RE: kamukta Kaamdev ki Leela
शाम को आशा बेसब्री से बरामदे में ही यहां से वहा और वहा से यहां घूमने लगी। कुछ तो शायद कमी मेहसूस हो रही थी उसे। ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था के महेश के होते हुए भी आज वोह सम्पूर्ण औरत होने का एहसास नहीं कर रही थी। रेलिंग को कस के जकड़ती हुई वोह उपर आसमां की और गौर से देखने लगी। वोह खो ही चुकी थी के अचानक, एक हाथ उसके हाथ पर थम जाता है। एक घबराहट की सिसकी देती हूं, जब आशा पीछे मुड़ी, तो एक मुस्कुराहट लिए राहुल खड़ा हुए था वहा। मा बेटे के नज़रे मिल गई और आशा बेचैन होके, बस उसे ही देखती गई "क्या चाहिए बेटा?" बड़ी मुश्किल से अब वोह राहुल से नज़रे मिला पा रही थी।
राहुल ने अपने हाथ को और जमा दी मा के हाथ पर "यहां अकेली क्या कर रही हो मा?" एक तेज़ लहर उमंग की गुज़र गई आशा की बदन पे, जब राहुल ने वहीं के वही खड़े, अपने मा का हाथ थाम लिया। बेचारी आशा नज़रे मिलाए तो भी कैसे मिलाए! अपने सास और रमोला की मुंह से जो जो बाते वोह सुन चुकी थी, उसे यह समझ नहीं आ रही थी के कैसे सामना करे अपने बेटे का। बार बार उसकी हाथ रेलिंग को जकड़ रही थीं, और साथ साथ राहुल के हाथ भी अपनी गिरफ्त बड़ा चुका था।
एक लहर खामोशी दौड़ गई इस लम्हे में और समय मानो बही के वहीं रुक गया। "मा! तुम क्या,.... क्या तुम सब जान चूक....."। "इस विषय मै कोई बाते नहीं होगी! चला जा यहां से" आशा के गले में क्रोध थी, लेकिन एक कम्पन भी साथ साथ समाई हुई थी, बेटे के मौजूदगी से उसे कुछ कुछ तो हो ही रही थीं। "में जाने के लिए नहीं आया हूं! मुझे जवाब चाहिए!" राहुल अटल था अपने इरादों में, और वहीं के वहीं जमा रहा। फिर आशा की मुंह से कुछ ऐसे शब्द निकल आए, जिसे सुनके राहुल भी हैरान रह गया।
एक बड़ी अजीब सी अदा के साथ, आशा मुंह को दूसरे दिशा पे फेरती हुई बोलीं "मुझे मालूम नहीं थी, के तुझे औरतों में ही इतनी खास दिलचस्पी है, वैसे भी तुझे कमी किस बात की? जो तू मेरे पास आया है!"। राहुल भी मन ही मन खुश हुआ के आखिर मा भी उसके पास आही रही थी, लेकिन साथ साथ उसे यह भी मालूम था के जल्दबाजी किसी भी काम में ठीक नहीं! अगर अपने मा को उसे अपने बाहों में समेट ना ही है, तो वोह उसकी रजामंदी लेके ही होगा। खैर, अब राहुल अपने होंठ को आशा के कान तक लाता है "तो मा! क्या तुम्हे इस बात से जलन होने लगी??" ना जाने क्यों, राहुल को यह मौका दिखा, एक हल्की सी चुम्मी उसकी कंधो को देने की, और तो और उसने दे भी दिया।
कंधे में बेटे के होंठ का स्पर्श से आशा सिहर गई और रेलिंग को इस बार और कस के जकड़ ली "मुझे क्यों जलन होने लगी भला?? तू जा यहां से! बहुत शैतान होगया है तू!" आशा की बुनियाद अब कमजोर हो रही थी, पैरो तले जमीन अब धीरे धीरे पिघलने लगीं। राहुल और पीछे पीछे सन गया अपने मा से, कुछ इस कदर के उसका सोया हुए लिंग अब उत्तेजित होकर सीधे सामने के सुडौल गांड़ पर दस्तक देने लगा था और आशा वोह मेहसूस भी करने लगी थी। राहुल के बदमाशी को अब वोह और बढ़ावा दे या फिर उसे कामुकता की चिन्न माने! यह उसे समझ में नहीं आ रही थी।
लेकिन राहुल ठहरा आशिक़ मिज़ाज! वोह क्यों रुकता भला, वोह अब धीरे धीरे मा के कंधो को बड़ी अदा के साथ चूमता गया और साथ साथ आशा भी सिसकियों पे सिसकियां देने लगी अब, लेकिन धीमे स्वर में। लेकिन, राहुल ने यह भांप लिया था। शाम का समय था और बरामदे में से आसमान नीले रेंग में खुद को समेट चुका था। आशा गौर से आसमां की और देखने लगी, और राहुल उसके कंधो को प्यार से यहां वहा चूमता गया। बड़ी अदा के साथ अब राहुल अपने हाथ उसकी सुडौल उभरे हुए पेट तक ले आया और प्यार से सहलाने लगा। नरम मास पे बेटे के हाथ लगते ही एक खुमारी सी छा गई आशा में।
