RE: Antervasna नीला स्कार्फ़
मेरी याद में जो है, वो प्यार के कुछ तवील फ़साने हैं। थ्री-एक्ट प्ले की तरह ये फ़साने बिगिनिंग, मिडल और एंड के पैटर्न पर तो हैं, लेकिन इन फ़सानों में कोई रेज़ोल्यूशन नहीं है। मुझे जो जिस हाल में जैसे मिलता गया, मैं उनसे प्यार करता गया। मेरे पास कोई परिभाषा नहीं थी, कोई माइलस्टोन नहीं था, न प्यार का ऐसा कोई आदर्श था जिसके पदचिह्नों पर चला जा सके। जब हम ताउम्र अपने आस-पास लोगों को साथ रहते हुए भी दूर रहते देखते हैं तो प्यार का मुकम्मल स्वरूप समझ में नहीं आता। ये अधूरे फ़साने और कुछ हों-न-हों, मेरे लिए ज़रूरी बहुत थे। अफ़सोस से उबरना उन्हीं फ़सानों की बदौलत सीखा है। और एक नैना है कि मुझे मेरी ऊब और सनक के साथ रहते हुए भी मुझे जीने की वजहें देती रहती है।
दुनिया भर में आज वैलेंटाइन डे मनाया जा रहा है। प्यार के बाज़ारवाद, प्यार की मार्केटिंग का दिन। मैं भी वही करने जा रहा हूँ। नैना के लिए डिनर अरेंज करना चाहत कम, ज़रूरत ज़्यादा है। ख़ुदगर्ज़ समझौते, ताकि हर हाल में, जितना हो सके, कलह से बचा जा सके। लिव-इन रहने के ख़तरों में से एक बड़ा ख़तरा- ख़ुदग़र्ज़ समझौते। इन ख़ुदग़र्ज़ समझौतों के आईने में अपना जो अक्स दिखाई देता है, उससे डर लगता है।
मैं इतना क्यों बदलने लगा हूँ?
“हर प्रेज़ेंस इज़ बोथ ब्लिस एंड हेल –आई ट्रेंबल सो…”
नैना और अवि व्हॉटसैप मैसेज पर
28 फरवरी 2013
नैना- हाय अवि। मैं आज रात रूमी के साथ रुक रही हूँ, अपने हॉस्टल के कमरे में।
अवि- क्यों?
नैना- आई नीड सम ‘मी टाइम’। मुझे न ऐसे पजामा पार्टी करने की, अपनी उम्र की लड़कियों के बीच होने की तलब हो रही है।
अवि- कहना क्या चाहती हो? मैं तुम्हारी उम्र का नहीं हूँ, इसलिए?
नैना- आई डिडन्ट मीन दैट अवि। जस्ट दैट दोस्तों की याद आ रही है।
अवि- और जो मुझे तुम्हारी याद आएगी, उसका क्या होगा?
नैना- अवि, एक रात की तो बात है।
अवि- एक रात में सुनामी आ गई थी। एक रात की बारिश ने मुंबई को डुबो दिया था। ज़िंदगी बदल जाए, इसके लिए एक रात तो क्या, एक लम्हा बहुत होता है।
नैना- सिर पीटने वाले इमॉटिकॉन नहीं बनाया होता एन्ड्रॉयड पर? अवि, यू आर टेकिंग इट टू फार नाऊ।
अवि- ओके गो। बट आई विल मिस यू।
नैना- नहीं मैं नहीं जा रही कहीं। मेरे लिए खाना रख देना प्लीज़।
अवि- किस वाला इमॉटिकॉन कहाँ है?
नैना- यू हैव लॉस्ट इट अवि। बाय। सी यू।
अवि- जल्दी आना।
नैना की डायरी से
5 मार्च 2013
अवि कहता है कि मुझे बेचैन रहने की बीमारी है। अवि ये बात नहीं भी कहता, तो भी मुझे ये बात मालूम थी। भटकने की फ़ितरत लेकर पैदा हुए लोग अपना जेनेटिक स्ट्रक्चर कैसे बदल डालेंगे भला! अवि कहाँ बदला कि मैं बदल पाती!
अभी तक मेरा यही आवेग, मेरी यही बेचैनी अवि को मुझसे जोड़े रखती थी। अब इन्हीं बेचैनियों में वो शिकायतें ढूँढ़ता रहता है। जब लिव-इन ये है तो शादी क्या है? बच्चे पैदा करने की मजबूरी? मैं अवि की भाषा बोलने लगी हूँ, और अवि मेरी। लिव-इन के ख़तरों में से एक बड़ा ख़तरा।
वैसे अपनी ही डायरी में मेरे इस एकालाप का कोई हासिल नहीं है। मैं क्या सोचती रहती हूँ, उस पर मेरा भी बस नहीं चलता आजकल। तीन क़रीबी दोस्त पिछले दो महीने से नौकरी की तलाश कर रहे हैं। मैं नोटिस पीरियड में हूँ। बैकिंग का करियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म होता-सा दिखता है। अवि के साथ कहाँ तक जाऊँगी, ये भी नहीं मालूम। फिर चैन आए तो कैसे? कभी लगता है, योगा इंस्ट्रक्टर बन जाऊँ। कभी लगता है, लखनऊ वापस चली जाऊँ और वहीं किसी छोटे-से स्कूल में टीचर बन जाऊँ। कभी लगता है माँ की बात मान लूँ और शादी कर लूँ- अवि से नहीं, बल्कि किसी नॉर्मल से इंसान से जो मुझे नॉर्मल बच्चे दे सके। जिसके लिए खाना बनाते हुए और जिसके बच्चों की नाक पोंछते हुए मेरी उम्र का आधा हिस्सा निकल जाए। वो कैसी औरतें होंगी जो चैन से जीती होंगी?
