RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
रात्रिपर्यन्त पर्णिक विचारों में तल्लीन रहा। प्रात:काल वह एक सघन वृक्ष के नीचे बैठकर प्रात:कालीन वायु का सेवन कर रहा था। तभी एक आर्य सैनिक ने आकर निवेदन किया—'सम्राट का कहीं पता नहीं। अर्धरात्रि से ही वे लुप्त हैं। प्रहरी कह रहे हैं कि उन्होंने अर्द्धरात्रि से ही वे लुप्त हैं प्रहरी कह रहे हैं कि उन्होंने लगभग अर्द्धरात्रि को एक गुप्तचर के साथ, पैदल ही दक्षिण की और उन्हें जाते हुए देखा था।'
पर्णिक पर जैसे वज्रपात हुआ, यह अघटित घटना सुनकर। कल उसका रत्नहार गया और आज सम्राट भी। 'तुमने आस-पास खोज की?' पूछा पर्णिक ने।
'जी हां, गुप्तचरों ने आसपास का सारा वन्य-प्रदेश छान डाला, परन्तु निराशा ही हाथ लगी।'
'अभी तक इस बात को कितने लोग जानते हैं ?'
'केवल कुछ लोग...।' सैनिक ने उत्तर दिया।
'देखो यह बात फैलने न पाये, नहीं तो आर्य सेना शिथिल पड़ जायेगी। तुम युद्ध की तैयारी करो और दुर्मुख को शीघ्र ही मेरे पास भेज दो।' पर्णिक ने कहा।
सैनिक चला गया। पर्णिक व्यग्रतापूर्वक उसी सघन वृक्ष के नीचे टहलता रहा। दुर्मुख किरात-नायक पर्णिक का मित्र और उसका प्रमुख सहायक था। उसने पर्णिक की म्लान मुखाकृति को देखकर व्यग्रता से पूछा
'क्या है पर्णिक ? क्या बात है?'
'देखो।' पर्णिक ने कहा—'युद्ध का परिणाम भयंकर होता जा रहा है। माताजी से मैं स्वदेश रक्षा की प्रतिज्ञा करके आया हूं, परन्तु यहां आकर आर्य सम्राट का सहायक बन बैठा। कितनी बड़ी त्रुटि हई मुझसे। कल शत्रु सेना के हाथ मेरे गले का वह पवित्र रत्नहार पड़ गया, आज आर्य सम्राट तिग्मांशु न जाने कहां लुप्त हो गये। मुझे तो ऐसा लगता है कि शीघ्र ही कोई भयंकर घटना होने वाली है।
'आर्य सम्राट की सहायता तुम्हें नहीं करनी चाहिये थी नायक'
'कैसे न करता, दुर्मुख। अपने पास याचनार्थ आये हुए भिखारी का तिरस्कार कैसे करता। आर्य सम्राट ने मेरी माता पर आक्षेप किया था-भला कैसे सहन कर सकता था यह...। केवल माताजी के सम्मान की रक्षार्थ मैंने आर्य सम्राट को सहायता देना स्वीकार किया था।'
'तो अब मेरे लिये क्या आज्ञा है?'
'तुम अभी इसी समय माताजी के पास जाओ। केवल तीन-चार घड़ी का मार्ग है। उनसे मेरा प्रणाम कहकर यहां का समाचार निवेदन कर देना कि वह पवित्र रत्नहार शत्रु सेना के हाथ पड़ गया है। उनसे यह भी पूछ लेना कि अब मेरे लिए क्या आज्ञा है? यथाशक्ति, अतिशीघ्र आने का प्रयत्न करना। मेरे हृदय में जाने क्यों झंझावात-सा उठ खड़ा हुआ है।'
दुर्मुख शीघ्र ही अश्वारूढ़ होकर चल पड़ा। उस समय सूर्य की सुनहरी किरणें वृक्षों की चोटियों पर नृत्य करने लगी थीं।
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