Antervasna नीला स्कार्फ़
10-05-2020, 12:44 PM,
#17
RE: Antervasna नीला स्कार्फ़
“शादी को तीन महीने भी नहीं हुए। मैं तैयार नहीं और इसके आगे हम कोई बहस नहीं कर सकते।” अमितेश ने अपनी बात कहकर बहस ख़त्म होने का ऐलान करने का सिग्नल देकर कमरे से बाहर निकल जाना उचित समझा। उसके बाद दोनों में कोई बात नहीं हुई, ऐसे कि जैसे ये शांभवी का अकेले का किया-धरा था, ऐसे कि जैसे वही एक ज़िम्मेदार थी और फ़ैसला उसी को लेना था।
फिर दो हफ़्ते के लिए अमितेश बाहर चला गया, शांभवी को दुविधा की हालत में अकेले छोड़कर। अपनी इस हालत का सोचकर ख़ुश हो या रोए, बच्चे के इंतज़ार की तैयारी करे या उसके विदा हो जाने की दुआ माँगे, ये भी नहीं तय कर पाई थी अकेले शांभवी। वे दो हफ़्ते जाने कैसे गुज़रे थे…
शांभवी ने अपनी सास को फ़ोन पर ख़ुशख़बरी दे दी थी, ये सोचकर कि वो अमितेश को समझा पाने में कामयाब होंगी शायद। अपने चार हफ़्ते के गर्भ की घोषणा उसने हर मुमिकन जगह पर दे दी। शायद सबको पता चल जाए तो अमितेश कुछ न कर सके। बेवक़ूफ़ थी शांभवी। फ़ैसले दुनिया भर में घोषणाएँ करके नहीं, ख़ामोशी से, अकेले लिए जाते हैं।
वैसे भी अमितेश के वापस लौट आने के बाद कोई तरीक़ा काम नहीं आया। वो अपनी ज़िद पर क़ायम था। दो हफ़्ते तक जो उसे बधाई दे रहे थे, उसे ख़्याल रखने की सलाह दे रहे थे, अमितेश के आते ही उन सब लोगों ने अपना पाला बदल लिया था।
माँ ने फ़ोन पर शांभवी को समझाया, “जब प्लानिंग नहीं थी तो तुम्हें ख़्याल रखना चाहिए था। तुम्हें उसके साथ ज़िंदगी गुज़ारनी है। जिस बच्चे की ज़रूरत वो समझता नहीं, उसे लाकर क्या करोगी? मैं तुम्हें तसल्ली ही दे सकती हूँ बस।”
किसी की दी हुई तसल्ली की ज़रूरत नहीं थी उसे। जो सास उसकी प्रेगनेंसी पर उछल रही थीं और मन्नतें माँग रहीं थीं, उन्होंने भी बात करना बंद कर दिया। शांभवी और किसी से क्या बात करती! तीन महीने में ही शादी में पड़ने वाली दरारों को किसके सामने ज़ाहिर करती! उसकी बात भला सुनता कौन!
दो चेक-अप और एक अल्ट्रासाउंड के लिए अकेली गई थी वो। अल्ट्रासाउंड की टेबल पर उसकी आँखों के कोनों से बरसते आँसू से सोनोलॉजिस्ट ने जाने क्या मतलब निकाला होगा? वो उठी तो सोनोलॉजिस्ट ने पूछ ही लिया, “आप शादीशुदा तो हैं?”
“काश नहीं होती!” ये कहकर शांभवी कमरे से निकल गई थी।
अमितेश शांभवी को लेकर डॉक्टर के पास तो गया लेकिन अबॉर्शन की जानकारी लेने के लिए। डॉ. सचदेवा उसके दोस्त की बुआ थीं इसलिए कोई ख़तरा नहीं होगा, ऐसा कहा था उसने। डॉ. सचदेवा ने दोनों को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन चेक-अप के दौरान शांभवी की तरल आँखों ने सबकुछ ज़ाहिर कर दिया। अमितेश ने अबॉर्शन के लिए अगली सुबह की डेट ले ली थी।
उस रात शांभवी की आँखों ने विद्रोह कर दिया था। आँसू का एक कतरा भी बाहर न निकला और मन था कि ज़ार-ज़ार रो रहा था। इतनी बेबस क्यों थी वो? इस बच्चे को उसके पति ने ही लावारिस करार दिया था और ख़ुद उसकी बग़ल में पीठ फेरे चैन की नींद ले रहा था। शादी जैसे एक तजुर्बे में जाने कैसे-कैसे तजुर्बे होते हैं!