घर जा रही हूँ आज। इससे पहले हज़ार काम हैं निपटाने को- घर के, बाहर के। पैकिंग करनी है, बैंक का काम करना है। दोस्तों से किए गए झूठे वायदे निभाने है। मॉर्निंग वॉक छूट नहीं सकती और बैंक में आपके बदले कौन कर आए काम? तमाम कोशिशों के बावजूद मैं डिसऑर्गनाइज्ड ही बनी रहती हूँ, स्क्रीन पर चमकते पावर नोट्स काम नहीं आते और एमबीए के दिनों में टाइम मैनेजमेंट पर पढ़ी गई एक हज़ार किताबें यहाँ मुँह चिढ़ाती हैं। टाइम मैनेजमेंट तो फिर भी मुमकिन होगा, लेकिन माइंड मैनेजमेंट? या फिर हार्ट मैनेजमेंट?
खिड़की पर जिस जगह बैठकर डायरी लिख रही हूँ वहाँ से दूर पार्किंग लॉट में खड़ी किसी की गाड़ी की विंडस्क्रीन पर नीम के सूखे हुए पत्ते गिरे जा रहे हैं बेसाख़्ता। धूप आँख-मिचौली खेल रही है और फागुन अपने शबाब पर है। सामने दूर क्षितिज पर कुछ दिखता नहीं, एक अंतहीन सड़क दिखती है बस। मैं घर लौटने के सफ़र पर जाने से पहले थककर बैठी हूँ थोड़ी देर और अवि के म्युज़िक सिस्टम पर आबिदा परवीन जाने क्या गा रही हैं।
ये क़रार के मुख़्तसर लम्हों को याद करना दरअसल तूफ़ान के आने से पहले की शांति है। वैसे, हमारे और तुम्हारे बीच बेक़रार बने रहने का ही क़रार था शायद अवि। मैं तुमसे लखनऊ की उस शताब्दी में मिली ही क्यों?
नैना और अवि व्हॉटसैप मैसेज पर
4 अप्रैल 2013
अवि- नैना, कब लौटोगी? तुम्हें गए एक महीने से ज़्यादा हो गए।
नैना- मेरे पास नौकरी नहीं है अवि। मैं लौटूँ भी तो किस वजह से?
अवि- मैं तो हूँ। आओ तो। हम साथ मिलकर तुम्हारे लिए दूसरा ब्रेक ढूँढ़ेगे। पहले से बेहतर।
नैना- पहला कभी बेहतर नहीं होता। पहला प्यार भी नहीं।
अवि- तुम क्या कहना चाहती हो नैना?
नैना- ये तो तुम बताओ अवि। प्यार के मामले में मुझसे कहीं ज़्यादा तजुर्बेकार हो। क्या ये ब्रेक-अप के लक्षण हैं?
अवि- नहीं, तुम्हारे दिमाग़ के ख़राब हो जाने के लक्षण हैं। कम बैक। तुम्हारी मानसिक सेहत के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि कोई तुम्हें ज़ोर से थामे और बहुत देर तक तुम्हें चूमता रहे।
नैना- कोई?
अवि- ज़ाहिर है… मैं।
नैना- अवि, एक बात पूछूँ? बताओगे?
अवि- पूछो न नैना।
नैना- हाउ इज़ किस ‘ए’ डिफ़रेंट फ्रॉम किस ‘बी’ टू किस ‘सी’?
अवि- ये कैसा ऊलजुलूल सवाल है नैना? यू रियली नीड टू कम बैक। टू मी।
अवि- नैना…
अवि- नैना, तुम जवाब क्यों नहीं दे रही? फ़ोन तो उठा लो।
अवि- नैना, अगर तुमने जवाब नहीं दिया तो मैं लखनऊ आ जाऊँगा। नहीं रहना है लिव-इन यार। मुझे शादी करनी है तुमसे।
नैना की डायरी से
15 मई 2013
मुझे पता नहीं क्या हो गया है। जिस अवि के लिए सौ झूठ बोले, उस अवि से झूठ बोलने लगी हूँ। ये नहीं है मेरे लिए। ये बिल्कुल नहीं था मेरे लिए। जब लिव-इन नहीं था तो शादी क्या होगी?
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