RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'कौन बना था सम्राट...? यह पर्णिकं ! नायक पुत्र घृणा से मुख विकृत कर बोला- 'जिसके जन्म, वंश का पता नहीं, जिसके पिता का पता नहीं, वह सम्राट बने। जिसकी माता...।'
'सावधान...!' पर्णिक ने दौड़कर नायक पुत्र के मुख पर हाथ रख दिया—'माताजी के लिए आगे एक भी शब्द निकाला तो जीभ पकड़कर मरोड़ दूंगा...।'
'तुम अनाथ मेरी जीभ पकड़कर ऐंठ दोगे...? जाओ, हट जाओ सामने से, नहीं तो...।'
उसी क्षण क्रुद्ध पर्णिक ने अपने हाथ की लकड़ी से नायक के पुत्र की पीठ पर कई प्रहार कर दिये।
नायक पुत्र क्रोध से बड़बड़ाता हुआ अपने पिता के पास गुहार लेकर चला गया। कुछ ही देर बाद वह अपने पिता के साथ लौटा।
'क्यों पर्णिक ! इतना साहस बढ़ गया है तुम्हारा?' नायक ने क्रोधमिश्रित स्वर में कहा।
'देखो न पितृव्य! इसने मेरी माता के सम्मान पर कीचड़ उछाला था...।' पर्णिक ने अभियोग उपस्थित किया।
'बड़ी आई है तेरी माता...? नायक गरज पड़ा—'एक दिन अनाथ होकर, इधर-उधर वनस्थली में भटकती हुई दर-दर की ठोकरें खाती हुई, तुझे गर्भ में धारण किये यहां आई थी वह। हम लोगों ने उसे भोजन दिया था—आश्रय दिया—वही आज बड़ी सम्मान वाली बन गई?'
'पितृव्य...!'
'चुप रहो। आज से यदि किसी बालक के मुंह लगा तो किरात-समुदाय से निकाल बाहर करूंगा। इतना बड़ा हो गया, उच्छंखलता न गई। जिसके पिता का ठिकाना नहीं, वह नायक के पुत्र की बराबरी करे...? जा, भाग जा...।'
उसके उज्ज्वल मुखमंडल पर प्रखरतर कालिमा आछन्न हो गई। अपमान से जर्जर हृदय लिए पर्णिक अपनी माता के पास लौट चला।
उसकी माता द्वार देश पर चिन्ता-निमग्न बैठी हुई थी। अपने पुत्र को कालिमामंडित मुख लिये आया देखकर वह खड़ी हुई और व्यग्रता से पूछ बैठी —'क्या हुआ वत्स...?'
'मेरे पिता कौन हैं माताजी...?' पर्णिक ने आते ही पूछा। उसके मुख पर युवावस्था की गंभीरता नर्तन कर रही थी।
'आज से पहले कभी नहीं पूछा था, आज क्या बात हो गई है जो...?'
'सब तुम्हारा अपमान करते हैं माताजी...! कहते हैं कि...!'
'कहने दो वत्स...।' उसकी माता ने एक दीर्घ नि:श्वास छोड़कर कहा—'हमारा जीवन ही अपमान, अनादर एवं अवहेलना सहन करने के लिए हैं। इस संसार में अपना है ही कौन? जाने दो पर्णिक, जो कुछ भी जिसने कहा हो, उस पर ध्यान न दो। आज मैं आश्रयहीन होकर तुम्हारा नन्हा-सा शरीर अपने गर्भ में धारण किये यहां आई थी, उस समय न इन किरातों ने मुझ पर असीम दया प्रदर्शित की थी। यह उन्हीं की कृपा का प्रतिफल है वत्स, कि तुम आज इतने बड़े होकर मुझ दुखियारी का संसार उज्ज्वल कर रहे हो उनकी बातों पर ध्यान देना कृतघ्नता होगी...।'
'तुम अभी तक मुझे अशक्त ही समझती हो, माताजी! तुम भूल गई हो कि तुम्हारे आशीर्वाद से अब तुम्हारा पुत्र तुम्हारे अपमान का प्रतिशोध लेने योग्य हो गया है...।'
'किससे प्रतिशोध लोगे?'
'जो भी तुम्हारा अपमान करेगा, जो भी तुम्हें अपशब्द कहेगा।'
'पर्णिक...।' पर्णिक का एक साथी दौड़ता हुआ आया— 'तुम्हारे चले जाने पर नायक ने तुम्हें 'जारपुत्र' कहा था।'
'सुन रही हो माताजी! सुन रही हो तुम? अभी भी कहती हो कि तुम्हारा अपमान सुनकर मैं रक्त के चूंट पीकर सहन कर लूं, नहीं। यह नहीं होगा...मैं आज ही, अभी ही नायक से अपनी माता के अपमान का प्रतिशोध लूंगा...।' पर्णिक कृपाण लेने अपनी झोपड़ी में दौड़ गया।
'वत्स....!'
'मझेरोको मत. माताजी। मेरे रक्त में उत्पन्न हो गई दाहक-अग्नि को अंतरा में ही शमन न होने दो...मुझे आशीर्वाद दो माताजी! कह दो अपनी देवी वाणी से कि वत्स ! विजय लाभ कर लौटो।'
'वत्स! अभी तुम बालक हो...वह किरात समुदाय का नायक है। उसकी प्रबलता तुम किस प्रकार सहन कर सकोगे?'
'विलम्ब हो रहा है...मुझे आज्ञा दीजिये माताजी!'
'जाओ वत्स...परन्तु...।'
पर्णिक कृषाण लेकर तीव्र गति से दौड़ चला। हताश होकर पर्णिक की मां भूमि पर बैठ गयी। उसका मुख अश्रुप्लावित हो उठा।
'नायक...!' गरजकर बोला पर्णिक, उसके हाथ का कृपाण सूर्य के प्रकाश में चमक उठा —'तुमने अपशब्द कहकर मेरी माता का अपमान किया है। आज पर्णिक उसका प्रतिशोध लेने आया है।"
'लौट जा।' नायक क्रोध से चिल्ला उठा—'जाकर अपनी माता की गोद में मुंह छिपा ले, अज्ञानी बालक! नायक की क्रोधाग्नि में भस्म होने की चेष्टा न कर...।'
'घमंडी का सर सदा नत होता आया है नायक! आज तुम्हारा भी वही परिणाम होने वाला है। आज एक अनाथ का शौर्य देख लो, देख लो नायक कि अकारण किसी का अपमान करने से किस प्रकार दैवी प्रकोप टूट पड़ता है—किस प्रकार विद्युत का प्रबल आलोक भयानक अग्न बनकर गर्व को भस्मसात कर देता है।'
मेघ-गर्जन जैसी ललकार सुनकर किरात समुदाय के कितने ही व्यक्ति घटनास्थल पर जा पहुंचे।
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