RE: kamukta Kaamdev ki Leela
"उफ़ दीदी! यह तो...." रेवती के पास सब्द नहीं थे उन पहाड़ों के वर्णन में, और उसकी यह हालत देखकर रिमी भी अपनी माध्यम आकार के स्तन को उसकी पीठ पर दबाने लगी "दी, मेरी भी तो टैरिफ करो!" इतना कहना था के वोह रेवती को अपने और घुमा देती है। अब रिमी भी अपनी नग्न स्तन का दर्शन रेवती को करवा देती है, जिसे देख वोह और उत्तेजित होने लगीं। लेकिन इससे पहले वोह कूह कहती, नमिता उसकी बटन वाली टीशर्ट को ऐसे हड़बड़ी में खोलती है, के शर्ट तो शरीर से अलग हुए ही, लेकिन बटन भी टूट गए साथ साथ, सारे के सारे।
इस चीरने की आवाज़ समेत शर्ट से अलग होने के एहसास से रेवती एक दफा नीचे गिरे हुए अपनी उस शर्ट की और देखने लगी, जो उसने प्यार से एक दफा खरीदी थी। लेकिन अब इस वक्त, उसे यह सब कुछ नहीं चाहिए थी! अब अपने बहनों की तरह वोह भी उपर से ही पूर्ण नग्न थी। तीन तीन स्तन के जोड़े एक दूसरे की और देखने लगे मानो। अब दोनों रेवती और नमिता अपने अपने हाथो को सीधे उसकी स्तन की और लेके अाई और प्यार से सहलाने लगी।
रेवती कुछ बिना कहे अब, आंखे मूंद लेती है और इस बार रिमी अपनी रसीले होंठ उससे जोड़ देती है। तीनों अब इस लीला में मगन थे और दुनिया भुलाए बस एक दूसरे के मज़े लेने लगे।
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एक तरफ जहां यह माहौल था, तो दूसरे और आशा अपने कमरे में, अपनी बिस्तर पर गुमसुम हुए, बार बार तकिए को सहला रही थी। उसकी आंखो में अभी भी वही रमोला और उसके बेटे का दृश्य बरकाकर थी। उन दोनों के बीच की लीला को देखकर, कहीं सवाल अब उसके मन में आए! "इस पूरी लीला से में इतनी उत्तेजित क्यों हुई?" "क्या राहुल मुझे भी उस नज़र से...?"। एक लहर ताज़गी दौड़ गई उसकी गद्रये जिस्म से, और वोह एक कमसिन कली की तरह तकिए को जकड़ लेती है "नहीं नहीं! यह कुछ ज़्यादा ही हो रही है! राहुल को समझना होगा कि यह सब....."। तभी अचानक हुआ यू के, सामने के आइने से एक तेज़ रोशनी छलक पड़ी और सीधे उसकी आंखो की और।
रोशनी तेज़ होते होते, फिर कम होने लगी और आइने की और देखकर आशा हैरानी से स्तब्ध बैठी रही। आश्चर्यजनक उस आइने में रामधीर खड़ा हुआ था, चेहरे पर मुस्कान और वहीं लंगोट और बनियान पहने। उनका दर्शन किए आशा हैरानी से उस आइने के सामने आने लगी और अपनी आंखे टटोलकर देखने लगी वापस। बिल्कुल सही थी वोह! उसके ससुर की आत्मा उस आइने में प्रकट हुए थे। "कैसी हो बहू?" उनकी आवाज़ में एक गंभीरता आए हुए थे, और जिस्म के इर्द गिर्द भी काफी रोशनी थी, बिल्कुल एक आत्मा के समान।
ससुर की मीठी चुभती हुई आवाज़ को भला आशा कैसे भूल सकती थी! ना जाने किस हसीन अंदाज़ में वोह भोग चुकी थी उसी आवाज़ के तेलें और उस दिन की याद अभी भी उसकी मन में ताज़ा थी "मै ठीक हूं बाबूजी! आप तो फट से चले गए! आपका क्या!"। मुंह मोड़ती हुई आशा यहां वहा देखने लगी, और उसकी ऐसी बातों से रामधीर हंस पड़ा "अरे मेरी प्यारी बिटिया! मै कहा जा सकता हूं! एक बात याद रखना बहू! शक्ति ख़तम नहीं होती, बस तब्दील हो जाती है! तुम शायद समझ चुकी हो, के में किस सन्दर्भ में बात कर रहा हूं! खैर, मेरी आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है!" इतना कहना था, के वोह वहा से गायब हो जाता है एक रोशनी के भांति।
आइने को नॉरमल होते देख, आशा वापस तकिए को लेटे लेटे जकड़ लेती है और बेटे के ख़यालो में खो जाती है। एक फैसला अभी भी लेनी बाकी जो थी।
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