RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
चौदह
पर्णिक की माता अपने झोंपड़े में किसी आवश्यक कार्य में व्यस्त थी। उसी समय झोंपड़े के द्वार से किसी ने पुकारा—'माताजी!'
पर्णिक की माता हर्ष-विह्वल हो दौड़ पड़ी, झोंपड़ी के द्वार की ओर। उसे लगा, जैसे स्वयं पर्णिक युद्धक्षेत्र से लौट आकर स्नेहमयी वाणी में उसे पुकार रहा हो, परन्तु द्वार पर दुमुख को खड़ा देखकर उसका हृदय धड़क उठा। पर्णिक का भेजा हुआ दुर्मुर्ख अभी-अभी ही वहां पहुंचा था। 'दुर्मुख तुम...!' पर्णिक की माता आश्चर्य से बोली—'युद्ध क्षेत्र से आ रहे हो न? पर्णिक सकुशल तो है...?' ___
'हां माताजी।' दुर्मख ने उत्तर दिया-'पर्णिक सकुशल है...युद्ध की प्रगति इधर कुछ ही दिनों से बड़ी भयंकरता धारण करती जा रही है। यदि युद्ध इसी प्रकार भयावह गति से चलता रहा तो हमारी पराजय निश्चित है।'
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'आर्य सम्राट की सेना अधिक बलशाली है क्या...?'
'आर्य सम्राट की सेना।' चौंक पड़ा दुर्मुख।
एक पल तक चुप रहकर उसने न जाने क्या सोचा। तुरंत ही उसे ध्यान हो आया कि अभी तक पर्णिक की माता यही समझ रही है कि पर्णिक की किरात सेना स्वदेश के रक्षार्थ, आर्य सम्माट से युद्ध कर रही है।
अभी तक इस बात का तनिक भी आभास नहीं होने दिया था उसने कि उसका पुत्र इस समय आर्य सम्राट की सहायता कर रहा है 'नहीं माताजी। हम लोग आर्य सम्राट से युद्ध नहीं कर रहे हैं...।' दुर्मुख ने कहा।
'आर्य सम्राट से युद्ध नहीं कर रहे हो...?' आश्चर्यचकित हो उठी पर्णिक की माता—'तब किससे युद्ध कर रहे हो तुम लोग?'
'द्रविड़राज की सेना से।' दुर्मुख बोला।
'तो आर्य सम्राट की सहायता कर रहे हो तुम लोग?' तड़प उठी बह—'जो उतनी दर से तुम्हारे देश को नष्ट करने आया है, उसी की सहायता कर रहे हो तुम लोग दुर्मुख...! अपने प्राचीन गौरव की निर्मूल कर विदेशी सत्ता की जड़ें स्थापित करना चाहते हो तुम लोग। क्या पार्णिक की सम्मति से यह सब कार्य हुआ है...?'
'जी हां माताजी। उनकी पूर्ण सम्मति से।' पर्णिक की माता का उग्ररूप देखकर दुर्मुख भयभीत हो गया था।
'पर्णिक इतना निकृष्ट कैसे हो गया? मेरी शिक्षा को उसने एकदम विस्मृत कैसे कर दिया।'
'माताजी! पहले पर्णिक आर्य सम्राट की सहायता करने को सहमत नहीं थे, परन्तु स्वयं आर्य सम्राट ने उनके पास आकर सहायता की याचना की...।'
'सहायता की याचना की और पर्णिक ने उन्हें सहायता देना स्वीकार कर लिया, क्यों?'
'नहीं, उन्होंने फिर अस्वीकार कर दिया था। परन्तु जब आर्य सम्राट आपका अपमान करने लगे—'क्या तुम्हारी माता ने तुम्हें यही सिखाया है कि अपने चरणों में आये हुए भिक्षुक को ठोकर मारकर लौटा दो तो वे चिंता में पड़ गये...।'
'.........।' चौंक पड़ी पर्णिक की माता अपनी शिक्षा का विपरीत परिणाम सुनकर।
'इसी प्रकार आर्य सम्राट ने अन्य बहुत-सी बातें कहकर आपका अनादर किया। जिसे सुनकर पर्णिक को बहुत क्रोध आया। उन्होंने आर्य सम्राट को द्वन्द्व युद्ध में पराजित कर आपके अपमान का प्रतिशोध लिया, तत्पश्चात् आपके सम्मान की रक्षार्थ उन्होंने आर्य सम्राट को सहायता देना स्वीकार कर लिया।
'मेरे सम्मान की रक्षार्थ...' पुलकित हो उठी वे, परन्तु दूसरे ही क्षण उनकी मुखाकृति परिवर्तित हो गई—'मेरे सम्मान की रक्षार्थ उसने एक विदेशी की सहायता करना स्वीकार कर लिया? मेरे सम्मान की रक्षार्थ उसने अनहोनी को होनी कर दिखाया, परन्तु उसने अपनी जन्मभूमि के सम्मान की रक्षार्थ क्या किया...?''
