउन नीचेकी और सरक गया और वह आगे और पीछे से ऊपर से नंगी हो गयी। तरुण जिसकी मात्र कल्पना ही तब तक करता था वह दीपा के कमसिन जिस्म को ऊपर से पूरा नंगा देख कर उसे तो कुबेर का खजाना ही जैसे मिल गया।
तरुण ने दीपा के दोनों स्तनों को ऐसे ताकत से पकड़ रखा था की जैसे वह उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहता था। कभी वह उन्हें मसाज करता था तो कभी निप्पलों को अपनी उँगलियों में दबाता तो कभी झुक कर एक को चूसता और दूसरे को जोरों से दबाता।
दीपा अब हम दोनों प्रेमियों का उसके मम्मों को चूसना और मलने की प्रक्रिया से इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी के उस से अपने जिस्म को नियत्रण में रखना मुश्किल हो रहा था। दीपा की उन्माद भरी अवस्था को मैं ऐसे महसूस कर पाता था की उसकी हम दोनों मर्दों के लण्ड सेहलानी की गति उसके उन्माद के साथ बढ़ती जाती थी। वह उन्मादपूर्ण अवस्था में कभी मेरी आँखों में आँखें मिला रही थी तो कभी तरुण की आँखों में। जब वह कुछ देर के लिए हमें बारी बारी से देखती थी तब दीपा की आँखों में वही प्यार और कामुकता भरा उन्माद नजर आरहा था। पर ज्यादातर तो वह आँखें मूँद कर ही हमारी हरकतों का आनंद ले रही थी।
मैं देख रहा था की वह हम दोनों के उसके स्तन मंडल के साथ प्यार करने से अब वह अपने कामोन्माद से एकदम असहाय सी लग रही थी। दीपा तब अपनी कमर और अपनी नीचे के बदन को उछालते हुए बोलने लगी, "दीपक, तरुण जल्दी करो, और चुसो जल्दी। ... आह्ह्ह्ह्ह... ओह्ह्ह्ह... मेरी चूंचियां और दबाव ओओफ़फ़फ़। तब मुझे लगा की वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच रही थी। मैंने तरुण को इशारा किया और हम दोनों उसके मम्मों को और फुर्ती से दबाने और चूसने लगे।
जल्द ही मेरी प्रियतमा एक दबी हुयी टीस और आह के साथ उस रात पहली बार झड़ गयी। उसकी साँसे तेज चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने अपनी आँखें खोली और हम दोनों की और देखा। कुछ देर तक कमरे में मेरी बीबी की गर्म साँसों की तेज गति के अलावा सब सुनसान था।
मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग, अब हम लोगों से क्या परदा? अब हमें अपना लुभावना सुन्दर जिस्म के दर्शन कराओ। अब मत शर्माओ। दीपा ने मेरी और देखा पर कुछ न बोली। मैंने तरुण को इशारा किया की अब वह काम हम ही कर लेते हैं। तरुण थोड़ा हिचकिचाता आगे बढ़ा और दीपा के बदन से गाउन निकालने लगा। दीपा ने शर्म के मारे अपना गाउन को तरुण को उतारने नहीं दिया और अपने हांथों में पकड़ रखा। मैंने दीपा को खड़ा होने को कहा तो वह शर्मा कर बोली, "आप पहले लाइटें बुझा दीजिये।"
यह बात मेरी समझ में नहीं आती। हमारी भारतीय स्त्रियाँ चुदवाने के लिए तो तैयार हो जाती है और चुदवाती भी है, पर अपने स्तनोँ का, अपनी चूत का दर्शन कराने में क्यों झिझकती है, यह मैं आज तक समझ नहीं पाया हूँ।
तरुण ने उठकर कमरे की सारी लाइटें बुझा दी, बस एक डिम लाइट चालू रक्खी। वह धीमी रोशनी भी कमरे में काफी प्रकाश फैलाये हुए थी। बाहर की रोड लाइटों का प्रकाश भी कमरे में आ रहा था। दीपा जब उठ खड़ी हुयी तब उसका गाउन अपने आप ही नीचे सरक गया और मेरी शर्मीली रूढ़ि वादी पत्नी हम दोनों के सामने पूर्णतः निर्वस्त्र हो गयी। पर फिर भी स्त्री सुलभ लज्जा के कारण दीपा ने अपना एक हाथ अपने स्तनों के ऊपर और दुसरा हाथ अपनी खूब सूरत चूत को ढकने के लिए आगे किया। मैंने मेरी बीबी के होंठों को हलके से चूमा और कहा, "दीपा अब छोडो भी। मैंने तो तुम्हारा पूरा बदन कई बार देखा है। तरुण बेचारा तुम्हारे नंगे बदन के दर्शन के लिए कभी से तड़प रहा है। तुम्हारी सुंदरता को उसे भी तो निहारने दो।"
