RE: kamukta Kaamdev ki Leela
घर आते ही, राहुल हरबारी में अपने जूते उतारने लगा और कमरे कि और जा ही रहा था के उसके सीने से अचानक आशा तकड़ा जाती है, कुछ इस तरह के वोह गीर ही रही थी के, राहुल उसे अपने बाहों में थाम लेता है। समय मानो वहीं का वही रुक गया हो और बड़े अदा के साथ आशा वहीं के वहीं उसके बाहों में ऐसी थामे रही, मानो दो प्रेमी एक दूसरे के गिरफ्त में जैसे अगए हो।
आशा : (शर्माकर नज़रे चुराए) अब मुझे उठाएगा भी या ऐसा ही पोज लिए खड़ा रहेगा?
राहुल : (धीमे स्वर में) नज़रे चूराओ मत मा! देखो मेरी तरफ। मुझे कोई ऐतराज़ नहीं, आपको इस दशा में रहने देने के लिए!
आशा : (थोड़ी नटखट होती हुई) देख! मेरी वजन तुझसे संभाली नहीं जाएगी बेटा!
राहुल : (और कस के थाम लेता है, पीठ की और हाथ थामे) किस ने कहा मा? तुम कहो तो, तुम्हे गोदी में उठाकर बताऊं?
आशा : हट! बदमाश कहीं का, इतना आसान थोड़ी ना है! पहले तो तेरे बाप मुझे उठा लेता था! (एक लम्बी सास लेती हुई) पर अब! मुझे मोटी को कैसे संभालेगा तू?
कमाल की बात यह थी के, आशा वैसे के वैसा राहुल के गिरफ्त में लेटी रही, ना राहुल उन्हें सीधा उठा रहा था, और ना ही वोह बाहों को छोड़ना चाहती थी। कुछ तो कशिश थी इस लम्हे में, के मा बेटे बस एक दूसरे को देखते ही रह गए। आंखो आंखों में, ना शब्द और ना ही आवाज़। बार बार आशा की आंखो में रमोला और उसके बेटे के रंगरेलिया समा रही थीं, इसलिए ऐसे पोज में वोह और ज़्यादा शर्मा जाती है। फिर धीरे से बोली "अब उठा भी दे बेटा! रात का खाना भी तो बनानी है!"। कुछ पल के बाद, राहुल खुद ही मा को सीधा खड़ा कर देता है और उपर अपने कमरे की और दौड़ परा।
अपने पल्लू को एडजस्ट करती हुई, आशा बार बार इस हसीन लम्हे को मन में समय, दबी दबी सी मुस्कान लिए रसोई की और कमर मटकते हुई जाने लगी। बर्तनों ध्यान कम थी, और बेटे के खयाल ज़्यादा! इतना के, उसके दिल के कोने से आवाज़ आई के काश राहुल उसे वैसे ही थामे रहता कुछ देर और। बस थोड़ी देर और! अनजाने में ही सही, उसके होंठ अपने आप बिरबिरा रहे थे "मुझे छोर मत बेटा, थामे रख मुझको! बहुत अकेली हू.... मुझे छो...." सारे के सारे अल्फाज़ बार बार कह रही थी वोह अपने आप से और तभी रसोई में रमोला की प्रवेश होती है "दीदी वोह.......", वोह गौर से देख रही थी के आशा मन ही मन बारबरा रही है और काम में मन कम लगी थी।
थोड़ी नज़दीक जाने के बाद, रमोला को यकीन हुई के आशा राहुल का नाम का माला जप रही थी, धीमे धीमे आवाज़ में। मन ही मन वोह मुस्कुराई और एक खांसी कि आवाज़ देती हुई बोली "दीदी! दाल!!!", और तभी हुआ यह के आशा वापस हकीकत में आजाती है और फौरन कड़ाई की और देखने लगी, और फिर पीछे रमोला की और "क्या हुआ? ज़ोर से क्यों आवाज़ दी??" अपने तेंद्र भंग किए, वोह एक क्रोध भरी नज़र से रमोला की और देखने लगी "कल्मुही कहीं की, इतनी शराफत की ढोग! और वहा बिस्तर पर मेरे बेटे के साथ!!" मन में सोचने लगी आशा और अपने काम से काम रखने लगीं।
वहा दूसरे और, राहुल बार बार अपने मा से टकराते हुए लम्हे को मन में समाने लगा, और ना चाहते हुए भी उसके हाथ अपने पैंट में उभर की और जाने लगा। सुडौल बदन और चौड़ी पीठ को पल पल याद करते हुए, उसके हाथ धीरे धीरे लिंग को कपड़े के ऊपर से ही मसलने लगा और आंखे भी मूंद कर लिया देखते ही देखते। ना जाने उस लम्हे में क्या बात थी, के राहुल को खुद लग रहा था जैसे उसकी मा खुद उस आलिंगन को तोड़ना नहीं चाहती थी। अब मामला यह हो गया के पैंट को उतारना ही पड़ा, और वोह भी कच्छा समेत!
