RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
भयानक वन के मध्य से वह सैनिक चला जा रहा था। परन्तु उसे इस बात का तनिक भी पता नथा कि एक गुंजान झाड़ी से निकलकर कोई मनुष्य गुप्तरूप से उसका पीछा कर रहा है।
वह मनुष्य अतीव सावधानी से उस सैनिक का अनुसरण कर रहा था। सैनिक पूर्ववत असावधानी से चला जा रहा था।
उसे इस बात की तनिक भी आशंका न थी कि इस वन्य प्रदेश में कोई मनुष्य उसका पीछा कर सकता है।
एक स्थान पर, जहां हिमराज का शिखर कुछ ऊँचा था, जहां गुंजान झाड़ियों ने अपनी विकराल भयंकरता प्रसारित कर रखी थी, जहां जाते सहज भयानकता का भान हो जाता था—वह सैनिक आकर वहां रुका।
यही गुप्तमार्ग का प्रवेश द्वार था। सैनिक ने एक बार सावधानीपूर्वक अपने चारों ओर देखा परन्तु पीछा करने वाले मनुष्य को वह देख न सका। अब उसे विश्वास हो गया कि उसका यहां आना किसी ने नहीं देखा है, तो वह एक गुंजान झाड़ी में घुसकर विलुप्त हो गया।
उसका पीछा करने वाला मनुष्य बहुत देर तक निस्तब्ध खड़ा उसकी प्रतीक्षा करता रहा, कदाचित् उसे आशा थी कि वह सैनिक शीघ्र ही लौट आयेगा। परन्तु जब पर्याप्त समय व्यतीत हो गया और वह सैनिक नहीं लौटा तो वह धीरे-धीरे उस गुंजान झाड़ी की ओर बढ़ने लगा, जिसमें वह सैनिक लुप्त हुआ था।
झाड़ी के पास पहुंचकर उसने आहट ली, परन्तु सब ओर सन्नाटा पाकर उसका साहस बढ़ा। वह भी उस गुंजान झाड़ी में प्रवेश कर गया, परन्तु दूसरे ही क्षण वह चौक पड़ा, उस गुंजान झाड़ी की क्रोड़ में अवस्थित एक कंदरा का प्रवेश द्वार देखकर।
'तो यही है वह गुप्तमार्ग जिससे द्रविड़राज की सेना आई थी...।' वह स्वत: ही बड़बड़ा उठा और पुन: झाड़ी के बाहर आकर तीव्र वेग से उस ओर चल पड़ा जिधर आर्य सम्राट की अपार सेना का विशाल शिविर था।
वह था आर्य सम्राट का गुप्तचर।
अर्द्धरात्रि की बेलों यह भयानक वन्य-प्रदेश पशुओं के निनाद से परिपूरित था, परन्तु आर्य सेना शिविरों में पड़ी थी अति शांति के साथ। समग्र आर्य शिविर में सन्नाटा छाया हुआ था। आर्य सम्राट के शिविर के द्वार देश पर कई सैनिक पहरा दे रहे थे। आर्य सम्राट ने पर्णिक के चेहरे पर आश्चर्यपूर्ण दृष्टि डाली। बोलो—'तो तुम्हारा वह रत्नहार क्या हुआ?'
'पता नहीं श्रीमान! क्या हुआ वह।' पर्णिक बोला—'शायद युद्ध करते समय कहीं गिर गया
'तुम्हें उसके खो जाने का पता कब लगा?'
'अभी श्रीमान...अभी।'
'परन्तु इस अंधकार पूर्ण रात्रि में उसकी खोज भी तो नहीं की जा सकती...।' आर्य सम्राट चिंतायुक्त स्वर में बोले।
'मैं खोज कर चुका हूं श्रीमान्। कहीं पता न लगा—अपने सैनिकों से पूछ चुका हूं...सम्भवत: वह रत्नहार शत्रुओं के हाथ पड़ गया है...।' पर्णिक ने कहा।
'सेनाध्यक्ष पर्णिक! तुम इस समय जाकर विश्राम करो। प्रात:काल इस पर विचार किया जायेगा।'
और पर्णिक म्लान मुखाकृति लिए शिविर के बाहर चला गया। आर्य सम्राट भी विश्नाम की तैयारी करने लगे कि तभी एक सैनिक आ पहुंचा। 'क्या है...?' पूछा आर्य सम्राट ने।
सैनिक बोला—'गुप्तचर द्वार पर उपस्थित है। कहता है कार्य अत्यंत आवश्यक है, वह इसी समय श्रीमान् का दर्शनाभिलाषी है।'
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