RE: kamukta Kaamdev ki Leela
आशा भी बिना भाव खाए अपने पति की और देखने लगी "क्यों? नहीं पहन सकती?"। महेश बिना समाय ज़ाहिर किए पूछ परा "लेकिन यह तो....ओह!"। उत्तेजना के मारे महेश कुछ खास बोल नहीं पा रहा था और आशा ने भी इस पूरी बातचीत में बेटे का नाम भी ज़िक्र नहीं की, बस अपने पति की रिएक्शन को मज़े से देखी जा रही थी। चेहरा चाहे कितना भी छुपाए, लेकिन लिंग का उभर कभी भी खुट नहीं बोल सकता! और यही हुआ महेश के साथ। एक तो रेवती की अधनंगी जिस्म और उपर से अब ऐसा बीच सूट अपने पत्नी पर तसव्वुर करके पागल हो रहा था। आशा ने हौले से उसके कान तक अपनी होंठ लाई "कुछ कुछ हो रहा है क्या आपको?"। महेश के कान में हवा जाने से वोह और उत्तेजित हो उठा "सो जाओ आशु, कल उठना भी तो है!"।
लेकिन आशा कहा मानने वाली थी! धीरे से उसने अपने हाथो को अपने पति के पजामे के नारे तक ले आई और उस नारे को लूज करने लगी "यह सूट में पहन सकती हूं ना???" अचानक ही अपने चेहरे को अपने पति के चेहरे के और नज़दीक लेके आती है और हल्के से होंठ को चूम लेती है। महेश इस हरकत से हककबक्का हो उठा और सोचने लगा के आखिर क्या यह माहौल का असर तो नहीं था उसके पत्नी पे!
आशा अब नारे को लूज करके, अपने पति के तने हुए लिंग को बाहर करती है और प्यार से उसे सहलाने लगी। इस दौरान पूरे कमरे में एक खामोशी सी छाई हुई थी और महेश भी अपने आंखे मूंद लेते है पूरी उत्तेजित होकर। और आंखो को मूंदे, बार बार वोह रेवती की टॉवेल में लिपटी बदन की कल्पना करने लगा। फायदा यह हुआ के उसका लिंग और मोटा होता गया आशा के हाथो में। क्रोध और वासना महेश में समाने लगा।
महेश : (रेवती की कल्पना करते) ओह! कितना अच्छा करती हो तुम! ओह!
आशा : (आवाज़ रेवती में तब्दील हो जाती है) आपको अच्छा लग रहा है??
महेश : हा बेटी!! कैरी ऑन!
"बेटी?" आशा कुछ हैरान थी, लेकिन फिर आज इतनी खुश थीं, के अपने पति को वोह अधूरा नहीं छोड़ना चाहती थी। वोह खुशी खुशी उस लिंग को अपनी हाथो से हिलती गई। महेश वैसा वैसा और उत्तेजित होता गया और कुछ ही पलों में "ओह रेवती!!!!!" की सिसकियां देता हुआ अपने पत्नी के हाथो पे ही झर जाता है। रेवती के नाम सुनके आशा हैरानी से आपने पति की और देखने लगी। लेकिन उस सुबह होने का ज़्यादा इतजार थी। बिना कुछ कहे, वोह पास में एक रूमल से अपना हाथ साफ कर देती है और लैंप ऑफ करके सो जाती है।
मुरझे हुए लिंग पे वापस पजामा पहने, महेश को अचानक एहसास होता है के उसके मुंह से रेवती का नाम निकला भी तो कैसे! खैर, बिना कुछ और सोचे, वोह भी सो जाता है, लेकिन मन में एक बात अटल थी के क्या आशा उसे इस बारे में कुछ पूछेगी या नहीं!
