RE: kamukta Kaamdev ki Leela
शर्म के मारे अजय पानी पानी हो रहा था और यशोधा उसे उस्काने में मगन थी। फिर कहीं दिल के कोने से एक आवाज़ निकली के दादी के विरूद्ध जाना शायद ठीक नहीं होगा। लेकिन एक चीज जो उसके मन को खटक रहा था।
अजय : (अपने पल्लू से खेलता हुआ) दादी, आप ने यह क्यों कहा के इससे मेरे मोम और डैड को मज़ा आ सकता है! (भोला सूरत लेके) मुझे कुछ खास समझ नहीं आया!
यशोधा : (उसके गाल खेंच ती हुई, जैसे कोई नवेली दुल्हन हो) अरे मेरा बच्चा! में इसलिए बोल रही थी क्योंकि मैंने खुद कल शाम के फंक्शन में तेरे अपने बाप को तुझे तारते हुए देखी थी! (बिना लज्जा के बोल दी)
अजय का दिल जोरों से धड़क उठा। मानो किसी ने मीठी खंजर झोंक दिया हो सीने में। उसका अपना बाप???? लेकिन वोह तो केवल एक आइटम नंबर था, एक मामूली मनोरंजन! लेकिन असर तो होना ही था। घर में कामुकता का माहौल जो था!
यशीधा : में तो कहती हूं के (पल्लू पकड़ कर शर्मा के) अपने बाप से जरा बचके रहना! कहीं कुछ..... (अपनी ही कहीं बातों से वोह लज्जित हो गई और चुप हो गई)
अजय : (शर्म के मारे लाल हुआ) क्या दादी!! कुछ भी कह देते हो! धत्त!
यशोधा : बेटा! हो सके तो इस आदत को थोड़ा नियंत्रण में रखना! तू जानता है ना में तुझसे कितना प्यार करती हूं!
दादी पोते में ऐसे ही बातें चलती गई के तभी किसी के आने का आहट आयि दोनों को और अजय बिना कुछ कहे शर्माकर झट से बाथरूम घुस गया और फ्रेश होके अपने नॉरमल अवस्था में वापस आगया और देखा कमरे में उसके दादा रामधीर प्रवेश कर चुके थे। पति से नज़रें हटके अपने पोते की तरफ देख यशोधा खिलखिला उठी और गले लगा दी "अरे मेरे लाल! दादी को थोड़ा अब आराम करने दे!"
अजय बिना कुछ बोले, एक अजीब मुस्कुराहट लेके कमरे में से निकल परा। उसे निकल देख यशोधा फिर मुस्कुरा उठी। अपने पोते को जाके देख रामधीर : यह दादी पोते में क्या गुल खिल राहा था?
यशोधा मुस्कुराई "एजी! कुछ खास नहीं! अयिये आपका थोड़ा मुंह मीठा करू!" कहके अपने पल्लू को नीचे गिरा दी और रामधीर को अपने विशाल मोटे स्तन से चिपका दिया। रामधीर ब्लाउस के उपर से ही अपनी पत्नी की धके हुए निप्पलों का रसपान करने लगा।
रामधीर : (स्तन को मसलता हुआ) कहो तो इनमें दूध का बंदोबस्त फिर से करू?
याशीधा शरमा गई लाल लाल होके "धत्त!! कुछ भी बोलते ही आप! मेरा दौड़ तो गुजर चुकी है! कोई और ही खोज लीजिए आप!! बाबा! मुझसे तो नहीं होगा!
बात तो कहीं गई थी मज़ाक में, लेकिन रामधीर के मन में सिर्फ और सिर्फ आशा की तस्वीर आने लगी।
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अब तकरीबन लंच का समय ही गया था, सारे सदस्य बैठ चुके थे, सिवाय आशा और रमोला के जिन्हें परोसने की आदत थी पहले। रामधीर के आने तक किसी की भी हिम्मत नहीं हुई शुरवात करने की, क्योंकि नॉर्मली रामधीर ही श्री गणेश करते थे। आज माहौल कुछ अजीव था इस परिवार में। तीखे नज़रें एक दूसरे को तार रहे थे, तो कहीं शर्म के परदा हट रहे थे।
एक तरफ नमिता अपने भाई से नज़रें चुरा रही थी और जवाब में राहुल भी नटखट अंदाज़ से अपने दीदी को देख रहा था। राहुल के नज़रें दीदी पे थी तो वहा दूसरे और आशा सब्जी परोसने के चक्कर में जानबूझ के अपनी मोटे मोटे स्तन के दरार कि नुमाइश करती गई, जो झुकने ने के वजह से ब्लाउस में से झांक रहे थे।
उसे बखूबी मालूम थी के उसकी गुब्बारों पर उसकी ससुर रामधीर की नज़रें ज़रूर होगी और सच भी तो थी यह बात, क्योंकि रामधीर भी सब्जी मांगने के चक्कर में एक बढ़िया सा फिल्म ट्रेलर देखने को मिला जो था! आशा को भी इस बात से भी ऐतराज़ नहीं थी, बल्कि उसे अन्दर ही अन्दर बहुत मीठी मीठी एहसास हो रही थी और दिल में उसकी एक ही आवाज़ गूंज उठी, के काश महेश भी ऐसे ही तीखी नज़रों से उसे देखता।
एक तरफ यह सब थे तो दूसरे तरफ एक अजीब माहौल समा हुआ था, गौरव बार बार अपने ही बेटे से नज़रें झुकता गया और रमोला थी के बार बार अपने पति और बेटे के तरफ ही देखती गई। कुछ सोच रही थी शायद पर क्या यह तो समय ही बताएगा, लेकिन माथे पे शिकन ज़रूर थी।
रेवती (अपनी मा की और) मम्मी क्या हुआ? ऑल ओके?
रमोला : (मन में) अब इस नकचरी को कैसे समझाऊं के मेरे मन में क्या क्या चल रहा है!! (अपने पति की तरफ) इनको लेके में क्या करू! कहीं कोई कांड ना कर दे!
वह कुछ बोली नहीं बस रेवती को देखकर मुस्कुराई और बरी ममता से बोल परी "कुछ चाहिए बेटी? दाल वगैरा?" फिर अपने पति की और "आप को?"
गौरव : वोह मटन थोड़ा पास कर दो! (एक लेग पीस हाथ में लिए जानवर की तरह टूट परा)
खाने का माहौल तो कुछ संगीन था लेकिन फिर सभी अपने अपने कमरे में प्रस्थान करने लगे। आखरी में जब राहुल उठा तो बेसिन के सामने नमिता खड़ी मिली। नज़रें तीखी और अपने लट को उंगलियों तले खेलनी लगी। राहुल भी नटखट अंदाज़ से देखने लगा।
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