RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अंदर आते ही सब अपने अपने कमरे कि और प्रस्थान हुए। रिमी काफी खुश थी और रेवती भी फूले नहीं समा पा रही थी। राहुल भी अपने लिए एक छोटे कमरे का बंदोबस्त कर लेता है, तो दूसरे और आशा और महेश अपने कमरे में पहुंचकर, अपने अपने सामान रख देते है। महेश अब बिना आशा से कुछ कहे, फ्रोरन अपने फोन पे लग जाते है। बस, फिर क्या! हो गई आशा की तन्हाई का शुरवात, अपने पति की और देखकर, मन ही मन यही सोचने लगी "क्या इसलिए लाए थे मुझे यहां, के मुझे यूहीं तन्हा तन्हा छोड़कर, बस अपने में ही रहोगे!!" लेकिन फिर शिकवा करे भी तो किस्से करे! यूहीं मायूसी को टालती हुई, वोह हॉल तक जाने लगी और सीधे अपनी मनपसंद स्थान, उर्फ बरामदे पे पहुंच जाती है।
बरामदे में से बीच का बहुत ही बडिया नज़ारा दिख रहा था उसे। क्योंकि शाम का समाय था, एक बहुत ही संगीत और पार्टी का माहौल था चारो और, ऐसे में वहा पहुंच जाता है राहुल,। जिसे देख आशा को अचानक ही कुछ ज़्यादा ही खुशी महसूस हुई। शायद मौसम का असर था!
राहुल : बहुत ही हसीन शाम है! है ना मा!
आशा : हा! वोह तो है! (बेटे के हाथ पर हाथ फेरते हुए) वैसे! क्या चल रहा है तेरे मन में?
राहुल : मा! तुम तो इस सारी मे आई हो! लेकिन माहौल के हिसाब से तुम्हे भी अपने आप को सवर्नी पड़ेगी!
आशा : (कुछ हैरानी से) क्या मतलब तेरा?
राहुल : मतलब यह के, आभी और इसी वक़्त, हम थोड़ी सी शॉपिंग करेंगे सुबह बिच जाने के लिए!
आशा : (रोमांचित होती हुई) ओह नो! नहीं मुझे नहीं पहनना कोई सूट वाहेरा! इस उम्र में!! कुछ तो सोचा कर बेटा!
राहुल : (हाथ को अपने हाथ से सहलाता हुआ) कुछ नहीं सुनना चाहता में! तुम आ रही हो बस! और वैसे भी यह सब आम बात है! फॉरेन में भी आप जैसे उम्र में भी स्विमवियर पहनकर बीच जाना नॉरमल है मा!!
आशा : (बेटे के उत्सुकता को भांप लेती है) चल ठीक है! तू तो बिल्कुल अपने दादा पे गया है! ज़िद्दी और...(रुक जाती है) खैर! चल, में अभी आई!
आशा मटक मटक के चल देती है और राहुल मन में कहीं उमंगे लिए वहीं बरामदे में से बीच का माहौल को देखने लगा। खास करके कुछ कपल्स की और, जिन्हें देखते ही उसके दिल में कहीं खयाल आने लगे। ग्रील को पकड़े वोह अपने खयालों में खोया ही था, के तभी "चले बेटा!" की आवाज़ आती है! राहुल पीछे मुड़कर अपने मा को एक सलवार कमीज़ में पाता है, जिसमे वोह काफी जच रही थी। खुशी खुशी राहुल भी अपने मा को लेकर घर से निकलने ही वाला था, के अचानक रुक जाता है "क्या पापा को बताया आपने?"। "उन्हें काम से फुर्सत मिले, तब ना! खैर, चल अब!" मा बेटा निकल लेते है घर से, और गली के सैर करने लगे।
शाम का समय, हर जगह लाइट और शौर भरा माहौल था। बीच अरिया होने के करन काफी कपल्स भी यह से वहा और वहा से यहां आते जाते नज़र आ रहे थे। हाथो पे हाथ थामे मा बेटा आगे आगे जाते गए, और सच मानिए तो कब चलते चलते उनके हाथ यूहीं मिल गए, वोह खुद उन्हें भी पता ना चला। यूहीं चलते चलते, दोनों पहुंच जाते है एक छोटी सी ड्रेस मोल में, जहा तरह तरह के बीच वियर और स्विमसूट मौजूद थे। अभी भी इस निर्णय को लिए आशा शर्म मेहसूस कर रही थी, लेकिन उत्तेजना से भरी दिल लिए, वोह बस यहां वहा रंग बिरंगी सूट्स को देख ही रही थी और तभी एक लड़की आती है, उन्हें अटेंड करने के लिए।
लड़की : जी बोलिए!
राहुल : इनके लिए एक बढ़िया सा बीच वियर चाहिए!
लड़की : ओके, वैसे मैडम, आपका बस्ट साइज़?