अगले दिन सुबह की किरण हर खिड़की की और छलक उठी, और सब के सब एक उबासी लिए उठ गए।
महेश सबसे पहले उठ गया और सीधा लड़कियों के कमरे में आ टपका। दोनों के दोनों अंगराई लिए अभी भी अपने अपने तकिए जकड़े बैठे थे, के तभी महेश रेवती की और जाने लगा और उसके ग्लास में से कुछ चिंटे लिए, सीधे उसकी आंखो में "चलो जल्दी! रिमी तुम भी!! रेडी हो जाओ!" अपने बेटी की और एक नजर डालके, वोह चल देता है कमरे में से। रेवती फिर एक बार अंगराई लेके रिमी की और हौले हौले बोलती है "लगता है ताऊजी काफी उत्तेजित है! क्यों?"। रिमी बिस्तर से उठी और बाल बनाने लगी "ऑफकोर्स! कल तूने जो शो दिखाई! बहुत जल्द तेरे पे कूद परेंगे!"। मन में उत्तेजना लिए रेवती फटाफट अपनी बिकिनी और शोर्ट्स, लेके बाथरूम चली जाती है।
रेवती के बाद, रिमी भी तयार होने चली जाती है और वहा आशा दिल में नए नए उमंग लिए बाथरूम के आइने में खुद को उपर से नीचे देखने लगी और फिर दीवार के ग्रील पर रखे उस बीच ड्रेस की तरफ। "सच में, राहुल के पसंद की बात ही अलग है! कितना खयाल है मेरा उसे, कम से कम उसका दिल रखने के लिए तो में यह ज़रूर पहनूंगी!" मन में ठान लेती है और आगे बढ़ती है। वहा दूसरे और राहुल और महेश अपने अपने शर्ट्स में तैयार हुए बाकियों की रहा देखने लगे। राहुल के नज़रे अपने मा के लिए और महेश अपने परियो के लिए।
तभी पूरे हॉल में एक रौनक छा गई, जब दोनों रेवती और रिमी ने कदम रखें! महेश और राहुल दोनों उन दोनों को देखते ही रह गए। दोनों के मुंह से इत्तेफाक से एक साथ ही "वाउ" निकल जाते है!
रिमी एक नीले रंग की बीच बिकिनी सूट पहन हुई थी और यह बात साफ नजर आ रही थी के पिछले कुछ दिनों से वोह थोड़ी मोटी ज़रूर हो गई थी, खास करके स्तन और कमर की जगाओ पे। लेकिन यही जिस्म की निखरता काफी आकर्षित बना दी थी उसे। वहा दूसरे और सबसे कामुक और गरम रेवती लग रही थी गुलाबी बिकिनी और पैंटी में। शांत रहने वाली रेवती में भी काफी बदलाव आ चुकी थी, जिसका करन खुद राहुल ही था, जिसके साथ संभोग करके, उसके तन और मन, दोनों में एक रौनक आ चुकी थी।
उन दोनों को देखकर महेश और राहुल पागल सा होने लगा, और खास करके महेश! जिसका ध्यान उन दिनों से हट ही नहीं पा रहा था, चाहे रेवती हो या रिमी। अपने पिता के रिएक्शन देखकर रिमी प्यार से बोली "डैड!! हेल्लो!! आप ठीक तो हो ना?" दिनों लड़कियां खिलखिला उठी और महेश भी होश में आ परा "नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं! वैसे रिमी! यह ड्रेस कुछ ज़्यादा ही पारदर्शी नहीं है! तुम्हे नहीं लगता???" एक बाप के हैसियत से वोह रिमी को देख रहा था, और शर्म के मारे नज़रे नहीं मिला पा रहा था।
रिमी एक पोज लिए खड़ी रही "ओह डैड!! नोट फैर! एक बार रेव दीदी की और तो देखिए!", फौरन रेवती भी नाटक करती हुई पूछ ली न "ताऊजी! आप बुरा तो नहीं माने ना??"। महेश कितना भी दिखावा कर ले, उसका लिंग के उभर को शर्ट्स में, दोनों के दोनों लड़कियां देख लेती है। हौले से दिनों अपने आप ही मुस्कुरा उठे।
उभर तो राहुल के पास भी था, लेकिन किसी और के राह देखते हुए, किसी के बेसब्री से इंतज़ार में! बेकाबू होकर उसके मुंह से अपने आप ही निकल गया "वैसे मा कहां है?? अब तक रेडी हुई की नहीं!"। रिमी अपने भाई तक गई और उसके गाल दबा दी "वेट भइया! इंतज़ार का फल मीठा होता है!!" रिमी की बातों से अब राहुल का बेचैनी और ज़्यादा बड़ने लगा। रेवती भी बिना झिझक के महेश के अजी बाजू घूमती हुई "ताऊजी, अपने यह नहीं बताया के में कैसे लग रही हूं!!"। भांजी की अधनंगी अवस्था को देखकर महेश अपने उभर को अब ज़्यादा देर काबू नहीं कर पा रहा था, बस इस मामले को यही दफा करने के लिए "नाइस बेटा! बहुत ही अच्छी आउटफिट है!" माथे पर पसीना लिए महेश अब आगे आगे अपने पत्नी की राह देखने लगा।
तभी प्रवेश होती है आशा की, और जैसे ही उसकी कदम आ गिरी हॉल में, तो महेश और राहुल, दोनों ही मनमुग्ध होकर उसे ही देखने लग गए। सच में सफेद बिकिनी और गुलाबी सरौंग में कयामत से कम नहीं लग रही थी आशा!