पेट को सहलाते हुए, राहुल अपने होंठ को फिर एक बार आशा की कान तक लाता है "वैसे मा! तुम उन सब औरतों से एकदम मस्त दिखती हों!, सच में!" यह शब्द मीठे मीठे शहद की तरह उसकी कान में घुलने लगी और वैसे वैसे आशा सिसक उठी एकदम से। एक तेज़ लहर दौड़ रही थी उसकी जिस्म के अंदर ही अंदर, बार बार दिमाग कह रही थी के अब बेटे के हाथ को रोका जाए, लेकिन दिल के भीतर से वोह यह सब का आनंद ले रही थी। हैरांजनाक उसकी मन के भीतर से यही आवाज़ आ रही थी के "ओह! और दबा इस पेट को! ज़ाहिर करदे अपना प्यार मुजपे!"।
अपने विचारों से वोह खुद बहुत शरमा गई, और सोचने लगी के क्यों ना बस इस हल्के हलके मसाज का आनंद लिया जाए। राहुल भी अपने मा का रजामंदी समझ चुका था और पेट को सहलाना बरकरार रखा। इस दौरान आशा और उसके बीच कुछ वार्तलाब भी चालू हो गया, कुछ बाते भी साफ होती गई!
आशा : तू सच में कब इतना बड़ा हो गया, पता भी नहीं चली!
राहुल : (सहलाते हुए) तुम नहीं देख पाई मा! लेकिन दादी और चाची ने देख ली मा!
आशा (धर्कन तेज़ होती हुई) : तू बहुत शैतान हो गया है!
राहुल : इतना ही नहीं मा! बल्कि......
आशा : बल्कि क्या????
राहुल : (पूरी हिम्मत जुटा के) रिमी, रेवती और नमिता दीदी भी इस में शामिल है!
इतना सुनना था कि आशा की आंखे बड़ी हो गई और उसकी मोटी मोटी स्तन और गति से उपर नीचे होने लगी। हा यह सच थीं के उसने अपने बेटियों में कुछ ताज़गी और निखरता देखी थी, लेकिन अब इसमें भी राहुल को शामिल होते देख, वोह बहुत हैरान थी, पर गुस्से भी हैरानी की बात यह थी, के इन सब सोच से उसकी खुद की योनि में अब गीलापन छाने लगी।
राहुल ने यह सब बता के, अपना हाथ का जकड़ पेट पर थोड़ा ढीला कर लेता है, और धीमे सवर में "मा, कहीं तुम नाराज़ तो......"। लेकिन आशा खुद एक मदहोशी के आलम में गुम थी! बार बार सोचने लगी के "मै कौन हूं पाप या पूर्ण का विचार करने! में तो खुद तेरे दादाजी के साथ भोग कर चुकी हूं, एक रखेल की तरह! अब अगर तू ने यह सब कर ही लिया! तो कौन सी अघटन हो गई!" एक तेज़ सास लेती हुई, वोह मन ही मन बोल परी।
फिर कुछ पल के बाद, आशा पीछे मुड़ी अपनी बेटे की और, फिर एक मीठी सवर में बोल परी "सहलाते जा! अच्छा सहलाता है तू!" एक नटखट अंदाज़ थी चेहरे पर, जिसे देख राहुल भांप लेता है के अब पत्थर पिघलने की फिराक में थी। बड़े अदा के साथ वोह पेट को सहलाता गया और इस बार बिना झिझक के, अपने होंठ को आशा से मिला देता है। कहीं दूर एक तेज़ लहर सुनाई दी समुंदर मे, जैसे ही इन दोनों के होंठ मिले!
राहुल अपने मा के मीठे मीठे रस को चखता गया और जवाब में आशा भी बेटे का पूरा साथ दे रही थी। मा बेटा ऐसे मिले, जैसे बरसो से बिछरी हुई प्रेमी थे मानो। चूमने के साथ साथ अब राहुल का हाथ उसके पीठ पर चलता गया और एक हाथ अब पेट, तो दूसरा पीठ की और। लम्हा वहीं रुक गया और यह दोनों चूमते गए एक दूसरे को।
कुछ पल के बाद, लाली के चिपकने के साथ साथ जब होंठ अलग हुए, तो आशा और राहुल फिर एक बार आंख से आंख मिलाए और प्यार से एक दूसरे को देखने लगे। नज़रे चार हो ही चुके थे के अचानक आशा की फोन बज उठी और दोनों का तांद्र टूट सी जाति है।
|