RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
पर्णिक की धृष्टतापूर्ण बात सुनकर कुछ किरात उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़े, परन्तु नायक गरज उठा—'दूर रहो। आज इस दुष्ट के प्राण शरीर से अलग होने वाले हैं—आने दो इसे मेरे पास।
'नायक! तुम...।' एक वृद्ध किरात बोला—'तुम एक अबोध बालक पर प्रहार करोगे? हत्या का अपराध न लगेगा तुम पर?'
'समझाओ उसे ! समझा दो कि नायक से उलझना परिहास नहीं है।'
परन्तु पर्णिक ने किसी की न सुनी। उसने मन-ही-मन अपनी माता को प्रणाम किया, तत्पश्चात् कृपाण लेकर टूट पड़ा नायक पर।
जिस अबोध बालक को नायक ने साधारण बालक-मात्र समझा था—वह था शस्त्र निपुण एक अपूर्व वीर।
दो-चार प्रहार में ही नायक को ज्ञात हो गया कि पर्णिक से लोहा लेना खेल नहीं।
उपस्थित किरात समुदाय पर्णिक की वीरता देखकर विमुग्ध था। पर्णिक का कृपाण तीव्र वेग से नाच रहा था। नायक का कृपाण भी अद्भुत गति से परिचालित था, परन्तु पर्णिक की मां ने उसे जिस प्रकार से शस्त्र-संचालन का अभ्यास कराया था, वह अद्वितीय था, अनुपम था—अद्भुत था।
तीव्र शस्त्र संचालन से नायक का कृपाण एकाएक मध्य से विच्छिन्न हो गया। पर्णिक ने भी अपना कृपाण फेंक दिया और दोनों विकट प्रतिद्वन्द्वी मल्लयुद्ध करने लगे। पर्णिक का शौर्य अपूर्व था, उसका पौरुष अद्भुत था, उसकी वीरता अनुपम थी।
उसने कई बार नायक के पृष्ठ भाग को पृथ्वी का चुम्बन करा दिया। किरात समुदाय आश्चर्यान्वित होकर वीर पर्णिक की वीरता देख रहे थे। पर्णिक की मुष्टिका अबाध गति से नायक के मुख पर, छाती पर, अंग-प्रत्यंग पर पड़ रही थी।
नायक की शक्ति क्रमश: क्षीण होती जा रही थी। एकाएक वह अर्द्धचेतनाहीन होकर भूमि पर गिर पड़ा।
पर्णिक ने उसे उठाया—'कायर कहीं का। कहां गई तेरी वह वीरता? कहां गया तेरा वह घमंड? कहां गई 'जारपुत्र' कहने वाली तेरी वह निकृष्ट जिह्वा?'
नायक शिथिल हो रहा था—'मुझे क्षमा करो पर्णिक...!' उसने दीनतायुक्त वाणी में कहा।
'क्षमा करना मैंने नहीं सीखा। उठ ! प्रहार करने की शक्ति हो तो प्रहार कर नहीं तो मेरी माता के अपमान करने वाले शब्दों को वापस ले नीच! अधम! पापी! कायर!!'
पर्णिक ने कई बार नायक के शरीर पर पदाघात किया। नायक पूर्णतया अशक्त हो चुका था। 'देख ले दुराचारी।' पर्णिक ने गर्जना की—'आज एक आश्रयहीन बालक का शौर्य देख ले...आज देख ले कि एक देवी का अपमान करने का कैसा कुपरिणाम होता है, आज देख ले कि प्रलय का आह्वान करना कितना भयंकर होता है। आज देख ले कि...।'
'उफ तेरी जिह्वा।' पर्णिक पुन: हंकार उठा—'तेरी जिह्वा ने ही तो मेरी मां का अपमान किया था। तेरी जिह्वा ने ही तो नायकत्व के गर्व से मुझे 'जारपुत्र' कहा था। तेरी जिह्वा ने ही एक असहाय देवी का अपमान करके प्रलय का आह्वान किया था।'
पर्णिक ने दौड़कर अपना कृपाण उठा लिया और नायक के वक्ष पर जा बैठा—'आज तेरी जिह्वा का समूल नाश कर दूंगा।'
नायक कांप उठा, उस युवक की क्रोधपूर्ण मुखाकृति अवलोकन कर।
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