मैंने हलके से दीपा की सुंदरता को ढकने के प्रयास करते हुए दीपा के दोनों हाथ उसकी चूत और स्तनों पर से हटा लिए। मैं अपने सपने में ही यह दृश्य की कल्पना कर सकता था। जो मेरे सामने भी ऐसी नंगी खड़ी होने में शर्माती थी वह मेरी बीबी उस रात मेरे और तरुण के सामने समूर्ण नग्न खड़ी हुई रति के सामान खूबसूरती, कामुकता , नजाकत और स्त्री सुलभ लज्जा का एक अद्भुत संगम सी दिख रही थी। यह उसका पहला अनुभव था जब वह अपने पति के अलावा किसी और व्यक्ति के सामने नंगी खड़ी थी।
तरुण और मैं दोनों दीपा के कमसिन जिस्म को देखते ही रह गए। हालाँकि मैंने कई बार मेरी पत्नीको निर्वस्त्र देखा था, परंतु उस रात वह जैसे मत्स्यांगना की तरह अद्भुत सुन्दर लग रही थी। तरुण ने दीपा को बड़ी तेज नजर से ऊपर से नीचे तक, आगे, पीछे सब तरफ से घूर कर देखने लगा। मेरी पत्नी शर्म से पानी पानी हुयी जा रही थी। एक तरफ वह अब अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो रही थी तो दूसरी और स्त्री सहज लज्जा उसे मार रही थी। वह अपनी नजर फर्श पर गाड़े हुए ऐसे खड़ी थी जैसे कोई अद्भुत शिल्पकार ने एकसुन्दर नग्न स्त्री की मूर्ति बना कर वहां रक्खी हो।
शायद कहीं ना कहीं उसके मन में यह जूनून था की वह कभी ना कभी तरुण को अपना यह रूप जरूर दिखाएगी ताकि तरुण को पता लगे की दीपा भी टीना से अगर ज्यादा नहीं तो कम सेक्सी भी नहीं थी। टीना की वह बिकिनी में मुश्किल से अपने सेक्सी बदन को छुपाती हुई तस्वीरों को देखकर अपने मन ही मन में दीपा की स्त्री सहज जलन का यह शायद रोमांचक नतीजा था।
तरुण बेचारा भौंचक्का सा दीपा के नग्न बदन को देखता ही रहा। उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया। जिसके नंगे बदन की कल्पना वह दिन रात सपनों में करता रहता था, वह उसके सामने नग्न खड़ी थी। तरुण ने दीपा का अर्ध नग्न बदन तो कई बार देखा था पर पूरा अनावृत बदन अपनी पूरी छटा में पहली बार उसने देखा और उसके चेहरे के भाव से लग रहा था की दीपा का साक्षात नंगा बदन उसकी कल्पना से भी कई गुना सुन्दर उसको लगा।
तरुण नंगी खड़ी हुई दीपा को देखता ही रह गया। दीपा की गालों, कंधे और छाती पर बिखरे हुए केश दीपा के उन्मत्त गुम्बज के सामान फुले हुए पर बिनाझुके खड़े हुए और दो चोटियों के सामान निप्पलों से आच्छादित स्तन मण्डल को छुपाने में असमर्थ थे। उस रोशनी में भी दीपा की स्तनों की चोटियों की चारों और फैली हुई एरोला अद्भुत कामुक लग रही थीं। दीपा के स्तनों की एरोला में कई फुंसियां खड़ी थीं जो दीपा की उत्तेजना की चुगली खा रहीं थीं।
दीपा की कमर ऐसे लग रही थी जैसे दो पर्वतों के बिच में खाई हो। उसके उरोज से उसकी कमर का उतार और फिर उसकी कमर से कूल्हों का उभार इतना रोमांचक और अद्भुत था की देखते ही बनता था। उसके सर को छोड़ कहीं बाल का एक तिनका भी नहीं था। उसके दो पांव के बिच में उसकी चूत का उभार कोई भी शरीफ आदमी का ईमान खराब कर देने वाला था। उसकी चूत के होठ एकदम साफ़ और सुन्दर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। उसकी चूत में से रस चू रहा था। वह दीपा के हालात को बयाँ रहा था।
|