RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
-- अपने शिविर में बैठे हुए युवराज अग्रिम कार्यक्रम पर विचार करने में निमग्न थे शिविर के द्वार पर युवराज के विश्वस्त सैनिक पहरा दे रहे थे। रणक्षेत्र में रणचंडी नृत्य कर रही थी। युद्ध भयानक गति पर था।
'क्या है...?' युवराज ने पूछा उस सैनिक से जिसने अभी-अभी ही युद्ध-क्षेत्र से आकर युवराज को अभिवादन किया था।
'युद्ध भयंकर रूप धारण करता जा रहा है...।' सैनिक ने नतमस्तक होकर कहा।
'हमारी सेना का क्या समाचार है?' प्राणपण से शत्रुओं का सामना कर रही है—धेनुक ने पूछा है कि सम्पूर्ण सेना उसी स्थान पर रहे या अन्य दिशा में भेज दी जाये?'
'किस भाग पर युद्ध हो रहा है...?'
'दक्षिण भाग पर।
'अभी उसी स्थान पर सेना रहने दो।' युवराज ने कहा।
सैनिक अभिवादन कर चला गया।
'क्या है?' एक दूसरे गुप्तचर को प्रवेश करते हुए देखकर युवराज ने पूछा।
'पता लगा है कि उत्तरी भाग पर शत्रु सेना बहुत शीघ्र आक्रमण करने वाली है।' गुप्तचर ने कहा।
'बहुत शीघ्र?'
'जी हां। वहां का प्रबंध करना अत्यंत आवश्यक है। यही भाग हमारे लिए सबसे बड़े महत्त्व का है, क्योंकि हमारे गुप्त मार्ग का द्वार यहीं पर है।'
"मैं शीघ्र ही प्रबंध करता हूं...।' युवराज ने कहा- 'बाहर से एक सैनिक बुलाओ।'
गुप्तचर बाहर जाकर एक सैनिक के साथ पुन: लौट आया, सैनिक ने युवराज को अभिवादन किया।
'देखा' युवराज ने कहा-'तुम अभी अश्वारूढ़ होकर धेनुक के पास जाओ और कहो कि आधी सेना दक्षिण भाग पर रख कर, शेष आधी ओर उत्तरी भाग पर भेज दे। बहुत ही गुप्तरीति से यह कार्य हो। सेना उत्तरी भाग की ओर अत्यंत शीघ्र एवं शांतिपूर्वक प्रस्थान करें और प्रछन्न रीति से जाकर गुप्त मार्ग पर छिपा रहे। कुछ लोग पहाड़ी गुफाओं एवं झाडियों का आश्रय लेकर उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करें ताकि आक्रमणकारियों को यह ज्ञात हो जाये कि वह स्थान निर्जन एवं जनशून्य है। जब शत्रु सेना घाटी में से आने लगे तो उन पर तीरों को अनवरत वर्षा कर उसे धाराशायी बना दें, परन्तु शब्द जरा भी न हो और न ही शत्रुगण यही जान सकें कि यह तीरों की वर्षा किधर से हो रही है—नहीं तो हमारा गुप्त मार्ग शत्रुओं पर प्रकट हो जायेगा।
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'पराजय...! पराजय...।' पर्णिक हाथ मल रहा था जोरों से एवं आर्य सम्राट आश्चर्यचकित होकर चिंतामान बैठे थे...सब ओर पराजय ही पराजय, आज उत्तरी भाग पर हमें जैसी लज्जाजनक पराजय उठानी पड़ी—वह वर्णनातीत है। हमारी सेना जिस समय वहां पहुंची उस समय उस मार्ग पर एकदम नीरवता छाई हुई थी। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह स्थान जन-शून्य है, परंतु थोड़ा और आगे बढ़ते ही हमारी सेना पर तीरों की भयंकर वर्षा होने लगी। कुछ पता ही न लगता था कि आक्रमणकारी किस और हैं।
'अद्भुत है द्रविड़ सेना का वह गुप्त संचालक...।' आर्य सम्राट विस्फारित नेत्रों से चिंतातुर स्वर में बोला।
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