RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
अब राजोद्यान में केवल किन्नरी रह गई। वह राजोद्यान में इतस्तत: घूमकर मनोरंजन करने लगी।
एकाएक किन्नरी के पैर में एक तीक्ष्ण कांटा चुभ गया। किन्नरी एक आह छोड़कर भूमि पर बैठ
उसी समय चरण-पादुका की ध्वनि सुनाई पड़ी और उद्दीप्त भंगिमां लिए महापुजारी ने वहां पदार्पण किया।
किन्नरी ने महापुजारी का चरण स्पर्श किया। महापुजारी की तीव्र दृष्टि किन्नरी के मुख पर पड़ी—'श्रीयुवराज यहां आये थे...?' उन्होंने तीव्र स्वर में पूछा।
किन्नरी का सारा शरीर भय से सिहर उठा, परन्तु उसने तुरंत ही अपना सर हिलाकर यह प्रकट किया कि युवराज यहां नहीं आये थे।
महापुजारी ने ऐसी भंगिमा प्रदर्शित की, जैसे उन्हें उसकी बात पर विश्वास न हुआ हो। 'बोलो निहारिका ! श्रीयुवराज यहाँ आये थे या नहीं?'
परन्तु निहारिका के कुछ कहने से पहले ही, महापुजारी की दृष्टि निहारिका के कंठ में पड़ी युवराज की दी हुई मणिमाला पर जा पड़ी।
उनके नेत्र प्रज्जवलित हो उठे—'हे ! उन्होंने विकट रूप से हुंकार-भरी तो श्रीयुवराज यहां अवश्य आये थे—तुम्हारे कंठ में पड़ी हुई मणिमाला इसकी साक्षी है।' किन्नरी को पैरों तले से पृथ्वी जैसे खिसकती-सी मालूम पड़ी।
अभी तक उसने उस मणिमाता पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया था और न तो उसे छिपाने का ही कोई प्रयत्न किया था।
तनिक-सी भूल ने अनर्थ कर डाला। बिना एक शब्द बोले महापुजारी घूम पड़े और क्रोधपूर्ण भंगिमा से राजोद्यान के बाहर हो गये। किन्नरी का हृदय धड़कने लगा। उसने कसकर वह मणिमाला अपने हृदय से दबा ली, जैसे कोई बलपूर्वक उसे छीनने की चेष्टा कर रहा हो।
-- महापुजारी को तीव्र वेग से आते हुए देखकर द्वारपाल पार्श्व में हटकर खड़ा हो गया और झुककर उसने महापुजारी की चरण धूल मस्तक से लगाई।
'श्रीसम्राट को सूचित करो कि महापुजारी जी इसी समय उनसे मिलने को उत्सुक हैं। कार्य अत्यंत आवश्यक है...।' महापुजारी जी ने उतावली के साथ कहा।
द्वारपाल भीतर चला गया, वह क्षण-भर पश्चात् लौटकर बोला—'पधारिए।' द्रविड़राज राज भी उन्हीं कष्टमयी विचारों में तल्लीन थे। उनके नेत्रों में दुखातिरेक से आज भी अश्रु-कण विद्यमान थे। परन्तु द्वारपाल ने सुनकर कि महापुजारी उनसे इसी समय मिलने को उत्सुक हैं, उन्होंने अपने नेत्र पोंछ लिए-भंगिमा ठीक कर ली।
महापुजारी आये। सम्राट ने उनकी चरण-धूलि मस्तक से लगाई।
महापुजारी गरज उठे—'श्री सम्राट ! देख रहा हूं कि जो कभी द्रविड़कुल के इतिहास में नहीं हुआ, वहीं अब होने जा रहा है। जिस बात की आशंका मेरे हृदय में बहुत पूर्व से ही विराजमान थीं, वह विश्वास में परिणत हो गई है।'
.................।' द्रविड़राज निस्तब्ध रहे।
'श्रीयुवराज के कार्यों की और मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ श्रीसम्राट !' महापुजारी बोले- वे किन्नरी निहारिका के अत्यधिक सम्पर्क में आ गये हैं। एक दिन मैंने उनको सावधान कर दिया था, परन्तु...।'
'क्या नारिकेल के विषय में आपकी यह धारणा है, महापुजारी जी...?' सम्राट आश्चर्यचकित हो उठे।
'श्रीसम्राट का अनुमान सत्य है।'
'महामाया करें यह धारणा असत्य हो, महापुजारी जी...। नारिकेल सलिल जैसा निर्मल एवं चन्द्रिका जैसा धवल है...।'
'श्रीसम्राट...!' तीव्र स्वर में बरस पड़े महापुजारी—'यौवन का आवेग आधी के समान होता है। यह न भूल जाइये कि इस अवस्था में कोई भी प्रलयंकारी कार्य असम्भव नहीं।'
'क्षमा...। मुझे क्षमा करें, महापुजारी जी। मैं अभी नारिकेल को बुलाकर पूछता हूं।'
'उन्होंने अपनी मणिमाला प्रदान की है उसे।'
'मणिमाला...?' सम्राट का स्वर उत्तेजित हो उठा—'उसने मणिमाला प्रदान की है? वह अपनी वंश-मर्यादा विस्मृत कर बैठा है? अपने धवल वंश पर कलंक-कालिमा लगाना चाहता है बह...?'
क्रोधित द्रविड़राज आगे बढ़कर द्वार के सन्निकट चले आये—'पायक...।' और विकट करतल ध्वनि की उन्होंने।
'आज्ञा श्रीसम्राट...'' द्वारपायक ने सम्राट को अभिवादन किया। 'युवराज को बुलाओ—अभी।'
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'जी हां! अभी-अभी महापुजारी सीधे श्रीसम्राट के पास गए हैं। मुझे ठीक से पता है...अब क्या होगा?' चक्रवाल ने शंकित स्वर में कहा।
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