RE: Antervasna नीला स्कार्फ़
अब आज भी मैंने पार्क के पंद्रह चक्कर तो लगा लिए, लेकिन गली के मोड़ पर चायवाले के सामने रुककर चाय पीने के नाम पर विद्रोह कर दिया।
“मैं चाय नहीं पीता। ख़ाली पेट तो बिल्कुल नहीं। पैन में इन काली पत्तियों के साथ खौलती चाय को देखकर मुझे उबकाई आती है।” जितनी सहजता से मैं ये बात कह सकता था, मैंने कह दी।
“दिस इज़ एक्ज़ैक्टली वाई… बिल्कुल इसी वजह से अवि… हमारा साथ रहना बहुत ज़रूरी था। हम अभी भी एक-दूसरे को कितना कम जानते हैं।” चाय का ग्लास उसने मेरी तरफ़ बढ़ा दिया और मैंने थाम लिया – नैना के भाषण के डर से कम, बर्फ़ हो गए अपने हाथों को थोड़ी-सी नर्मी देने के इरादे से ज़्यादा।
कम जानते हैं, इसलिए साथ हैं। ज़्यादा जान जाएँगे तो अलग हो जाएँगे, कहना तो ये चाहता था मैं, लेकिन कहने की हिम्मत थी नहीं, इसलिए बात कहीं हलक़ में ही अटकी रह गई थी (और इसलिए यहाँ ब्लॉग पर लिखना पड़ रहा है। और इसलिए ये पोस्ट भी ड्राफ़्ट में ही रह जाएगी)।
मुझे अचानक मिस एलिस याद आ रही हैं आज, हाई स्कूल में मेरी इंग्लिश टीचर, जिन्होंने केकी एन दारुवाला की एक कविता पढ़ाते हुए कहा था क्लास में, ‘एवरी रिलेशनशिप कम्स विथ एन एक्सपायरी डेट’। हर रिश्ता अपनी मियाद लिखवाकर आता है। कमाल की बात है कि उस दिन मिस एलिस एक प्रेम गीत (लव पोएम) पढ़ा रही थीं क्लास में।
“Her star-erasing beauty’s spell,
turns me feverish, frail, unwell.
Her presence is both bliss and hell -
I tremble so.”
ये कविता मुझे इसलिए मुँहज़ुबानी याद है क्योंकि जितने दिन में मिस एलिस ने ये पोएट्री पढ़ाई उससे भी कम दिनों में मैंने लाइब्रेरी से चुराई हुई केकी एन दारुवाला की और कविताओं के पुर्जे भेज-भेजकर अपनी क्लास की सबसे इन-डिमांड गर्ल अदिति बैनर्जी को अगले दो साल के लिए पटा लिया था।
ये कविता इसलिए भी मुँहज़ुबानी याद है क्योंकि ‘हर स्टार-इरेज़िंग ब्यूटिज़ स्पेल / टर्न्स मी फ़ीवरिश, फ्रेल, अनवेल’ वो पंक्तियाँ हैं जिसका इस्तेमाल मैंने अपनी हर रिलेशनशिप, हर अफ़ेयर में, हर लड़की के लिए किया। प्यार चाहे कितनी ही बार क्यों न कर लो, हर बार एक अच्छे-भले इंसान को कमज़ोर, बीमार बना देने का माद्दा रखता है। हम फिर भी अगली बार सबक नहीं लेते। मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट ही समझ लीजिए। और कमाल की बात है कि कोई-न-कोई पोएट हमारी शख़्सियत की हर कमज़ोरी को ठीक-ठीक बयाँ करने के लिए पता नहीं कहाँ से लफ़्ज़ भी ढूँढ़ लाता है! मैं अपने अगले जन्म में शायर होना चाहता हूँ- बैचलर शायर, जिसको किसी के साथ कभी लिव-इन की किसी मजबूरी में न बँधना पड़े।
वैसे मिस एलिस की बात कच्ची उम्र में ही समझ आ गई थी। रिश्ते मतलब के होते हैं। मेरा वक़्त नहीं कटता, इसलिए अपनी ख़लिश भरने के लिए मैंने तुम्हें फ़ोन लगा लिया। मेरे पास करने को कुछ नहीं है, इसलिए मैंने तुम्हें ईमेल भेज दिया, तुमसे चैट कर लिया। मैं बेवजह ज़िंदगी से परेशान था, इसलिए मैंने तुमसे तुम्हारी एक शाम उधार माँग ली।
हर रिश्ता मतलब का, हर रिश्ते का कोई मानी।
तो क्या नैना वो म्यूज़ है जिसकी ख़ातिर दिल के बाँटे हुए छोटे-छोटे टुकड़ों को इधर-उधर से बीनकर उसके आगे रखने का जी करे? सोचना पड़ेगा। वैसे मेरे अंदर का कम्पलसिव बैचलर विद्रोह पर उतारू है।
नैना और अवि व्हॉटसैप मैसेज पर
25 जनवरी 2013
नैना- कब तक लौटोगे? मैं ऑफ़िस से निकल रही हूँ दस मिनट में।
अवि- देर होगी। बहुत देर। इंतज़ार मत करना। मेरे पास स्पेयर की है।
नैना- लेकिन मेरे पास स्पेयर बॉयफ़्रेंड नहीं है!
