RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
बारह
अपने शिविर में बैठे थे युवराज नारिकेल और उनके सामने नतमस्तक खड़ा था सेनानायक धेनुक ।
"मैं तुमसे बहत प्रसन्न ह, वीर धेनुक...।' युवराज बोले-'मेरी आज्ञानुसार युद्धभूमि में अत्युत्तम सैन्य-संचालन का परिचय दिया है तुमने। आर्य-सम्राट को आज मालूम हो गया होगा कि द्रविड़ों में रण-कौशल का अभाव नहीं है।'
'यह सब आपके योग्य-संचालन का परिणाम है श्रीयुवराज नहीं तो मुझमें इतनी योग्यता कहां।' धेनुक ने नम्रतापूर्वक युवराज नारिकेल के सामने सर झुकाया ओर तब अपनी खुली हुई हथेली युवराज के आगे बढ़ा दी।
चौंक पड़े युवराज। धेनुक की हथेली पर पड़े हुए मूल्यवान रत्नहार को देखकर।
'क्या है यह...?' पूछा युवराज ने।
'विद्रोही किरात नायक के गले का रत्नहार है यह—आज युद्ध करते समय उसके गले से यह रत्नहार टूटकर जमीन पर गिर पड़ा था—मैंने देखा तो उसे उठा लिया—आश्चर्यजनक है यह रत्नहार श्रीयुवराज। धेनुक ने कहा।
'किरात नायक का रत्नहार आश्चर्य...!' युवराज रत्नहार हाथ में लेकर ध्यानपूर्वक देखने लगे —'परन्तु इस पर यह देखो।'
'मैं सब देख चुका हूं युवराज।'
'देख चुके हो तुम...? तुमने देखा कि इस रत्नहार के प्रत्येक मणि पर का वह चिन्ह..द्रविड़ कुल का पवित्र चिन्ह है।'
सबने आश्चर्य-विस्फारित नेत्रों से देखा कि उस रत्नहार के प्रत्येक मणि पर द्रविड़ कुल की वंश परम्परा का चिन्ह अंकित है-वह चिन्ह जो प्रत्येक द्रविड़ के लिए पूजनीय है।
'यह शत्रु के हाथ कैसे आया...?' युवराज को महान् आश्चर्य हो रहा था—'यह द्रविड़राज के परम पवित्र पूजनीय रत्नहार है...देखो ! कितना मूल्यवान है यह ..चोर है वह किरातों का दुष्ट नायक उसने द्रविड़ कुल के पवित्र रत्नहार की चोरी की है...।'
'धेनुक...!'
'आज्ञा श्रीयुवराज।'
'देखते हो न। आज तुम द्रविड़कुल की लाज लौटा लाये—पिताजी इस रत्नहार को देखकर बहुत प्रसन्न होंगे...।'
'मेरा विचार है कि यह रत्नहार श्रीसम्राट के पास अभी भेज दिया जाये...।' धेनुक बोला —'शायद इसमें कोई गुप्त रहस्य हो।'
'ठीक कहते हो तुम। मैं अभी एक सैनिक को यह रत्नहार और पत्र देकर गुप्त सुरंग द्वारा पिताजी के पास भेज देता हूं। तुम एक विश्वस्त सैनिक को मेरे पास बुलाओ।' युवराज ने कहा।
और वे भोजपत्र पर द्रविड़राज को एक पत्र लिखने लगे। धेनुक बाहर जाकर एक सैनिक को बुला लाया। 'देखो...!' युवराज उस सैनिक को पत्र देकर बोले—'तुम गुप्त मार्ग द्वारा अत्यंत शीघ्र पिताजी के पास जाओ। उन्हें मेरा यह पत्र और पवित्र रत्नहार दे देना और यहां का सब समाचार विस्तारपूर्वक निवेदन कर देना...कोई आवश्यकीय समाचार हो तो शीघ्र मेरे पास लेकर आना...उनसे यह भी कह देना कि में चोर को समुचित दण्ड देने की व्यवस्था कर रहा हूं।'
सैनिक ने वह पत्र और रत्नहार यत्नपूर्वक ले लिया, पुन: युवराज को सम्मान प्रदर्शन करने के पश्चात् वह शिविर के बाहर निकल गया और पैदल ही उत्तर की ओर चल पड़ा।
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