RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
-- 'किन्नरी...!' चक्रवाल ने पुकारा परन्तु कुछ उत्तर न मिला। चक्रवाल ने प्रकोष्ठ के बंद द्वार पर कई थपकी दी, परन्तु भीतर से कुछ भी उत्तर न मिला। चक्रवाल को आश्चर्य हुआ एवं भय भी। न जाने प्रकोष्ठ के भीतर किन्नरी क्या कर रही है?
'किन्नरी! निहारिका...!' चक्रवाल ने पुन: कई बार पुकारा, परन्तु उत्तर न मिला था, न मिला।
चक्रवाल का हृदय आशंका से भर गया। वह किन्नरी के प्रकोष्ठ की छोटी सी खिड़की के नीचे आया। खिड़की के कपाट बंद थे, परन्तु हल्का-सा धक्का देते ही खुल गये। उसने प्रकोष्ठ के भीतर झांका। देखा, किन्नरी निहारिका अस्त-व्यस्त सी पलंग के किनारे पड़ी है। उसके नेत्र बंद है। कपोलों पर मुक्ता। सदृश अश्रु-बिन्दु झलक रहे हैं।
'निहारिका!' चक्रवाल ने तीव्र स्वर में पुकारा। निहारिका नि:शब्द रही, केवल उसका शरीर एक बार मंथरगति से प्रकम्पित हुआ एवं उसके काली घटा जैसे केश, वायु का स्पर्श पाकर आरक्त कपोलों पर लौटने लगे।
'द्वार खोलो...कब से खड़ा पुकार रहा हूं मैं...।'
'........' अब निहारिका ने धीरे से अपना मस्तक उठाकर खिड़की की ओर देखा। चक्रवाल को महान् आश्चर्य हुआ, किन्नरी की दयनीय दशा देखकर। निहारिका के नेत्र रोते-रोते एकदम रक्तवर्ण हो रहे थे।
'तुम रो रही हो...? रो रही हो तुम... मैं एक आवश्यक संदेश लेकर कब से तुम्हारे द्वार पर खड़ा हूं और तुम रो रही हो?'
"क्या करूं चक्रवाल। सब कुछ तो खो चुकी हूं उस देवता की मधुर स्मृति में, ये अश्रुकण ही तो शेष हैं जो मेरे सुख-दुख के साथी हैं। इन्हें कैसे खो सकती हूं...?'
किन्नरी ने शिथिल पैरों से आगे बढ़कर द्वार खोला। चक्रवाल भीतर प्रविष्ट हुआ।
"युद्ध-शिविर से कोई भयानक समाचार आया है....।' चक्रवाल ने कहा।
'कैसा भयानक समाचार?'
'पता नहीं, परन्तु सेना है कि युद्धक्षेत्र से एक सैनिक आया था। देखा नहीं, जब हम और तुम महापुजारीजी के पास बैठे थे, तो श्रीसम्राट ने कैसी उदीप्त भंगिमा धारण किये हुए पदार्पण किया था...याद है?'
'ओह महामाया...! क्या होने वाला है...?' किन्नरी बोली— 'मैं मरण नृत्य करना चाहती हूं चक्रवाल। मुझे कुछ ऐसी विश्वास हो रहा है कि श्रीयुवराज कदाचित् अब...।'
'कैसी बातें करती हो...।' चक्रवाल ने मधुर झिकी दी— 'महापुजारी जी एवं श्रीसम्राट में बहुत काल तक वार्तालाप हुआ है और दोनों गुप्तमार्ग द्वारा युद्ध शिविर की ओर गये हैं।'
'युद्ध-शिविर की ओर...?'सिहर उठी निहारिका—'अवश्य चिन्तनीय समाचार रहा होगा। मुझे ले चलो, चक्रवाल। मैं भी युद्ध-शिविर की ओर चलना चाहती हूं।' चलो विलम्ब न करो...उन पर जाने क्या बीत रही होगी...?'
'गुप्त मार्ग द्वारा श्रीसम्राट एवं महापुजारी जी ने प्रस्थान किया है—हम लोग कैसे चलेंगे।'
'कोई द्रुतगामी रथ की व्यवस्था करो, चक्रवाल। मेरी अवस्था पर दया करो।'
'मैं अभी व्यवस्था करता हूं।' तीव्र गति से चक्रवाल किन्नरी के प्रकोष्ठ से बाहर हो गया।
लगभग घड़ी भर पश्चात् घनघोर बनस्थली को भेदन करता हुआ एक दुतगामी रथ वायुवेग से दौड़ा जा रहा था।
चालक के स्थान पर स्वयं चक्रवाल विराजमान था एवं रथ के अंतप्रदेश में आसीन थी सौंदर्यराशि किन्नरी निहारिका।
चक्रवाल का मधुर स्वर वातावरण को सरल बना रहा था जो केलि कुंज में तुमको, कंकड़ी उन्होंने मारी। क्या कसक रही है वह अब भी, तेरे उर में सुकुमारी...|
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