RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'समल विनाश कर दंगा-ताकि पुन: किसी अभागे को यह जिह्वा अपशब्द न कह सके ताकि फिर किसी पूजनीय देवी का अपमान न कर सके।'
क्रोध से पागल पर्णिक ने अपने तीव्र कृपाण द्वारा नायक की जिह्वा काट ली। उपस्थित किरात समुदाय ने अपनी आंखें बंद कर ली। किसी को भी उस विचित्र दुस्साहसी युवक को रोकने का साहस न हुआ। कैसे हो सकता था साहस?
जिस नायक ने किरात समुदाय के सभी सदस्यों को अपनी निरंकुशता द्वारा वशीभूत कर रखा था-जब वही उस वीर युवक की क्रोधाग्नि में भस्मीभूत हो रहा था तो दूसरा कौन अपने प्राणों पर खेलकर पर्णिक के कार्य में बाधा पहुंचा सकता था।
क्रोधांध पर्णिक ने नायक की टांग पकड़ ली और उसे घसीटता हुआ अपने झोंपड़े की ओर चल पड़ा।
उपस्थित किरात-समुदाय ने बिना एक शब्द बोले उस वीर युवक का अनुसरण किया।
'लो माताजी! यही है वह दुराचारी नायक...।' पर्णिक ने नायक के शरीर को अपनी माता के चरणों पर धकेल दिया—'और यह है उच्छृखल की जिह्वा'
पर्णिक ने नायक की कटी हुई रक्तरंजित जिह्वा अपनी माता के समक्ष भूमि पर फेंक दी। उसकी माता ने अपने दोनों नेत्र आवेग में बंद कर लिए। 'वत्स...!' वह अस्त-व्यस्त वाणी में बोली।
'यह है तुम्हारे प्रखरतर अपमान का प्रतिशोध...।' पर्णिक ने कहा।
उसकी माता के नेत्रों से प्रेमाश्नु उमड़ पड़े।
'माताजी! तुम्हारा पुत्र अब इस योग्य हो गया है कि तुम्हारी सेवा कर सके। तुम जिस वेदना से, जिस व्यथा से, अहर्निश विदग्ध होती रहती हो, उसे मुझे बताओ। मैं प्राण देकर भी तुम्हारी आकांक्षा पूर्ण करूंगा...बोलो माताजी, बोलो...।' "......
' उसकी माता मौन ही रही। केवल उसने एक बार अपने पुत्र के देदीप्यमान मुखमण्डल पर गर्वपूर्ण दृष्टि निक्षेप की।
'वत्स पर्णिक...।' एक वृद्ध किरात बोला—'आज से तुम किरात-समुदाय के नायक हुए। तुम शौर्यवान हो—बुद्धिमान हो, अब से तुम जो कुछ आज्ञा दोगे, वह किसी को भी अमान्य न होगी।'
'नायक पर्णिक की जय...।' किरात समुदाय नाद कर उठा। उसी दिन से पर्णिक किरात समुदाय का नायक हो गया।
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