RE: kamukta Kaamdev ki Leela
आशा : आप सब जाओ यहां से! मुझे अकेली रहने दो!
यशोधा : अरे पगली! अब खुद को क्यों रोक्के रखी है! अभी भी समय है, एक बार सोच ले इस बात पर! मेरे दो दो बेटे, एकदम अलसी और निकम्मे निकले! (इस बात पे रमोला भी मुंह फेर लेती है) अगर सच में मेरे पतिदेव का आशीर्वाद किसी में है, तो वोह है मेरा नवासा राहुल! बस!
आज एक सास और उनके दो बहुएं नहीं बैठी थी, बल्कि तीन औरते बैठी थी, एक विषय साथ में लिए! अब जो आग बरसाना दोनों ने शुरू की, इससे आशा अब खुद से काबू खोने की अवस्था में आने लगी धीरे धीरे।
रमोला : (कामुक सवर में) माजी! आपको राहुल ने कैसे और....
यशोधा : (शर्माकर लाल लाल होके) हाय!!! मत याद दिला मुझे! उफ़!
रमोला : (अब हाथ को आगे बढ़ाकर उनकी जांघ को दबाती हुई) माजी!!! बताइए ना!
यशोधा : देख!!!! मुझे शर्म आ रही है!
रमोला : तो में ही शुरू कर देती हूं! दीदी! (आशा की और देखकर) सच कहूं तो आपका बेटा एकदम हीरा है! मसल मसल के मेरी हालत ही खराब कर दी!
यशोधा : इतनी भाव मत खा बहू! वोह मुझे भी कहां बक्ष दी है! अरे मुझ जैसी बुढ़िया को भी नहीं छोरा उसने!
रमोला : देख रही है में! कटनी निखर गई है आप! और तो और यह बदन आपका (उपर से नीचे देखकर) उफ़! आपकी त्वचा भी मानो चमक रही हो!
यशोधा : (शर्माकर, अपनी चेहरा छुपाती हुई) उफ़! तू क्या मुझे मार ही डालेगी क्या!
रमोला : और सबसे बड़ी बात! माजी! वोह प्यारी सी हंडी मलाई से भरी! (होंठ गीली करती हुई)
यशोधा : (दिल की धड़कन तेज़ महसूस करती हुई) देख! मेरी मु मत खुलवा!! बहुत मारूंगी तुझे में! कलमुही कहीं की!! (झूठी घुस्से में)
रमोला : अब आप जो भी बोले माजी! लेकिन सच तो यह है के उस मलाई को मै भी चक चुकी हूं! और (आंख मारती हुई) आपने भी तो की!
आखरी के कुछ शब्द सुनके आशा की नस नस आग से उगल उठी! यह सब क्या सुन रही थी वोह। उसे खुद यकीन नहीं हो रही थीं। "मलाई??? क्या बोल रहे हो आप लोग??" उससे रहा नहीं गई, मन उसकी बेचैन और विचलित हो रही थी। रमोला और यशोधा अब अपने हो अंदाज़ में मुस्कुरा रहे थे और यशोधा आशा की पीठ सहलाती हुई बोली "अरे पगली! अब तुझे क्या खुल के बतानी पड़ेगी मुझे!" रमोला भी हंस देती है "वैसे दीदी, काफी अच्छी एक्टिंग कर लेती हो!"।
यशोधा अपनी होंठो को अब आशा की कान तक लेके अती है "बहू! एक बार वोह मलाई लेके देख! तू पूरी के पूरी निखर जाएगी! बात मान मेरी!"। इतना कहना था के रमोला और वोह उठ जाती है, और अपने अपने दिशा की और जाने लगे, कमरे से बाहर निकलते ही।
बेचारी आशा वहीं के वही स्तब्ध बैठी रही! आंखो में क्रोध थे लेकिन दोनों के दोनों जांघ योन रस से गीले थे। अब तो अपने आदर्शों पर भी यकीन नहीं रही आशा को।
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