लिंग इतना मोटा फूल गया था, के उसे नग्न करके राहुल को एक सुकून सा मिला। बार बार अब उस सुडौल महिला, जो उसकी मा थी, उसे याद करके, वोह अपने चरमसुख पे खो गया था। बार बार वोह यही सोच रहा था, के कुछ कशिश ज़रूर थी सुडौल गद्रय महिलाओं में, चाहे वोह उसकी दादी हो या चाची! लेकिन अब अपने मा को भी आजमाने का शौक होने लगा उसे। उन मोटे मोटे स्तन और चौड़ी पीठ के तले, ना जाने और क्या क्या खजाने थी, यह राहुल को देखना था। ऐसी ही, आशा की छवि मन में लिए, वोह अपने लिंग को हिलाता गया, के तभी उसकी चौखट पे एक शकस अपनी सास थामे, यह दृश्य देखने लगीं।
वोह और कोई नहीं, बल्कि रेवती थी, जिसकी आंखे इस वक्त बहुत बड़ी बड़ी चुकी थी, और धड़कने तेज़ होने लगीं। यह होना लाजमी थी, क्योंकि सामने उसके, उसके भाई राहुल का मोटा सवला लिंग पे हाथ उपर नीचे, उपर नीचे हो रहा था। जैसे, जैसे लिंग पे हाथ के पसीने लग रहे थे, वैसे वैसे रेवती की माथे पर पसीना आने लगीं, उसके होंठ कांप उठे, और उत्साह के मारे वोह उन होंठो को दांत से हल्की दबा भी देती है, कमबख्त उस सामने का दृश्य का करे भी तो क्या करे!
मन ही मन वोह के परी "ओह नो! राहुल भइया! छी! गंदे कहीं के...... ऐसे कैसे!" उसे समझ नहीं आ रही थी के उसकी भावनाए क्रोध के तरफ थे या कौतोहल के तरफ।
सामने उसके राहुल, बिस्तर पर लेटे, आंखे मूंदे अपने लौड़े को मसलता गया, इस बात की उसे ज़रा भी एहसास नहीं के, उसकी बहन वहीं खड़ी थी, जो अब पूरी व्याकुलता और उत्तेजना के मारे मजबुर हुई थोड़ी सी आगे आने के लिए, और उस नज़ारे को और करीब से देखने लग गई। नस नस से फूले हुए सावले लिंग पे हाथ जैसे पिस्टन को तरह चलने लगा, और रेवती की आंखो की गुठलियों भी उसी दिशा में उपर से नीचे हो रहे थे। सुबह जो क्लिप उसकी दिखाई गई थी सेक्स का, उससे तो वोह काफी उत्तेजित हो चुकी थी, और अब यह वास्तविक दृश्य को देखकर वोह और उत्तेजित हो रही थी।
बिना किसी संकोच के, उसके हाथ अपने आप ही अपनी स्तन की और चली जाती है, टीशर्ट के ऊपर से ही, और उसे धीरे धीरे मसलने लगी। एक प्यारी सी सिसकी निकल आई उसकी मुंह से, लेकिन फिर दूसरे हाथ को वोह अपने मुंह पर थामे रखी, ताकि राहुल को ज़रा भी उसके मौजूदगी का भनक ना परे। लेकिन जनाब तो दुनिया से दूर, अपने मा की यादों में खोया था, उसे क्या पता उसके यह हरकत से कोई और भी सुख की दिशा में जा रही थी!
रेवती इतनी बेचैन हो रही थीं के, अब एक हाथ से वोह अपनी स्तन को मसलने में लग गई, तो दूसरे हाथ से वोह अपनी ट्रैक पेंट्स में फेस मुनिया को भी साथ साथ सहलाने लगी। बड़ी प्यार से वोह यह सब कर रही थीं, और नज़रे थे जो लोग और उसपर चल रहे मुट्ठी पर टिके हुए थे।
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