एक पोज लिए आशा अपने बेटी और भांजी के तरफ मटक मटक के चल देती है और रिमी एक सिटी मार देती है "वाओ मोम!!! जवाब नहीं!"। आशा मुस्कुराती है शर्मीली अंदाज़ में, और उसके बाजू खड़ी रेवती भी खुद को रोक नहीं पाई "लुक्स सो सेक्सी ताइजी!!"। आशा खुद को संभाले "अब बस भी करो! तुम दोनों भी बहुत प्यारी लग रही हो!"। महेश फिर बिना विलंब किए बोल परा "अब चलो भी सब! लेट्स गो!"। पांचों के पांच घर से बीच की और निकल लेते है, जो उस रिसोर्ट के काफी नजदीक ही था।
कुछ ही पलों के बाद वोह आखीरकर बीच पहुंच जाते है और खूबसूरत वातावरण को देखने लगे। भीड़ कुछ खास नहीं थी, और तो और। रेत और समुंदर का नज़ारा दिलकश था!
चारो और एक रंगीन माहौल बना हुआ था, कुछ परिवार थे तो कुछ दोस्तो का झुंड! कहीं तन्हाई में मस्त लोग थे तो कहीं प्रेम में घूम रहे कपल्स। रिमी और रेवती दौड़ जाते है एक साथ,, पूरी बीच के मॉइना करते हुए। महेश बस उन लड़कियों की ही घूरने लगा और उनकी बलखाती हुई गांड़ के हिलाव को ही देखता गया। इस बात को आशा ने गौर की थी के कहीं ना कहीं, शायद रेवती के प्रति उसके पति के कुछ भावनाए जागे थे, क्योंकि इस बात की आगाज़ उसे कल रात ही हो चुकी थी।
राहुल भी सैर करने लगा बीच में, और यह मिया बीवी रेत पे रैक फैलाए, बैठ परते है। आशा को इस आउटफिट मे एक अलग ही मज़ा आ रही थी।
आशा : (महेश की और इशारा किए) वैसे! आप ने कुछ खास तारीफ नहीं की मेरी?
महेश : (पत्नी की और देखकर) उफ़! बहुत ही गजब लग रही हो आशु! वैसे यह चॉइस तुम्हरा है या किसी की सिफारिश??
आशा : वैसे.…... है तो किसी दोस्त की ही सिफारिश! खैर, कल रात के बारे में बात करे? (दबी मुस्कुराहट के साथ)
महेश : (घराबकर) केके किस बारे में?? कुछ समझा नहीं में!
आशा : (टेन लोशन निकालकर खुद पे मलती हुई) : अब बनिए मत! आप साफ साफ़ रेवती की नाम ले रहे थें!!
महेश : क्या कहना चाहती हो??? (घुस्से में, उठ जाता है) ज़रा रिलैक्स भी करो! डोंट क्रॉस उर लिमिट्स!
महेश चल देता है, सच तो यह है के यह सिर्फ एक बहाना था, अपने बेटी और भांजी को फॉलो करने की। दोनों तरफ नज़रे जमाए वोह उन दोनों को धुंडने लगा और आगे आगे जाता गया। वहा दूसरे और आशा अपने पति की रवायिए से परेशान, बस अपने टवाचा पर लोशन लगता गया, के तभी अपने नज़रों के सामने एक मदमस्त मर्द की मौजूदगी से वोह सिहर जाती है।
यह कोई और नहीं, उसका बेटा राहुल था। लेकिन आज इस रंगीन बीच के माहौल में, केवल एक बीच शर्ट्स में अपने बेटे को देखकर, वोह थोड़ी उत्तेजना से भर गई अंदर ही अंदर। कैसे भी अपने नज़रे अपने बेटे के जिस्म से फिराकर वोह नज़रे नीचे झुका दी "कुछ कहना चाहता है?"। राहुल वहीं हीरो वाले पोज में खड़ा रहा और एक अंगराई लिए हुए बोला "बस मा! इस नए वातावरण का मज़ा ले रहा हूं! लेकिन... तुम बस क्या बैठी रहोगी?"। आशा लोशन को बाजू में रख देती है "तो और क्या करू बेटा?"। इस बात पे राहुल हाथ आगे करता है "लेट्स एक्सप्लोर!"