शांभवी अगली सुबह भी शांत ही रही। अमितेश गाड़ी में इधर-उधर की बातें करता रहा। अपने घर के नए फ़र्नीचर और दीवारों के रंग की योजनाएँ बनाता रहा। अपने नए प्रोजेक्ट की बातें करता रहा। उसके नॉर्मल हो जाने का यही तरीक़ा था शायद। मुमकिन है कि अमितेश भी उतनी ही मुश्किल में हो और इस तरह की बातें उसके भीतर के अव्यक्त दुख को छुपाए रखने की एक नाकाम कोशिश हों। लेकिन दुख भी तो साझा होना चाहिए। जब हम दुख बाँटना बंद कर देते हैं एक-दूसरे से, तो ख़ुद को बाँटना बंद कर देते हैं अचानक।
इसलिए शांभवी वो एकालाप चुपचाप सुनती रही। वैसे भी ये अमितेश की योजनाएँ थीं। इसमें साझा कुछ भी नहीं था। जो साझा था, आज खो जाना था। साझी रात। साझा प्यार। साझा जीवन। साझा दुख।
शांभवी सुबह सात बजे डॉक्टर से मिली, अबॉर्शन के लिए।
“तुम सात हफ़्ते की प्रेगनेंट हो शांभवी।”
“जानती हूँ। और ये भी जानती हूँ कि इस वक़्त तक बच्चे का दिल भी बनने लगा होगा, दिमाग़ भी। जानती हूँ कि उसकी पलकें बनने लगी होंगी, दोनों कुहनियों में अबतक मोड़ भी आ गया होगा शायद।” जो शांभवी पूरे रास्ते कुछ नहीं बोली थी, उसने अचानक डॉक्टर के सामने जाने कैसे इतना कुछ कह दिया था!
डॉ. सचदेवा एक ठहरे हुए पल में बहुत ठहरी हुई निगाहों से शांभवी को देखती रहीं। “अब भी वक़्त है, सोच लो।” डॉक्टर ने भी कुछ सोचकर कहा था।
शांभवी ने कुछ कहा नहीं, बस कुर्सी के पीछे की दीवार पर सिर टिकाकर आँखें मूँद ली थीं।
डॉक्टर सचदेवा ने नर्स को बुलाकर एमटीपी के पहले की कार्रवाई पूरी करने की हिदायत दे दी। कपड़े बदलने के बाद शांभवी को स्ट्रेचर पर लिटाकर ऑपरेशन थिएटर पहुँचा दिया गया। उसने आख़िरी बार अपने पेट पर हाथ रखकर अपने अजन्मे बच्चे से माफ़ी माँग ली। उसे विदा करते हुए कहा कि वो हर उस सज़ा के लिए तैयार है जो उसके लिए मुक़र्रर की जाए। उसने आख़िरी बार आँखें बंद करते हुए आँसुओं को पीछे धकेल दिया। तब तक जनरल अनीस्थिसिया असर करने लगा था और शांभवी किसी गहरी अँधेरी खाई में गिरने लगी थी।
अबॉर्शन के बाद जब होश आया तो वो रिकवरी रूम में थी। अमितेश के हाथ में दो पैकेट थे। एक में सैनिटरी नैपकिन और दूसरे में जूस और बिस्किट। शांभवी चाहते हुए भी मुँह न फेर सकी।
उसके बाद की घटनाएँ फ़ास्ट-फ़ॉरवर्ड मोड में चलती रहीं। उसे याद नहीं कि कितने दिन कमज़ोरी रही, ये भी याद नहीं कि कितने दिनों तक ब्लीडिंग हुई थी उसे। ये याद है कि उसी हालत में उसे अमितेश ने घर भेज दिया था, माँ के पास।
“इस हालत में कौन ख़्याल रखेगा तुम्हारा? घर छोटा है। किसी और को नहीं बुला सकते। मैं ट्रैवेल कर रहा हूँ, कैसे रहोगी अकेले? इसीलिए तो कहता था, बच्चे के लिए सही वक़्त नहीं है ये।”
शांभवी अकेले सबके सवालों के जबाव देती रही। अकेले दर्द बर्दाश्त करती रही। अकेले अपने ज़ख़्मों को भरने की कोशिश करती रही। ये दर्द वक़्त के साथ कम हो जाता शायद, अगर अमितेश ने साथ मिलकर बाँटा होता। लेकिन उसने भी शांभवी को उसके गिल्ट, उसकी तकलीफ़ के साथ अकेला छोड़ दिया था। शायद इसलिए भी शांभवी अमितेश को माफ़ न कर सकी। लेकिन अपने फ़ैसले ख़ुद न ले पाने के लिए वो ख़ुद को भी नहीं माफ़ कर सकी थी। दूसरों को माफ़ करना आसान होता है। अपनों को और ख़ुद को माफ़ करना सबसे मुश्किल।