अवि- हा हा हा। दिस वॉज़ नॉट फनी नैना…
नैना- ओके सॉरी। आई लव यू अवि।
नैना- अवि
नैना- अवि…
नैना- अवि, तुमने जवाब नहीं दिया तो मैं फ़ोन करूँगी अब।
अवि- नैना प्लीज़। मैं कुछ काम ख़त्म करने की कोशिश कर रहा हूँ। घर पहुँच गई हो?
नैना- हाँ। खाना?
अवि- नॉट फॉर मी। गुड नाइट।
नैना- फिर एक साथ रहने का क्या मतलब है अवि? तुम पिछले एक हफ़्ते से रोज़ आधी रात के बाद आ रहे हो।
अवि- ईयर क्लोज़िंग है। डेडलाइन। मैं कल सुबह बात करता हूँ।
नैना- मुझे बात नहीं करनी।
अवि- थैंक गॉड, तुम्हें बात नहीं करनी!
नैना की डायरी से
25 जनवरी 2013
कल सुबह आठ बजे मुझे अपनी प्रोजेक्ट रिपोर्ट ई-मेल करनी है और दिमाग़ है कि किसी कोरे काग़ज़ से बढ़कर हो गया है। अपनी पहली नौकरी से ही मुझे इतनी नफ़रत हो जाएगी, ये मैंने कहाँ सोचा था! पागल कुत्ते ने काट खाया था कि बैंक की नौकरी कर ली। आधे वक़्त तो बैंक के किसी और बैंक से मर्जर की अफ़वाहें राउंड ले रही होती हैं और बाक़ी के आधे वक़्त ई-मेल पर गोल-सेटिंग हो रही होती है। जी में आता है ये नौकरी मुझे अपनी कंपनी से बाहर कर दे, उससे पहले ही मैं इस नौकरी को लात मार दूँ।
लेकिन न नौकरी छूटती है न प्यार छूटता है। अजीब मुसीबत है। नैना सिंह, किसने कहा था 23 की नादान उम्र में ऐसे दो-दो जानलेवा रोग पाल लेने को?
मैंने भी क़रीब-क़रीब फ़ैसला कर ही लिया है। जब देखो तब माँ फोन पर शादी—शादी करती रहती है। कह दूँगी कि हिम्मत करके कि लिव-इन रहकर देख रही हूँ और लिव-इन का हासिल ये है कि शादी को लेकर मेरे दिमाग़ में क्लैरिटी आ रही है।
वैसे रूममेट के साथ हॉस्टल में रहना ही ठीक था। कम-से-कम उससे वक़्त पर लौट आने की अपेक्षा तो नहीं थी। मेरे भीतर ये जो भी गुबार था, सोता हुआ ही ठीक था। अवि ने पता नहीं क्या किया है? मैं मैं नहीं रह गई। और रह गई बात नौकरी की, तो अगर किराया चुकाने के लिए ही नौकरी करनी होती है तो मैं किसी मौनैस्ट्री में रहने के लिए चली जाऊँगी एक दिन कसम से।
वाह वाह नैना सिंह! शादी करनी नहीं। नौकरी करनी नहीं। ज़िंदगी में कोई मक़सद दिखता नहीं। मेरी ही जैसी हालत रही होगी सिस्टर फिलॉमिना की कि एक दिन ननहुड ले लिया होगा उन्होंने। ज़िंदगी भर का एब्स्टिनेन्स- ज़िंदगी भर का परहेज़… संयम… त्याग। ज़िंदगी भर का पलायनवाद। वैसे भाग जाने के लिए कितनी हिम्मत चाहिए? किसी के साथ लिव-इन रहने से भी ज़्यादा?
