RE: RajSharma Sex Stories कुमकुम
'संभालिए, आर्य-सम्राट!' द्रविड़राज बोले। इस समय उस प्रशस्त सुरंग में आर्य-सम्राट एवं द्रविड़राज परस्पर युद्ध में तल्लीन थे। घड़ी भर में कृपाण युद्ध हो रहा था, परन्तु अभी तक कोई भी किसी पर विजय नहीं पा सका था।
दोनों सम्राट नाना प्रकार के कौशल, युद्ध में प्रयोग कर रहे थे। महापुजारी एवं गुप्तचर खड़े थे, मौन होकर।
'अद्भुत है। आपका प्रतिघात अद्भुत है, द्रविड़राज।' आर्य सम्राट आश्चर्य से बोले।
'सावधान आर्य सम्राट।'
'द्रविड़राज का कृपाण प्रबल वेग से लपका आर्य-सम्राट की ओर परन्तु आर्य-सम्राट ने अतीव सावधानी से उस प्रतिघात का निवारण कर लिया।
'द्रविड़राज को विदित हो।' आर्य-सम्राट केवल एक ही व्यक्ति द्वारा पराजित हुए हैं—अन्यथा इस संसार का कोई वीर सम्राट को विजित नहीं कर सका है...।'
द्रविड़राज कुछ न बोले। उनका घात-प्रतिघात तीव्र वेग से चल रहा था।
आर्य-सम्राट अत्यंत ही विस्मयग्रस्त होकर बोले—'आश्चर्य है द्रविडराज, आपकी युद्ध प्रणाली एकदम वैसी ही है जैसी किरात नायक पर्णिक की।'
'किरात-नायक पर्णिक आश्चर्य-विस्फारित नेत्रों से आर्य-सम्राट की ओर देखते हुए बोले द्रविड़राज। _
'जी हां। उस युवक से मैं युद्ध कर चुका हूं वह भी आप ही जैसा घात-प्रतिघात करता है...इस संसार में केवल वही व्यक्ति है, जिसने आर्य-सम्राट को पराजित किया है।'
'उसने पराजित किया है आपको?' विस्मय से द्रविड़राज पूछ बैठे—'उस बच्चे ने आपको पराजित किया है? आश्चर्य!' और द्रविड़राज का कृपाण रुक गया—'मुझे अब आपसे युद्ध करने की आवश्यकता नहीं।'
'क्यों?'
'जब आप उस बच्चे को पराजित न कर सके तो मुझ पर विजय पाना आपकी दुराशा मात्र है।' द्रविड़राज ने कहा।
परन्तु न समझ सके आर्य-सम्माट द्रविड़राज की इस अद्भुत पहेली को। कुछ अस्थिर होकर उन्होंने शीघ्रता से कहा।
'हैं मेरे बाम नेत्र के इस तरह फड़कने का कारण....?' चलिए महापुजारी जी, अत्यधिक विलम्ब हो गया...अब रणक्षेत्र की ओर चलना परम आवश्यक है....सन्ध्याकाल सन्निकट है।'
'सन्निकट है...अब आपकी मृत्यु सन्निकट है युवराज सावधान !' पर्णिक ने कृपाण का भरपूर घात किया युवराज पर, परन्तु युवराज ने अतीव शीघ्रतापूर्वक उस घात को रोक लिया।
जब दोनों विकट प्रतिद्वन्द्वी बाण-युद्ध में एक-दूसरे पर विजय। प्राप्त कर सके, तो कृपाण-युद्ध में तल्लीन हो गये।
आर्य एवं द्रविड़ सेनायें अपने संचालकों का यह विकट युद्ध देखकर देखकर अतीव उत्साह के साथ युद्ध कर रही थीं।
'तुमने हमारे कुल के पवित्र रत्नाहार की चोरी की थी पर्णिक तुम्हारा अपराध अक्षम्य है।' युवराज ने कहा।
'मैंने आपका रत्नहार चुराया है, युवराज...!' पर्णिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में हुंकार उठा —'असत्य है यह बात-मेरी माताजी का वह रत्नहार था। आप असत्य भाषण करने का दुस्साह न करें।
'दुस्साहस...!' क्रोध से कांप उठे युवराज और उनका कृपाण वायुमंडल में नृत्य कर उठा तीन वेग से।
'अस्त्र-संचालन परिहास नहीं है युवराज। पर्णिक को सरलता से परास्त करना परिहास नहीं...।' पर्णिक ने सावधान किया।
'साबधान किरात कुमार ... !' युवराज गरजे—'मेरा घात सम्भालो।' युवराज का कृपाण पर्णिक की ओर लपका। पर्णिक ने अपना कृपाण, घात के निवारणार्थ युवराज के कृपाण के आगे कर दिया। परन्तु युवराज का प्रहार इतने प्रबल वेग से हुआ कि पर्णिक का कृपाण भयानक झन्नाटे के साथ उसके हाथों से छूटकर दूर जा गिरा।
युवराज का कृपाण सन्निकट ही था कि पर्णिक के वक्ष में प्रवेश कर अपनी रक्त-पिपासा शांत करता परन्तु न जाने क्यों युवराज का हाथ एकाएक कांप गया।
उनका हृदय करुण चीत्कार कर उठा। 'रुक क्यों गये युवराज...?' पर्णिक ने गर्वयुक्त वाणी में कहा—'शत्रु की दया का मैं आकांक्षी नहीं। आप विजेता हैं—मेरे रक्त से अपनी कृपाण की प्यास बुझा लें...आप न जानते होंगे युवराज–कि पर्णिक की माता ने उसे वीरतापूर्वक मरना सिखाया है।'
'और तुम नहीं जानते होंगे, पर्णिक युवराज बोले-'कि युवराज के पिता ने उन्हें निर्बलों को क्षमा कर देने की सीख दी है।'
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