और फिर जाने कब और कैसे रोज़-रोज़ के झगड़े आम हो गए। जिस शख़्स पर भरोसा करके उसके साथ ज़िंदगी गुज़ारने की क़समें खाईं थीं, उसी शख़्स के साथ घर और कभी-कभार बिस्तर बाँटने के काम ने एक औपचारिक रूप अख़्तियार कर लिया।
ज़िंदगी यूँ ही चलती रही। जो दर्द किसी सूरत में कम न हो सका, उस दर्द को काम और ढेर सारे काम के समंदर में डुबो दिया शांभवी ने। शादी से बाहर जाने का न कोई रास्ता था, न ऐसी कोई प्रेरणा थी जिसकी वजह से वो कोई फ़ैसला लेती। जो वक़्त कट रहा था, उस वक़्त को बस कटते रहने दिया था उसने।
उधर रिश्तों में आ रही दरारों से बेपरवाह अमितेश एक के बाद एक ज़िंदगी की सीढ़ियाँ चढ़ता रहा। ‘वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा’ के दुनिया के सबसे बेकार फ़लसफ़े पर यक़ीन करो तो सब ठीक, और बिना यक़ीन किए इसी उम्मीद में ज़िंदगी गुज़ार दो तो सब बर्बाद।
लेकिन अमितेश को यक़ीन था कि सब ठीक हो ही जाएगा एक दिन। इसलिए अपनी तरफ़ से सबकुछ नॉर्मल मानकर उसने भी ख़ुद को पूरी तरह काम में झोंक दिया। बिज़नेस में इतनी जल्दी इस मुक़ाम तक पहुँचने की उम्मीद उसने ख़ुद भी न की थी। तीन सालों में ही ई-कॉमर्स की उसकी हर कोशिश, हर वेंचर कामयाब रहा। लोन चुकता हो गया, ज़िंदगी सँवर गई। कम से कम बैंक बैलेंस और गाड़ी के बढ़ते आकार से तो इसी बात का गुमान होता था।
एक दिन गुरूर में अमितेश ने शांभवी को वो कह दिया जिससे दूरी घटी नहीं, इतनी चौड़ी हो गई कि पाटना मुश्किल।
“अब हम बच्चा प्लान कर सकते हैं शांभवी। बल्कि मैं तो कहूँगा कि तुम नौकरी छोड़ दो और आने वाले बच्चे की तैयारी में लग जाओ।” अमितेश ने बाई के हाथ की बनाई थाई करी में ब्राउन राइस मिलाते हुए कहा था।
शांभवी ने कुछ कहा नहीं था, अपनी प्लेट लेकर बेडरूम में चली गई थी।
जब हम एक-दूसरे से कम बोल रहे होते हैं तो अक्सर ग़लत वक़्त पर ग़लत बातें ही बोला करते हैं। शांभवी के ब्राउन राइस में आँखों का नमकीन पानी मिलता रहा। वो चुपचाप खाना खाती रही। उस रात की सुपुर्दगी एक उम्मीद ही थी बस कि सब ठीक ही हो जाएगा एक दिन। किसी भी तरह के यक़ीन से ख़ाली हो चुकी एक उम्मीद।
उम्मीद का रंग अगले महीने की प्रेगनेंसी किट पर एक लकीर के रूप में नज़र आया था। लेकिन इस बार शांभवी ने न जाने क्यों न अमितेश से कुछ कहा न किसी और से। उसी तरह दफ़्तर जाती रही। कभी सोलह घंटे, कभी अठारह घंटे काम करती रही। यूँ कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं और यूँ कि जैसे एक अंदेशा भी हो कुछ होने का।
फिर एक दिन रात को वो हुआ जिसका शांभवी को उसी दिन अंदेशा हो गया था जब वो ऑपरेशन थिएटर की टेबल पर अकेली जूझ रही थी, चार साल पहले। नींद में ही उसे ब्लीडिंग शुरू हो गई। अमितेश परेशान हो गया। अगली सुबह दोनों डॉ. सचदेवा के घर पहुँचे तो उन्होंने उन्हें तुरंत अस्पताल जाने की सलाह दी।
एक के बाद एक दो अल्ट्रासाउंड के बाद जाकर परेशानी का सबब समझ में आया। सोनोलॉजिस्ट ने अमितेश को बुलाकर मॉनिटर पर शांभवी के गर्भ की स्थिति दिखाई।
“एम्ब्रायो फैलोपियन ट्यूब में रह गया था। सात हफ़्ते का गर्भ था इसे। आप लोगों ने गायनोकॉलोजिस्ट को नहीं दिखाया था? आपको मालूम है, ट्यूब में रप्चर आ गया है? कुछ घंटों की भी देरी हुई होती तो मैं नहीं कह सकती कि क्या हो जाता। हाउ कुड यू बी सो रेकलेस?”
