RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
आर्य सम्राट आश्चर्य से उठ बैठे—'उपस्थित करो उसे।' उन्होंने आज्ञा दी। सैनिक चला गया। दूसरे ही क्षण गुप्तचर ने उस शिविर में प्रवेश कर आर्य सम्राट को अभिवादन किया—'कार्य अत्यंत आवश्यक है, श्रीमान्।'
'क्या है...है क्या गुप्तचर?'
'मैंने गुप्त मार्ग का पता लगा लिया है, श्रीमान्....। गुप्तचर ने बहुत धीरे से कहा।
'कौन-सा गुप्त मार्ग?'
'द्रविड़ सेना के आने का गुप्त मार्ग। बहुत प्रच्छन्न है वह, परन्तु मैंने खोज ही निकाला। श्रीमान को यह सुनकर आश्चर्य होगा कि वह गुप्तमार्गी गुंजान झाड़ियों से आच्छादित एक कंदरा के रूप में है, जहाँ मानवी नेत्र कदाचित् ही पहुंच सकें...।'
'कन्दरा के रूप में।'
'जी हां श्रीमान्।'
'तब वह गुप्तमार्ग नहीं है। गुप्त मार्ग पर उनके सैनिकों का पहरा होना चाहिए। आर्य सम्राट ने कहा।
'नहीं श्रीमान्! वहां पहरे का चिन्ह तक नहीं हैं वहां पहरेदार इसलिए नहीं रखे गये हैं कि पहरा रहने का सहज ही लोगों को अनुमान हो जायेगा कि वहां पर कोई गुप्तमार्ग है...मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ श्रीमान्। कि वही गुप्तमार्ग है। अभी-अभी मैं देखकर आ रहा हूं कि द्रविड़ शिविर का एक सैनिक संदेश लेकर उसी मार्ग द्वारा राजनगर पुष्पपुर की ओर गया है...।'
'तुम्हारा क्या विचार है?'
'मेरा विचार है श्रीमान् कि आप इसी समय चलकर उस कंदरा के द्वार का कुछ दूर तक निरीक्षण करें। तब यदि आप आवश्यक समझें तो अपनी कुछ सेना इसी गुप्तमार्ग द्वारा राजनगर पुष्पपुर की और भेद दें। ऐसा करने से हमारी विजय निश्चित है।'
'तुम्हारा कथन उचित है, चलो, मैं अभी चलता हूं...।'
आर्य सम्राट शिविर से बाहर निकले और बिना किसी से कुछ कहे, गुप्तचर के साथ पैदल ही चल पड़े।
जंगली मार्ग से होते हुए दोनों पहुंच गये उस स्थान पर।
आश्चर्यचकित हो उठे आर्य सम्राट उस गुप्त कंदरा को देखकर।
बोले—'यह कन्दरा अवश्य है, गुप्तचर। मगर मानवी हाथों द्वारा इसका निर्माण बहुत विकट कार्य है।
'जी हाँ श्रीमान्।' गुप्तचर आगे-आगे चल रहा था। उसके हाथों में एक छोटा-सा प्रकाश-पुंज था।
एक स्थान पर आते ही दोनों ठमककर खड़े हो गये, क्योंकि उनके कानों में अभी-अभी ही किसी का कठोर गर्जन सुनाई पड़ा था।
'ठहरो!'
'क्या बात है गुप्तचर...।' आर्य सम्राट ने शंकित स्वर में धीरे से पूछा। फिर ध्यानपूर्वक उन्होंने अपने चारों ओर देखा। कोई नहीं था वहां।
'शायद शत्रुओं को हमारी भनक लग गई है?' गुप्तचर ने कहा।
'कोई दिखाई तो नहीं पड़ा था।'
'श्रीमान् को विदित हो कि इन द्रविड़ों का कला-कौशल अपूर्व है...यह कन्दरा भी रहस्यमयी मालूम पड़ती है।'
बहुत देर तक दोनों चुपचाप खड़े रहे। जब कहीं किसी मनुष्य की आहट न मिली तो वे पुन: धीरे-धीरे आगे बढ़े।
'ठहरो।' गंभीरता लिये हुए तीव्र स्तर से पुन: सारी कन्दरा गूंज उठी।
आर्य सम्राट और गुप्तचर के शरीर सिर उठे। न जाने कहां से धड़-धड़ शब्द हुआ और सुरंग की दीवार की एक चट्टान भयंकर आवाज के साथ एक और को सरक गई।
और कंदरा में हल्का प्रकाश फैल गया।
वहां पर खड़े थे युवराज नारिकेल, धेनुक के साथ। आर्य सम्राट को बहुत कष्ट हुआ होगा, यहां पधारने में।' धेनुक व्यंग्यात्मक स्वर में बोला —'अपने गुप्तचर से आपके यहाँ पधारने का समाचार पाकर मैं श्रीमान् का स्वागत करने आया
'कौन हो तुम?' आर्य सम्राट नै उपेक्षापूर्ण स्वर में पूछा।
'क्षुद्र नायक खड़ा है आपके सामने।'
'नायक?
आर्य सम्राट ने ध्यानपूर्वक उस विचित्र नायक की और देखा, जिसके अद्भुत बुद्धि चातुर्य तथा राजनीतिक कुशलता ने स्वयं उनकी बुद्धि और राजनीति कुण्ठित कर दी थी।
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