इस घर की आदत नहीं लग पाई है वैसे। दो कमरे के इस घर में अब भी अँधेरे में दीवारों, दराज़ों, मेज़-कुर्सियों से टकराती रहती हूँ। बदन से नील नहीं उतरता। हर जगह चोट के निशाँ और हर चोट का मरहम एक- अवि की फेदर टच छुअन।
दो बजनेवाले हैं, और अवि अभी भी नहीं लौटा।
नैना और अवि व्हॉटसैप मैसेज पर
12 फरवरी 2013
नैना- अवि, मैं चाभी घर पर भूल गई। ऑफ़िस जाते हुए अपनी वाली प्लीज़ लेटर बॉक्स में छोड़ देना।
अवि- कहो तो ऑफ़िस न जाऊँ। लंच में मटन करी खाओगी?
नैना- फिलहाल बॉस सिर खा रहा है। वी विल हैव टू स्किप इट टुडे।
अवि- शो योर मिडल फिंगर टू दैट ईडियट एंड कम होम।
नैना- प्लीज़ अवि। तुम्हारी डेडलाइन ख़त्म हो गई तो कुछ भी बोलोगे?
अवि- अच्छा सॉरी। शाम तो तो जल्दी आओगी?
नैना- इट इज़ योर टर्न टू वेट नाउ। मैंने पूरे हफ़्ते रात-रात भर इंतज़ार किया है अवि।
अवि- तुम इतनी भी विन्डिक्टिव हो? अब मुझसे बदला लोगी?
नैना- साथ नहीं रहते तो मेरे बारे में ये बात कैसे पता चलती अवि?
अवि- तुमको हर लम्हा जानना किसी ट्रेज़र हंट से कम नहीं है। यू आर अ मिस्टिरियस वूमैन नैना।
अवि- नैना…
अवि- नैना…
अवि- नैना, प्लीज़ मैसेज का जवाब दो वर्ना मैं तुम्हारे ऑफ़िस आ जाऊँगा।
अवि के ब्लॉग-ड्राफ़्ट्स से
14 फरवरी, 2013
नैना के साथ रहते-रहते मैं अपने बारे में कम-से-कम ये तो समझ ही चुका हूँ कि मैं ज़िंदगी से ऊबा हुआ और भावनात्मक रूप से नितांत अकेला आदमी हूँ। तैंतीस की उम्र तक आते-आते कम-से-कम पंद्रह-सत्रह नज़दीकियाँ जी चुकने के बाद ख़ुशी और सुकून की तलाश बंद कर चुका हूँ। दस साल पहले घर से भागकर नए शहर में आकर बस जाने पर उठाए जानेवाले सवाल ख़त्म हो चले हैं, शादी करके बस जाने का सबब बाक़ी नहीं रहा।
मेरी दुनिया में ज़बर्दस्ती घुस आने की कोशिशें बहुत की हैं लोगों ने। लोगों से मेरा मतलब लड़कियों से है। लेकिन नैना की तरह आज तक इस अधिकार के साथ कोई मेरे वजूद पर हावी नहीं हुआ। इसको उम्र का तकाज़ा कहा जा सकता है। अगर औरतों का कोई बायलॉजिकल क्लॉक होता है तो पुरुषों का भी होता ही होगा शायद। (पुरुष? मैं लड़के से पुरुष कब बन गया अपनी ही नज़र में?)
रोज़-रोज़ भागते हुए जब हाँफने लगता हूँ तो एक नैना ही मेरी हताशा, अवसाद, पागलपन और विध्वंस को झेलने का माद्दा रखती है। मेरे साथ रहते-रहते वो दस साल बड़ी हो गई है। उसके साथ रहते-रहते मैं दस साल का बच्चा हो गया हूँ। अपने भीतर प्यार की जिस डाल को मेरे भीतर के बेरहम लकड़हारे ने काट डालने का फ़ैसला किया था, उसपर ये ताज़ा कोंपलें फूटने लगी हैं और कब से? मियाद तो ख़त्म होनी थी न?
“हर प्रेज़ेंस इज़ बोथ ब्लिस एंड हेल -आई ट्रेंबल सो…”
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