“हमें इस प्रेगनेंसी के बारे में नहीं मालूम था डॉक्टर।” अमितेश ने क़रीब-क़रीब शर्मिंदा होते हुए कहा। सोनोलॉजिस्ट ने एक गहरी नज़र से अमितेश को देखा, कहा कुछ नहीं।
ब्लड टेस्ट और बाक़ी जाँच के बाद आधे घंटे के भीतर ही शांभवी को वापस ऑपरेशन थिएटर में पहुँचा दिया गया। ऑपरेशन करके ज़हर फैलाते भ्रूण और शांभवी के फैलोपियन ट्यूब, दोनों को काटकर निकाल दिया गया।
शांभवी एक बार फिर रिकवरी रूम में थी, एक बार फिर अमितेश हाथ में जूस और सैनिटरी नैपकिन्स लिए सामने खड़ा था।
“मैंने डॉक्टर से बात की है शांभू। कोई परेशानी नहीं होगी। तुम माँ बन सकती हो। ट्यूब के निकाल दिए जाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। तुम चिंता तो नहीं कर रही?”
इस बार शांभवी ने मुँह फेर लिया था। उसकी आँखों से बरसते आँसू प्रायश्चित के थे। उसे पहली बार ही लड़ना चाहिए था, ज़िद करनी चाहिए थी, बच्चे को बचाए रखना चाहिए था। उसे पहली बार ही फ़ैसला लेना चाहिए था।
घर आकर दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ती चली गईं। शांभवी किसी से मिलने के लिए तैयार नहीं थी, न गायनोकॉलोजिस्ट से, न किसी साइकॉलोजिस्ट से। बल्कि जितनी बार अमितेश डॉक्टर से मिलने को कहता, शांभवी धीरे से कहती, “हमें डॉक्टर की नहीं, मैरिज काउंसिलर की ज़रूरत है या फिर वकील की।”
अमितेश ने अब कुछ भी कहना छोड़ दिया। जाने ग़लती किसकी थी, और सज़ा की मियाद कितनी लंबी होनी थी। अमितेश ने भी तो बेहतरी का ख़्बाब ही देखा होगा… लेकिन जब दो लोग एक ही फ़ैसले के दो धुरों पर होते हैं तो उन्हें जोड़ने का कोई रास्ता नहीं होता। वे किसी तरह समानांतर ही चल सकते हैं बस।
वक़्त कटता रहा, वैसे ही जैसे पहले भी कट रहा था। दोनों ने एक ही घर में अलग-अलग कमरों में अपनी दुनिया बसा ली। जो साझा था, वो ईएमआई के रूप में चुकता रहा।
फिर एक दिन शांभवी ने तीन महीने के लिए फ़ेलोशिप की अर्ज़ी दे दी और विदेश जाने को तैयार हो गई। फ़ासले कम करने की बेमतलब की कोशिश से अच्छा था दूर चले जाना। कुछ ही दिनों के लिए सही। दूर रहकर शायद बेहतर तरीक़े से सोचा जा सकता था, फ़ैसले लिए जा सकते थे।
शांभवी का सेल फ़ोन बजा तो होश आया उसको। बोर्डिंग का वक़्त हो चला था। उसने कुछ घंटियों के बाद फ़ोन उठा लिया।
“चेक-इन कर गई हो?”
“हूँ।”
“नाराज़ होकर जा रही हो?”
शांभवी ने बिना जवाब दिए फ़ोन रख दिया।
यहाँ के बाद डाटा कार्ड की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, इसलिए आख़िरी बार पता नहीं क्यों उसने ई-मेल खोल लिया।
Reply


Messages In This Thread
RE: Antervasna नीला स्कार्फ़ - by desiaks - 10-05-2020, 12:44 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,484,924 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 542,627 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,225,436 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 926,800 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,644,762 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,072,887 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,937,758 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,013,142 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,015,463 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 283,307 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)