RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
महापुजारी ने किंशुक को बहार जाने का सकेत किया 'श्रीसम्राट !
'...' द्रविड़राज ने स्थिर दृष्टि से महापुजारी के मुख की और देखा ।
'इस पवित्र रतनहार का अफमान हुआ है, इसकी व्यवस्था करनी होगी, अन्यथा जानते है ? प्रलय हो जायेगा शांतिपाठ परमावश्यक है... महापुजारी रुके, पुन: बोले- साथ ही यदि आपका न्याय है तो राजमिहषी ने असत्य ने असत्य भाषण कर जो गुरुतर अपराध किया है उसके- उसके लिए दंड की व्यवस्था करनी ही होगी, श्रीसम्राट ...।
द्रविड़राज धड़ाम से भूमि पर गिर पड़े।
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प्रात:काल राजमहिषी की जब निद्रा भंग हुई तो उनके शरीर में अत्यधिक पीड़ा थी। उनका हृदय न जाने किस भावी संकट की आशंका से कपित हो रहा था। इस समय वे गर्भवती थीं। गर्भावस्था के सात मास व्यतीत हो चुके थे।
यही कारण था कि हर समय उनके प्रकोष्ठ में कई परिचारिकायें उपस्थित रहती थीं।
परन्त राजमहिषी को महान आश्चर्य हुआ. यह देखकर कि इस समय एक भी परिचारिका उपस्थित नहीं है और प्रकोष्ठ का द्वार बाहर से बंद किया हुआ है।
राजमहिषी उठकर द्वार के पास आई और उन्होंने उसे खोलने का व्यर्थ प्रयत्न किया। उन्हें आश्चर्य हुआ एवं क्रोध भी! किसकी धृष्टता हो सकती है यह?
उन्होंने पार्श्व की छोटी-सी खिड़की खोलकर बाहर की ओर झांका। देखा, बर्हिद्वार पर सशस्त्र परिचारिकाओं का पहरा है।
राजमहिषी के पुकारने पर एक परिचारिका खिड़की के पास आई और झुककर अभिवादन करने के पश्चात् बोली—'मुझे दुख है कि राजमहिषी को प्रकोष्ठ से बाहर आने की अनुमति नहीं '......!
' साम्राज्ञी कांप उठी, क्रोध से।
'और न ही हमें राजमहिषी के समक्ष कोई वस्तु उपस्थित करने की आज्ञा है...।'
'किसकी आज्ञा है यह?' गरज पड़ी राजमहिषी।
'स्वयं श्रीसम्राट की...।' परिचारिका ने संयत स्वर में कहा और पुन: अभिवादन कर लौट गई।
राजमहिषी दुःखातिरेक से व्यग्र होकर धम्म से पलंग पर गिर पड़ी।
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'कैसे कर सकूँगा यह सब महापुजारी जी। जिसे हृदय दिया है, उसे राजदण्ड कैसे दे सकूँगा..?' अपने प्रकोष्ठ में बैठे हुए द्रविड़राज शोकमग्न हो रहे थे।
उनके नेत्रों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होकर भूमि का सिंचन कर रही थी। 'हे विधाता...! राजमहिषी ने यह सब क्या किया...? कैसा अनर्थ उपस्थित कर दिया उन्होंने?'
'दण्ड देना होगा, श्रीसम्राट।' महापुजारी बोले- यदि आप अपने न्याय को अटल रखना चाहते हैं तो ऐसा करना ही होगा।'
'नहीं कर सकता मैं ऐसा, महापुजारी जी! आपके चरणों पर मस्तक रखकर कहता हूं कि यह कार्य करने में सर्वथा असमर्थ हूं में। क्षमा प्रदान कीजिये...।' द्रविड़राज रो पड़े—'राजमहिषी का न्याय में आपके ऊपर छोड़ता हूं। आप ही उनका न्याय कीजिये...आप ही विचारिये-जिस मुख से मैंने 'प्रिय' जैसा शब्द उनके लिए प्रयोग किया है, उसी मुख से कठोर वाक्य कैसे निकाल सकता
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