RE: kamukta Kaamdev ki Leela
गांड़ गमासाई के बाद, नमिता एक आखरी बार अपने भाई को चूमती हुई, बाथरूम में से निकल जाती है और राहुल भी खुश होकर बीते हुए हसीन लम्हे को मन मै कैद किए, अपने कमरे की और जाने लगता है। अभी भी लिंग में थोड़े तनाव था, और मन में कहीं अभिलाषा फुट परे। टॉवेल में लिंग को एडजस्ट करता हुआ, अपने ड्रॉयर खोलके पैंट टटोलने लगता है और फिर एहसास होता है, के एक भी धुला हुआ नहीं था। "लगता है मा को ही पूछना पड़ेगा!" इतना कहना था के, उसी उभरे हुए लिंग को टॉवेल में अजुस्ट किए, मा के कमरे की और जाने लगा।
वहा दूसरे और अपने कमरे में आशा अपने ससुर के साथ बीते लम्हों को याद करती हुई, अपनी गद्रयी जिस्म को सेहलाने लगी। पल्लू सर्के जाने से उसकी ब्लाउस में मोटे मोटे स्तन का दरार किसी को भी दूर से भी दिखाई जा सकती थी, लेकिन इस बात का उसे कोई परवाह नहीं थी। आंखो में बीते लम्हे के चित्र लिए और मन में ना जानने कितने हजारों उमंगे लिए आशा एक तकिए के सहारे लेटी रही। कभी उसकी उंगलियां अपने गर्दन को छूती गई, तो कभी गालों की और, उन्हीं खास जगाओ पे, जहां रामधीर लव बाइट जमे थे।
वैसे सही बात है, ऐसे सेब जैसे फूले हुए गाल को वोह सांड जैसा आदमी क्यों छोरता। "बहुत गंदे है आप ससुरजी!" आशा बिरबिरती गाई खुद के साथ और फिर वोह हसीन लम्हे को याद करने लगी जब उसके ससुर के बीज उसकी कोख में धसी गई थी और ना जाने क्यों उसके मुंह से फिर से वैसे के वैसा सिसकी फुट परी "ओह!" और अपनी पेट को सहलाने लगी। चिंता की बात तो यह थी, के ना कंडोम और ना ही पिल का सहारा था, अब अगर बीज और अंडे का मिलन हो भी गया, तो उसी फूले हुए सुडौल पेट को और फूलना निश्चित थी।
उसी खयाल से वोह शर्मा जाती है और एक लम्बी सांस लिए एक छोटी सी नींद में चली जाती है। जब तक राहुल कमरे में प्रवेश कर चुका था, आशा आंखे मूंदे सो गई थी।
राहुल अपने मा के करीब गया और गौर की इस बात की के वोह सो चुकी थी। ऐसे ही बिना कारण के, उसके नजर सीधे आशा के तपते होंठो पर चला जाता है और उन्हें गौर से देखने लगा, सचमुच कितने रस भरे थे इनमें। फिर नजर सीधे स्तन की दरार पर जाके रुक गया, उफ़! उन पहाड़ों की गहराई भला किसे ना मोहित कर सकते थे, और फिर राहुल तो ठहरा गरम खून का जवान! स्तन से नज़रे नीचे की, तो सुडौल सा पेट पे गहरी नाभि कयामत मचा रही थी।
इन सब में जो सबसे आकर्षित थी, वोह थी ब्लाउस में कैद मोटे मोटे गुब्बारे, जो शायद कोई स्पर्श के लिए तरस रहे थे, मचल रहे थे। "सच में! मा कितनी सुंदर है! कितनी गद्रायी हुई है!" दीदी, रिमी और दादी को भोगने के बाद मानो राहुल के आत्मा स्वयंम ही कामुक हो उठा था, के अब नज़रे उसके अपने मा पर आ चुका था। आशा बेटे के मौजूदगी से अनजान अपने नींद में मगन थी और यहां राहुल हवस के इरादे से अपने मा को तार रहा था। ऐसी नाज़ुक घड़ी में तभी एक हाथ आ जाता है उसके कंधो पर और राहुल घबराकर पीछ देखता है।
कंधे पर हाथ इक महिला की थी, और वोह और कोई नहीं बल्कि यशोधा देवी थी। लबों पर मुस्कुराहट लिए वोह अपने पोते को नटखट अंदाज़ से देखने लगी "सही कहते है के एक बार नाखून पर खून आजाये, तो शेर को काबू में रखना मुश्किल होता है!" इतना कहके वोह फौरन अपने हाथ को अपने पोते के उभरे लिंग को टॉवेल के उपर से ही जकड़ लिया "हाए! मा को देखकर ही तन गया! उफ़!" कान में वोह मीठी अंदाज़ में बोल परी। राहुल अपने कान में दादी की शहद घुले जैसी आवाज़ सुनके और उत्तेजित हो गया और वैसा का विसा खड़ा रहा।
यशोधा अब अपने हाथ से उसके लिंग को सहलाने लगा टॉवेल को बरकरार रखे। अब हुआ यू के उभर एक तम्बू समान हो चुका था टॉवेल के कपड़े में, और जनाब के आंखे भी वासना से भर चुका था "दादी! मा सच में कितनी सुन्दर है!" उसके मुंह से स्वयंम ही निकल गया। यशोधा मुस्कुराई और अपने पोते के गर्दन को चूम ली "बेचारी आशा! अब उसकी खैर नहीं! बेचारी कल ही ससुर से संभोग कर चुकी है!"। इतना सुनना था के राहुल का लौड़ा और त् तन गया अंदर और उसके आंख लंबे हो गए "क्या! यह क्या कह रही हो दादी???"
