RE: kamukta Kaamdev ki Leela
लहरों की मस्ती देखते हुए राहुल के मन में भी कहीं लट्टू फुट परे। एक नज़र अपने मा की और देकर, वोह उसकी हाथ थम लेते है "चलो ना मा! लहरों की मज़े उड़ाया जाए!"। बेटे के हाथ का स्पर्श पाकर आशा की जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ गईं! एक तो यह माहौल और उपर से अपनी पारदर्शी ड्रेस को लिए वोह काफी रोमांचित भी मेहसूस कर रही थी। ऐसे में कुछ लड़के वहा से गुज़र जाते है और आशा को उपर से नीचे देखने लगे।
"आइटम सही है बॉस!"। "सही है बॉस!" कुछ अल्फाज़ राहुल के कान तक आते है और वोह घुस्से से लाल हुए उनके और बड़ने ही वाला था के आशा उसे रोक देती है "नहीं बेटा, रहने दे!" हैरत की बात यह थी के आशा के चेहरे पर एक मुस्कान थी, नटखट सी, जिसे देख राहुल हैरानी से मा की और देखने लगा "तुम खुश हो रही हो मा?"। आशा अपने बेटे के गाल दबाए "सच कहूं तो खुश क्यों ना हू! तारीफ सुनना सिर्फ लड़कियों को नहीं, औरतों को भी पसंद है!" कहके वोह खुद शरमा जाती है। अपने मा की प्रक्रिया देखकर राहुल भी हसने लगा और खुद ही अपने मा का हाथ लिए आगे आगे जाने लगा, जब तक के वोह दोनों एकदम लहरों के नजदीक ना पहुंच जाए।
दोनों अपने अपने चप्पल पीछे छोर आते हैं, जिससे लहरों के तिनके उन्हें और मज़ा दे रहे थे। फिर हुआ यू के राहुल कुछ पानी आशा की और छिड़क देता है और आशा भी मज़े लेती हुई अपने बेटे पर छिरकने लगी, कुछ अजब सा आलम था इस समय में, के दोनों मा बेटे दोस्त समान घुल मिल गए एक दूसरे से, या फिर यूं कहिए के दोस्ती से बढ़कर कुछ और। यह सिलिसला तब तक चलता गया जब तक दोनों कुछ हद तक पूरे के पूरे भीग ही ना जाए। सच बात तो यह थी के आशा के भीगे हुए टांगो को देखकर राहुल बहुत ही उत्तेजित हो उठा और इस बात का एहसास आशा को भी थी।
शर्म के मारे वोह कैसे भी हो अपनेआप को ध्कने की कोशिश की, लेकिन काफी हद तक उसकी सारौंग भीग गई थी और उसकी टांगे को दिलकश नज़ारा दे रही थी। राहुल बस अपने मा को देखता गया और धीरे से "सोरी" बोलने लगा। लेकिन आशा यह नए वातावरण में काफी घुल गई थी। अपनी हुलिया ठीक किए और बालों को सवेरे, वोह अपने बेटे की और देखकर बोली "कोई बात नहीं! मुझे काफी मज़ा आई!"। दोनों कुछ देर तक लहरों को देखकर, वापस चले जाते है। वहा दूसरे और महेश बार बार उन लड़कियों के बारे में ही सोचे जा रहा था के तभी एक साया उसके पास के रेत को घेर लेता है।
जब नज़रे उपर किया तो रेवती को खड़ी हुई पाई। फिर एक बार उसके नज़रें उसकी मदमस्त बदन पर चला जाता है।
रेवती : ताऊजी! बहुत बोरिंग है आप! चलो ना बीच का मज़ा लेते है!
महेश : अरे नहीं बेटा! आया तो हूं काम के सिलसिले में! तुम और रिमी जाकर मज़े करो! (बातो में कुछ ठेराव सा था)
रेवती बाजू में बैठ जाती है और अपनी हाथ महेश के हाथ पर जैसे ही रखी, महेश के जिस्म में एक करंट दौड़ गया। एक प्यारी मुस्कान थी रेवती की होंठो पर, महेश उन रस भरे अद्रो को ही देखे जा रहा था।
रेवती भी यह भांप लेती है और प्यार से पूछी "कुछ सोच रहे है आप?"। महेश वापस अपने होश में आता है "ओह! नहीं ऐसी बात नहीं! वैसे रेवती, यह आऊटफिट बहुत जच रही है!"। रेवती शरमाने का ढोंग करती हुई "आप को अच्छा लगा?"। महेश भी उसके हाथ पर हाथ मलता हुआ "बहुत!"।
रेवती : वैसे ताऊजी! ऐसे मौसम में तनहाई शोभा नहीं देती!
महेश : हाम्म! सही कह रही हो!
रेवती : आप नहीं समझे ताऊजी! में समझती हूं!
महेश उसके और आश्चर्य से देखने लगा और रेवती बिना विलंब किए अपनी चेहरे को आगे ले जाती है और अपनी होंठ महेश से मिला देती है। हैरानी से महेश अपनी होंठ हटाने का प्रयत्न करने लगा, लेकिन दिल नहीं माना! पूरी होश और दिल के साथ वोह रेवती की साथ देने लगा और दोनों एक दूसरे के रस चूसते गए।
समय का पता किसी को ना चला, बस यह दोनों अपने चुम्बन लीला में खोए चले गए, के ऐसे समय में अचानक ही रेवती आंखे खोल देती है और चुम्बन से अलग हो जाती है और "सोरी" कहके भाग जाती है। लेकिन अपने होंठ पर लगे कामुक नारी रस को कौन टाल सकता है, वैसे ही महेश अपने होंठ को जीव से पूरा चाट लेटा है और रेवती की स्वाद का पूरा आनंद लेने के बाद, केवल उसी के खयालों में खोता चला गया। बातो बातो में यह भी भूल गया था के राहुल के साथ भी दोनों लड़कियों के चक्कर थे।
लेकिन एक नए रिश्ते की और भटकने लग गया था महेश, इस बात का एहसास था उसे। क्या रेवती ने यह जान बुझ के की थी? या यह बस समय का ही लीला था, किसे पता?
........
वहा दूसरे और आशा और राहुल एक जूस कॉर्नर के वह आते है और अपने अपने जूस ग्लास लिए एक कोने में बैठ जाते है। माहौल तो पहले से ही रंगीन था और। जूस के चुस्की से और भी रोमांचक हो गया था।
लहरों के लम्हे को बार बार याद किए, दोनों के दोनों, बस चुप चाप जूस पीते गए। दोनों में से किसी ने कुछ ना कहा एक दूसरे से। लेकिन खामोशी में भी एक नजाकत थी कहीं ना कहीं।
|