RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
दुसरे दिन जिस समय महामाया का पूजनोत्सव समाप्त हुआ तो महापुजारी ने द्रविड़राज के कण्ठ-प्रदेश में वह पवित्र रत्नहार न देखकर पूछा-'श्रीसम्राट! आज वह पवित्र रत्नाहार आपके कंठ-प्रदेश में नहीं है। क्या आपने उसे कहीं रख दिया है...?'
'राजमहिषी को पुन: संतान की प्राप्ति होने वाली है—मैंने उनकी मंगल कामनार्थ वह पूजनीय रत्नहार उन्हें दे दिया है और उनसे कह दिया है कि रत्नहार की तनिक भी उपेक्षा न की जाए...।' द्रविड़राज ने कहा।
-- -- व्योम के दुकूल पर से एक प्रकाशमान स्वर्गगोला क्रमश: ऊपर उठकर संसार पर अपनी तेजमयी प्रतिभा एवं प्रखर प्रकाश बिखेरने लगा।
दिवस के शुभ प्रकाश में पुष्पपुर राजप्रासाद की चित्र-विचित्रत दीवारें कल्लौल करती-सी प्रतीत होने लगीं। महामाया के मंदिर का उच्चतम शिखर जो विविध कलाकारों द्वारा स्वर्ण एवं मणिमुक्ताओं से निर्मित था—भुवनभास्कर की प्रौद्भासित मुख-राशि का संयोग पाकर चमक उठा
—झकाझक। हिमराज के हिमाच्छादित शिखर उष्णता से पिघल-पिघलकर कल-कल निनाद करते हुए छोटे छोटे नदी-नालों में परिवर्तित होने लगे।
राजमहिषी त्रिधारा ने पलंग पर अपने कुल का वह पवित्र रत्नहार उतारकर रख दिया था और स्वयं कदाचित स्नान करने चली गई थी। वहां कोई न था।
उछलता-कूदता हुआ एक वानर न जाने कहां से राजप्रासाद के अंतप्रकोष्ठ में जा पहुंचा। रत्नहार की अद्भुत प्रौञ्चलता ने उसका मन अपनी और आकर्षित किया।
उसने आगे बढ़कर अपने खुरदरे हाथों द्वारा वह परम पवित्र रत्नहार उठा लिया। एक क्षण तक वह उसकी ओर अनिमेष दृष्टि से देखता रहा। पुन: उसने उसे अपने रोमपूर्ण कंठ में पहन लिया और अंतप्रकोष्ठ से बाहर आकर इतस्तत: वृक्षों पर उछलने-कूदने लगा।
नियति का चक्र सदैव परिचालित होता रहता है। भवितव्य होकर ही रहता है। द्रविड़राज के ऊपर जो भावी संकट आने वाला था, उसका यह संकेत था।
वृक्षों पर इतस्तत: क्रीड़ा करता हुआ वानर राज-प्रकोष्ठ से बहुत दूर निकल गया। एक सघन वृक्षलतादिपूर्ण उद्यान में पहुंचकर वह रुका। उसने गले का रत्नहार उतारकर हाथ में ले लिया और उसे उछाल-उछालकर कौतुक करने लगा। वृक्ष की एक मोटी शाखा पर बैठकर क्रीड़ा करता हुआ वह क्या जानता था कि जिस वस्तु को वह इतना तुच्छ समझ रहा है, वह है एक परम पवित्र रत्नहार, जिसकी एक-एक मणि, जिसकी एक-एक मुक्ता, प्रबल मंत्रों द्वारा अभिमन्त्रित की गई है और जिसका तनिक-सा अपमान प्रलय की सृष्टि कर सकता है।
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