RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
"तुम धन्यवाद के पात्र हो वीरो। द्रविड़ साम्राज्य को आज तुम पर भी भरोसा है—तुम्हीं उसके आधार-स्तम्भ हो...यह तो लगभग तुम सभी लोगों को ज्ञात होगा कि पिताजी की आज्ञानुसार मेरा रणभूमि में आना प्रच्छन्न रखा गया है। यहां आते समय मुझे यह भी आदेश दिया है कि में केवल शिविर में बैठकर युद्ध का संचालन करूं। रणक्षेत्र में तब तक न जाऊं, जब तक कि कोई आवश्यक कार्य न आ पड़े। ऐसी आज्ञा उन्होंने क्यों दी है, यह तो वहीं जानें, परन्तु उनकी आज्ञा का पालन करना मेरा धर्म है।'
'रणक्षेत्र में आपके जीने की कोई आवश्यकता नहीं है, श्रीयुवराज। आप शिविर में बैठे-बैठे ही युद्ध का संचालन करें। युद्ध के समाचार हम प्रत्येक क्षण विश्वस्त सैनिकों द्वारा आपके पास भेजते रहेंगे, आप अपनी आज्ञा भी उन्हीं के द्वारा हमारे पास भेज दिया कीजियेगा। यदि कोई आवश्यक आज्ञा हमारे पास भेजनी हो तो उसके लिए जाम्बुक है ही...।' धेनुक ने कहा।
"ऐसी दशा में रणक्षेत्र के लिए एक दुसरे संचालक की आवश्यकता—आपमें से कौन-सा वीर अपने जीवन को उत्सर्ग करने हेतु प्रस्तुत है? कहकर युवराज ने चारों ओर दृष्टि निक्षेप की
उपस्थित वीरों ने धेनुक की और देखा। धेनुक का प्रशस्त वक्षस्थल गर्व से फूल उठा। वह उठ खड़ा हुआ
और बोला—'यह मेरे लिए परम सौभाग्य का विषय होगा, यदि श्रीयुवराज युद्ध-भूमि में सैन्य संचालन का भार मुझे प्रदान करें मैं प्राणपण से युवराज की प्रेषित आज्ञाओं का पालन करूंगा।' 'तुम उपयुक्त प्रत्याशी हो। मैं तुम्हें ही रणक्षेत्र का संचालक नियुक्त करता हूं।' युवराज ने कहा। हर्षातिरेक से धेनुक चिल्ला उठा—'श्रीयुवराज की जय...।'
'कल प्रात:काल अपनी सेना आक्रमण के लिए प्रस्तुत रखो...।' युवराज ने आज्ञा दी।
यह आज्ञा दी है....श्रीयुवराज ने यह आज्ञा दी है...धेनुक को महान आश्चर्य हुआ। उस समय आर्य एवं द्रविड़ सेनायें मदोन्मत्त मेघ की तरह गर्जना करती हुई प्रबल वेग से एक दूसरे पर आक्रमण कर रही थीं।
दोनों ओर के वीर एक-दूसरे पर विजय पाने की अभिलाषा से अपनी समस्त शक्ति को एकत्र कर युद्ध करने में तल्लीन थे।
उस समय रणक्षेत्र में जैसे रक्त की सरिता प्रवाहित हो रही थी। युद्ध भयानक बिन्दु पर पहुंच गया था।
युवराज की आज्ञानुसार धेनुक द्रविड़ सेना का संचालन कर रहा था।
वह महान वीर कृपाण भांजता हुआ जिधर भी निकल जाता उधर ही दस-बीस मस्तक धराशायी होते हुए दृष्टिगोचर होते।
द्रविड़ सेना सम्पूर्ण शक्ति से वीरता के साथ आर्य सेना का सामना कर रही थी। युवराज के शिवर से आज्ञा पत्र लेकर एक सैनिक धेनुक के पास आया। उस आज्ञा-पत्र में युवराज ने आदेश दिया था कि वह तुरंत ही अपने सेना के साथ दक्षिण पश्चिम के मोर्चे पर चला जाए।
अपने उस स्थान पर जहां इस समय वह युद्ध कर रहा है, थोड़ी-सी सेना छोड़ दे। यही था युवराज का आदेश और उसी ने धेनुक को आश्चर्यचकित कर दिया था। वह समझ नहीं सका था कि युवराज के इस आदेश का तात्पर्य क्या है? परन्तु युवराज के आदेशानुसार उसे कार्य करना ही था। उसने तुरंत ही अपनी सेना एकत्र की और केवल थोडे-से सैनिकों को उस स्थान पर छोड़ शेष को लेकर दक्षिण-पश्चिम के मोर्चे पर चला आया।
वहां पहुंचते ही वह आश्चर्यचकित रह गया, यह देखकर कि उस मोर्चे पर गुप्त रीति से आक्रमण करने के लिए आर्यों की एक बड़ी सेना चली आ रही है।
वह सोचने लगा— श्रीयुवराज की सैन्य संचालन की बुद्धि अद्भुत है। अवश्य ही उन्हें गुप्तचरों द्वारा इस आक्रमण का समाचार मिल गया होगा, तभी तो उन्होंने यह आदेश दिया।
दक्षिण-पश्चिम के मोर्च पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में आर्य सेना का संचालन स्वयं पर्णिक ने किया था।
परन्तु द्रविड़ सेना पूर्ण रूप से प्रस्तुत थी। प्राणों की आहुति देकर युद्ध करने वाले द्रविड़ वीरों एवं वीरवर धेनुक के प्रबल आक्रमण के समक्ष आर्य-सेना के पैर उखड़ गए।
रात्रि के आगमन के साथ ही युद्ध बंद हो गया। आज की विजय का श्रेय द्रविड़ सेना को मिला।
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