RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
वह पवित्र रत्नहार देखते ही राजमहिषी पर जैसे अकस्मात् वज्रपात हुआ। उनके नेत्रों के समक्ष घनीभूत अंधकार छा गया। अपनी इस दुर्दशा का कारण आज उनकी समझ में आया। वे महान पश्चाताप से दग्ध हो उठीं।
महामंत्री का स्वर पुन: सुनाई पड़ा—'श्रीसम्राट पुन: पूछते हैं कि राजमहिषी उस रत्नहार को पहचान सकीं या नहीं?
..............' यवनिका की ओट से परिचारिका का स्वर आया—'राजमहिषी ने इस पवित्र रत्नहार को पहचान लिया है।'
द्रविडराज की भंगिमा उद्दीप्त हो उठी। उन्होंने झककर महामंत्री के कान में जाने क्या कहा। महामंत्री उच्च स्वर में बोले—'श्रीसम्राट दृढ़ स्वर में आज्ञा देते हैं कि साम्राज्ञी शीघ्र बतायें कि उन्होंने स्वयं श्रीसम्राट से असत्य कहकर उन्हें अंधकार में रखने का दुस्साहस क्यों किया?'
'राजमहिषी लज्जित हैं इसके लिए...।' परिचारिका ने उत्तर दिया। '
उन्हें दण्ड का भागी होना पड़ेगा।'
'राजमहिषी को सहर्ष स्वीकार है।'
महामंत्री बैठ गए। द्रविड़राज ललाट पर उंगली रखकर न जाने क्या विचार करने लगे। राजसभा में सूचीभेद्य शांति थी। एक शब्द भी सुनाई नहीं पड़ रहा था।
महापुजारी पौत्तालिक स्थिर आसनासीन थे। सभी सभासद कम्पित हृदय से उन वाक्यों की प्रतीक्षा कर रहे थे, जिन पर राजमहिषी का भविष्य अवलम्बित था।
एकाएक द्रविड़राज अपना स्वर्णासन त्याग उठ खड़े हुए। सभासदों का हृदय अज्ञात आशंका से धड़क उठा, तीव्र वेग से।
द्रविड़राज ने मन-ही-मन महापुजारी को प्रणाम किया, पुन: संयत वाणी में बोले—'राजमहिषी को आजन्म निर्वासन की दण्डाज्ञा की जाती है।'
'श्रीसम्राट....।' एकाएक सभी सभासद आवेग से उठ खड़े हुए।
'यथास्थान आसीन हों, आप लोग...।' द्रविड़राज का कठोर गर्जन सुनाई पड़ा—'राजाज्ञा का दृढ़ता से पालन होगा।'
'राजमहिषी को राजदण्ड स्वीकार है। परिचारिका का स्वर कर्णगोचर हुआ। यवनिका की ओट से राजमहिषी के सिसकने का अस्फुट स्वर सुनाई पड़ा—'राजमहिषी श्रीयुवराज से मिलना चाहती हैं।'
'नहीं।' द्रविड़राज बोले-'एक कलुषित आत्मा को एक पवित्र आत्मा से साक्षात् करने की आज्ञा नहीं दी जा सकती। निर्वासन की आज्ञा का तुरंत पालन होना चाहिये?'
यवनिका की ओट में खड़ी राजमहिषी निधारा ने अपने नेत्र पोंछे और उस पवित्र रत्नहार को माथे से लगाकर अपने कंठ प्रदेश में डाल लिया।
दो किरात आगे बढ़कर राजमहिषी के साथ हो लिए। आज तक जो ऐश्वर्य की सुखमयी गोद में जीवन व्यतीत करती आ रही थी, वह अपने पति से अटल न्याय की रक्षार्थ आजन्म निर्वासन का दण्ड सहन करने के लिए सहर्ष प्रस्तुत हो गई।
द्रविड़राज चेतनाहीन होकर सिंहासन पर लुढ़क पड़े। महामंत्री घबराकर सिंहासन की ओर दौड़ पड़े।
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