आवेश में रो पड़ी वे—'एक क्षुद्र जननी के लिए उसने इतना किया तो क्या जननी जन्मभूमि के लिए आत्मोत्सर्ग करना उसने आवश्यक नहीं समझा? जन्मभूमि के सम्मान से अधिक उसने मेरे अपमान को महत्त्व दिया? ओह दुर्मुख! क्या किया तुम लोगों ने? क्या यही है तुम लोगों का स्वदेशाभिमान...?'
'आज कई दिनों से हमारी पराजय हो रही है। आर्य सम्राट की असंख्य सेना को शत्रु की एक सीमित सेना शिथिल करती जा रही है। स्वयं पर्णिक जो कि आजकल आर्य सेना के प्रमुख संचालक हैं अत्यधिक आश्चर्यचकित हो उठे हैं...? कल युद्ध में एक अघटित घटना घट गई, जिसके लिए मुझे यहां तक आना पड़ा...।'
'कौन सी घटना?'
'कल मध्यान्ह में जबकि युद्ध भयानक गति पर था, पर्णिक के गले से आपका दिया हुआ रत्नहार कहीं गिर गया...।'
'गिर गया?' आश्चर्य एवं उद्वेग से चीत्कार कर उठी वे—'कहां गिर गया?'
'रणक्षेत्र में।'
'आजकल आर्य सेना किससे युद्ध कर रही है...?' पर्णिक की माता ने पुन: पूछ।
'द्रविड़राज से?'
'द्रविड़राज से...? द्रविड़राज से युद्ध हो रहा है? और पर्णिक उनके विरुद्ध आर्य सेना का संचालन कर रहा है? धड़ाम से गिर पड़ी भूमि पर।
उनके नेत्रों के समक्ष अंधकार छा गया। उनके अन्त:स्थल में हाहाकार पूर्ण कोलाहल उठ खड़ा हुआ।
'महामाया! यह सब क्या हो रहा है। आज बीस वर्षों के पश्चात् अब कौन-सा प्रलयंकारी दृश्य देखने को मिलेगा...?
' उन्हें स्नेहपूर्वक उठाते हुए सांत्वनापूर्ण स्वर में दुर्मुख बोला
—'क्या है माताजी...आप इतनी उद्विग्न क्यों हो गई?' __
'प्रलय का आह्वान कर अब पूछ हरे हो मेरी उद्विग्नता का कारण? मेरे हृदय के शत्-शत् खंड करके अब चाहते हो सांत्वना देना?'
'माताजी! यदि कोई अक्षम्य अपराध हुआ है तो उसके लिए समुदाय की ओर से क्षमाप्रार्थी हूं। कल जो आपकी आज्ञा होगी, उसके अनुसार कार्य करने को हम प्रस्तुत है।'
'आज्ञा?' एक क्षण तक कुछ सोचा पर्णिक की माता ने—'मैं इसी क्षण युद्धक्षेत्र को प्रस्थान करना चाहती हूं...यह क्या? मेरी दक्षिण भुजा फड़कने का कारण? दुर्मुख! कोई प्रलयंकारी अनिष्ट सन्निकट है। तुम एक द्रुतगामी अश्व अभी लाओ। मैं इसी समय युद्ध-क्षेत्र को प्रस्थान करूंगी, नहीं तो अनर्थ हो जायेगा, प्रलय हो जायेगा।'
दुर्मुख दौड़ गया और कुछ ही देर में एक अश्व लिए हुए आ उपस्थित हुआ। एक अश्व पर दुर्मुख और दूसरे पर पर्णिक की माता सवार हो रणक्षेत्र की और चल पड़े।
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