यशोधा : (लिंग को सहलाते हुई) अब इतना भी भोला मत बन! यह बात तो तुझे पहली है बता चुकी थी में!
राहुल : ओह नो! मा क्या...
यशोधा : (टॉवेल को एक झतके में आज़ाद करके नीचे गिरा देती है) ठीक सुना! ठीक समझा तूने!!! तेरी मा आशा किसी रण्डी से कम नहीं!!!!
टॉवेल नीचे गिर चुका था और दादी के शब्दो के असर मिला कर राहुल के लौड़े के नसे इतना फूल गया था के मानो अगर अभी इसी वक्त उस लौड़े को अगर थोड़ा रगड़ा ना जाए, तो पाप होगा। "दादी!!!! आप..."। "चुप भी हो जा! तू नहीं जानता कैसी उछल रही थी तेरी मा तेरे दादा के गोद में!!" इतना कहना था के फिर एक बार कस के अब नंगे लौड़े को मसल दिया अपनी हाथो से यशोधा। राहुल तो मानो एक अजीब जन्नत की सैर करने चला था।
यशोधा अपने पोते के लिंग को आराम से मसलती गई, जब की राहुल का नजर अपने मा पे जमा रहा। स्तन की दरार ही काफी थी उसका खून खोलने के लिए और उपर से उसके दादी के हरकतें! फिर हुआ यू के यशोधा अपनी होंठो को अपने पोते के कानो तक लाती है "सच में कयामत है तेरी मा आशा! उफ़! तेरे दादा के साथ इतना घुल गई थी, मानो बरसो की प्यासी हो!"। राहुल दादा और मा के लीला के बारे में सुनके बहुत उत्तेजित हो रहा था और बार बार लम्बी सासे लेने लगा अपने मा की और देखकर।
यशोधा भी आनंद ले रही थी इस लम्हे का और फिर हुआ यू के उसने फौरन अपनी घिसाई और बरा दी लिंग पे, जिससे हुआ यह के राहुल और उत्तेजित हो उठा और लिंग पे थामे हाथ पर अपने हाथ रख देता है और दादी को और बरावा देने लगा "और करो दादी!! आह कभी भी हंदी टूट सकता है!!!!"। "अरे पागल! तेरी हंडी का कीमत मै जानती हूं! इतना बढ़िया मलाई का मात्रा है कि, मै खुद कायल हो चुकी हूं, तो फिर यह तो मेरी बहू है!"। दादी की शब्दो का असर राहुल को होने लगा और अब वोह अपने आंखे मूंद के, उस हसीन लम्हे का इंतज़ार करने लगा, जब फिर से उसके जरिए बरसात होगी और पिर!
आखिर हंडी टूट गई और एक लंबे आहे भरता हुए राहुल का सुपाड़े के मुंह खुल जाता है और कुछ हद तक मलाई छिटक देता है सीधे आशा के चेहरे पर। गरमा गरम मलाई अपने मा पर यू छिरक के, एक आनंदमई एहसास में खो गया राहुल, जो सेशे बिस्तर पर बैठ गया अब। पोते के उत्तेजित और तृप्त चेहरे को देखकर यशोधा भी मुस्कुरा उठी "लाडला!"।
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