आशा अपने बेटे के प्रस्ताव से खुश होती है और खड़ी हो जाती है। राहुल फिर एक नज़र अपनी मा को उपर से नीचे देखने लगा।
बेटे के नज़रों को भांपते हुए, आशा शर्मा जाती है और हल्का सा गीलापन अपनी योनि की मुख्य दुआर पर मेहसूस करने लगी। खुद को मन ही मन कोस ली और बेटे के साथ घूमना आरंभ कर लिया। सच में सुबह सुबह बीच का माहौल की बात ही अलग था और मा बेटे दोनों समुंदर की और जाने लगे। उसके उठते गिरते लहरें काफी रोमांचक नज़ारा पेश कर रहे थे।
आशा : कितना सुंदर नज़ारा है!
राहुल : (लहरों से ज़्यादा अपने मा की और देखकर) हा मा! सच में!
......
वहा दूसरे और महेश अपने बेटियों का पीछा करते करते एक पेड़ के पास पहुंच जाता है, जहा यह दोनों छुपी छुपी बाते कर रहे थे।
रेवती : कुछ भी कह ले! ताऊजी को टीज करने में कुछ डर तो हो रही थी मुझे!!
रिमी : ओह रिलैक्स दी! जैसे राहुल ने तुमको पटाया, मुझको पटाया! वैसे ही डैड भी पट जाएंगे! आई एम सूअर!
यह बात सुनके महेश का खून उबल उठा। "यह दोनों राहुल के साथ यह सब....ओह!"। खुद के कानो पर बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था उसे, और वोह आगे आगे सुनता गया।
रेवती : वैसे! सच कहूं रिमी!
रिमी : म्म्म?
रेवती : ताऊजी है बड़े हॉट! मतलब यह के उनका वोह बालो से भरा जिस्म और मूछ! सौ मैनली!
रिमी : (कुछ वैसे ही मदहोशी में) हमम... बात तो सही है रेव दीदी! कभी कभी मैंने भी उन्हें इतना ही गौर की थी!
पेड़ के डाल और पीठ थामे दोनों लड़कियां महेश के ख़यालो में गुम थे और इस बात का मज़ा महेश को भी मिल रहा था। जब उसने नज़रे नीचे की तो शोर्ट्स में उभर काफी हद तक उठ गया था और वोह आगे आगे सुनता गया अपने उभर को मसलते हुए। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ के उसने अपने ख़यालो में भी सोचा नहीं था। रेवती और रिमी अपने समलैंगिक प्रकृति में तब्दीली कर लेते है अचानक से।
रिमी : दी! मौसम इतना अच्छा है! तुम्हारे होंठ चखने का इच्छा हो रही है!
रेवती : (होंठ गीली करती हुई) तो रोका किसने! आखिर तूने ही तो मुझे इस जन्नत का सैर करवाई थी!
फिर बिना विलंब किए दोनों के होंठ मिल जाते है और इस दृश्य को उत्तेजित होकर महेश देखने लगा।
बिकिनी और पैंतीस में दिनों लड़कियां इस चुम्बन के पोज में गजब लग रहे थे और महेश अपना सुध बुध खोकर उन्हें देखता गया। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ के, उसका फोन बज उठा और घरबकर वोह वहा से खिसक लेता है, इससे पहले के रेवती और रिमी उसे देख पाते।
रेवती : तुझे ऐसा नहीं लगा, कोई बिल्कुल हमारे पीछे ही था जैसे!
रिमी : ह्म्म! शायद था कोई! क्या पता!
रेवती : डैम! प्राइवेसी भी मिलना मुश्किल है!
रिमी : ओह मैडम! यह बीच है! कोई भी झांक सकता है किसी फ्री शो के खातिर!
इस बात पर दोनों हस देते है और वहा दूसरे और महेश फोन रखते हुए, बार बार उन दोनों के बातो को याद करने लगा। उसके चेहरे पर अपने आप ही एक मुस्कान आ परा।
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