आशा अपने बेटे के सामने कुछ अजीब सी मेहसूस कर रही थीं, यह बोलने में, बस लड़की की और देखकर, धीमे से बोलीं "४० सी" और एक लालिमा छा जाती है गालों के और। कुछ पलो के बाद वोह लड़की कुछ सैंपल सूट्स लेकर आती है और राहुल और आशा, दोनों मिलके उन्हें बहुत गौर से देखने लगते है। शर्म के मारे बार बार आशा अपने बेटे के तरफ ही देखे जा रही थी, लेकिन बार बार राहुल भी इशारों से उसे तसल्ली दे रहा था। कुछ देर बाद राहुल एक आइटम पसंद करता है, जिसे देख आशा बहुत ही लज्जित हो गई, कुछ शर्म, तो कुछ उत्तेजना के मारे। पैकेट के कवर को देखकर ही आशा हैरानी से आंखे चौड़ी कर लेती है।
वोह पिस था एक गुलाबी रंग के सरोंग और उसके साथ एक सफेद रंग के ब्रेसियर का! उस कपड़े को पैकेट में लिपटे देख के ही आशा बहुत उत्तेजित मेहसूस कर रही थीं और जब राहुल ने खरीदने के लिए कन्फर्म किया अपने मा की और देखकर, तो आशा बस एक शर्म के मारे मीठी सी मस्कुहट देके, "हा" में इशारा की। खुशी खुशी राहुल उस सारोंग सेट को खरीदे, बाहर जाने लगा अपने मा के साथ साथ। बाहर जाते ही आशा एक थपकी देने लगा बेटे के पीठ पर "बहुत बदमाश है तू! तेरे पापा क्या सोचेंगे! अगर वोह पहनी तो??"। राहुल खुशी खशी मा के पीठ पर हाथ मलता गया "ओह मा! जस्ट चिल, तुम गजब लगोगी! ट्रस्ट मी।"
आशा उसके बातो से कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित हो जाती है और घर के तरफ दोनों चल परे। जाते जाते एक नज़र राहुल बीच के वहा जमा दी और सोचने लगा के अगला सुबह सच में कितना रंगीन होगा!
......
वहा दूसरे और महेश अपने लैपटॉप में व्यस्त था के तभी उसे किसी के गुनगुनाने की आवाज़ सुनाई दिया। झट से नज़रे उपर की तो एक टॉवेल में लिपटी रेवती नजर अाई उसे। मन किया के क्यों ना उस परी समान लड़की को और थोड़ा घुरा जाए, सो कर लिया उसने। वहा, दूसरे तरफ रेवती जान बूझकर अपने गीली बालों को वहीं सूखा रही थी अपने दूसरे टॉवेल से, जबकि पूरी के पूरी बदन एक बेहद पारदर्शी गुलाबी टॉवेल में लिपटी थीं और बदन में भी हलके हलके बूंदों की मौजूदगी साफ दिखाए दे रही थी।
कुछ पल तक तो महेश मनमुग्ध होकर अपने भतीजी को ही देखती गई। जो चीज उसे आशा की मौजूदगी में ना प्राप्त हो रहा था, वहीं एक कमसिन जवान लड़की की और हो रहा था। महेश यूहीं लैपटॉप पे टाइप करने का नाटक करते हुए बस रेवती को ही घुरे जा रहा था। एक बेचैनी सी होने लगा उसके जिस्म में जैसे रेवती अब पीठ को उसके तरफ किए, अपने टॉवेल को धिली किय अपने समाने का बदन को साफ करने लगी। बार बार महेश को यह खयाल आया के काश एक बार अगर वोह उसकी स्तन देख पाता।
रेवती की मीठी मीठी आवाज़ के साथ साथ अब महेश का लिंग भी खड़ा होने लगा। सच में, मन ही मन वोह मानने लगा इस बात को के कुछ तो कशिश थी जवान लड़कियों में! जिसे वोह आशा में हाली में बिल्कुल नहीं ढूंढ़ पा रहा था। लेकिन फिर रिमी की आवाज़ आती है "रेव दीदी!! जल्दी आना, कुछ दिखानी है आपको!" इतना सुनना था के टॉवेल लिपटी वोह अपने कमरे की और दौड़ गई। एक झटके वोह ऐसे गायब हो गई महेश के नज़रों से, के मानो कोई वहम हो!
फिर कैसे भी खुदको संभाले, महेश वापस अपने काम पर लग जाता है। कुछ ही देर बाद दरवाजा रिंग होता है और इस बार रिमी दौड़ जाती है खोलने के लिए। दरवाजा खुली और एक मा और बेटा का अंदर आना हुआ! होंठो में हसी और चेहरे पर रौनक। रिमी यह भी गौर की के आशा के हाथ पर एक ड्रेस बैग थी, जिसे देख रिमी ने अपने भाई की और इशारा की, तो राहुल ने सिर्फ आंख मार दिया। इशारा समझती हुई रिमी एक बार अपने मा को देखने लग जाती है, जो इस समाय काफी उत्तेजित नज़र आ रही थी।
.......…
उस रात को खाने के बाद, सब अपने अपने कमरों में विराजमान हुए और महेश बिस्तर पर लेटकर ही अपने पत्नी की खुशी से फूले हुए गाल को देखे जा रहा था "क्या बात है! बड़ी खुश लग रही हो?"। आशा भी कुछ नटखट स्वभाव की हो चुकी थी अब तक, अपनी नाईटी की बटन को लगाती हुई वोह उस पैकेट को अपने पति के गोद पे रख देती है "खुद ही देख लो, मेरी खुशी की करन!"। हैरान और कौटोहल से भरे मन के साथ महेश वोह पैकेट के अंदर वोह बिकिनी और सराेंग को देखता है, और उसके आंखे बड़ी के बड़ी, अचानक से मानो कोई तेज़ लहर गुज़र गया धड़कन में से "क्या यह तुम पहनोगी???"।
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