RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल अब बिना विलंब किए यशोधा के तरफ मुड़ गया और उसे अपने ही दादा के सामने से अपने बाहों में ले लिया। उफ़! लहरों पे लहर गुजर ने लगी धरती कर हर एक तालाब और नदी में मानो, और एक तेज़ धड़क गुजर गई दोनों दादी पोते की धड़कन पे से और इन्हे दंग नज़रों से देखता गया रामधीर।
राहुल जो अपने दादी को जकड़े हुए थे, फौरन अपने आपे में आग़या "दादी मुझसे!! शायद ना हो.." दादाजी के मौजूदगी में उसका रूह कांप रहा था अपने वासना को वायां करने में, लेकिन तभी यशोधा अपने पोते को संतुलन देने लगी "फिक्र मत कर बेटे! तेरे दादा में भी एक हैवान छुपा हुए है!!!" उसकी तेज़ नज़रों और शब्दो से दोनों दादा पोते हैरान चकित रह गए। "यशोधा तुम यह क्या???"। "अजी रहने भी दीजिए! आप भी ना!" नटखट आंदाज से यशोधा मुस्कुराई और अपनी पोते के कान पर अपनी होंठ ले अयी "राहुल बेटे! तू जानता है तेरा यह ठर्की दादा किसपे फ़िदा है??? तेरी अपनी मा पर!" कहके कान को प्यार से काट लिया।
राहुल का दुनिया ही मानो हिल गया था, अपने कानो पर ज़रा सा भी विश्वास नहीं हो रहा था। वहा दोनों के बाजू बैठे रामधीर भी शर्म से से झुका लिए, आशा के प्रति आकर्षत वाली बात राहुल को पता चल जाएगा, यह उसे मालूम नहीं था, लेकिन आज जिस परिस्थिति में उसे यह बात पता चली थी, वोह तो बस हजम करने काबिल भी नहीं था। यशोधा अपने पोते को अब कस के जकड़ लिया बाहों में और मानो जैसे आदेश देने लगी "राहुल! प्यार कर मुझे!! उस दिन की तरह! यह मेरी आदेश है! दिखा दे रामधीर सिंह को, तू उन्हीं का पोता है!!!"।
राहुल के जिस्म इस कथन को जप्त कर ली और तुरंत अपने कच्चे से आज़ाद हो गया। उसके नस नस फूले हुए लिंग के दर्शन करके ना जाने क्यों रामधीर को गर्व हुआ! आखिर था तो उसी का पोता। उनके अपने लिंग और दिल, दोनों में हलचल हुआ अपने पोते और पत्नी की लीला देखकर। फिर कुछ यूं हुआ के यशोधा अपनी हाथो के नाखून अपने पोते के पीठ पर गड़ा दी, जिससे राहुल एकदम उत्सुख हो उठा और दादी की केश को प्यार से सहलाकर बोल पड़ा "यशोधा देवी! आज आप मेरी हो!!!! चाहे दुनिया को आग क्यों मा लग जाए!!!!" और फिर क्या! अपने तपते लबों को अपने दादी की होंठो से जोड़ दिया।
धीरे धीरे चुम्बन गहरा होता गया और राहुल अपने आपे से बाहर आता गया, वासना के दीवारें चीरता गया। यशोधा भी ब्रपुर साथ देने लगी अपनी पोते का और रामधीर बस हैरानी से देखता गया। आज वातावरण बड़ी कामुकता से उबल रहा था और दादी पोते में प्यार उभर कर आ रहा था। राहुल का फुदकता हुआ लिंग अपनी दादी की योनि पर दस्तक देने लगा। उफ़ इस केवल छुअन से यशोधा सिसक उठी। रामधीर का मानो खून खोल उठा, लेकिन फिर सामने का दृश्य भी था मनमोहक।
यशोधा और राहुल अब लीला मैदान में मगन थे, सारे रस्में और बंदिश भूल चुके थे। फिर कुछ ऐसा हुआ के दोनों राहुल और यशोधा चौंक गए। अपने सुपाड़े को भीतर की तरफ प्रवेश करवाने ही वाला था राहुल के तभी उसके दादाजी के कड़क आवाज़ गरज परा "रुक जा! यह शुभ काम में खुद अपने हाथो से करूंगा।" इतना कहना था के रामधीर ने अपने हाथ आगे किए और अपने पोते के लिंग को बेझिझक कस के थाम लेता है।
एक तेज़ धक्का राहुल के जिस्म से गुज़र जाता है। उकसा लिंग मानो दो गुने ज़्यादा खून से अपने नस नस को और फूला चुका हो "उफ़ दादाजी!!!!!!!" अपने लंबे लिंग को दादा के हाथ के डुआरा पकड़े जाने पर जैसे अपना संतुलन खोने चला था। पति के इस हरकत पर तो खुद यशोधा भी हैरान हो गई।
वाकई में वक़्त बदल रहा था चारो और!
खैर, लिंग को हल्का हल्का मसाज करने लगा रामधीर और राहुल हल्का हल्का आहे लेने लगा। पोते के बेचैनी देखेर उन्होंने बिना विलंब किए अब अपनी पत्नी को दुआर प पर रगड़ने लगा, जिससे नतीजा यह हुआ के यशोधा की उत्सुकता अब क्रोध में तब्दील होने लगी।
"अगर आप ऐसा करने से नहीं चूके, तो में आप को जान से मर्दुंगी!!!!!"
|