RE: kamukta Kaamdev ki Leela
रेवती के खयालों में महेश खोया खोया रहने लगा और बार बार केवल दिल से यही चाह रहा था के अगर और कुछ देर तक होंठ उससे सिले रहते ते! लेकिन इस ख्याल को ध्यान में रखे हुए बार बार वोह एक गिल्ट मेहसूस कर रहा था, लेकिन इस में भी एक अलग मज़ा आने लगा था। खैर, कैसे भी हो वोह अपने काम से काम रखने लगा और वहा दूसरे और अपने अपने जूस ख़तम किए हुए आशा और राहुल वहा से निकल पड़ते है और धीरे धीरे वापस बीच का मोयना करने लगे। मज़े की बात थी के अभी भी उनके हाथ जुड़े हुए थे एक दूसरे से और एक दबी हुई सी मुस्कुराहट दोनों के होंठो पर बरकरार।
राहुल : मा, सच में मज़ा अगाया आज! तुम्हे ऐसा नहीं लगता जैसे हम एक नई दुनिया में आ गए!
आशा : बिल्कुल! राहुल, (हाथ को बेटे के हाथ पर मलती हुई) जैसा तू मेरा हाथ थामा है, मुझे ऐसी ही थामे रखना! (कुछ शांत होने के बाद) तेरे पापा तो बस!
राहुल : क्या बात है मा? कुछ छुपा रही हो तुम मुझसे!
आशा : नहीं बेटा कुछ नहीं! बस ऐसे ही
राहुल : (मा के हाथ को और कस के जकड़े हुए) बताओ मा! कुछ किया पापा ने?
आशा : तेरे पापा ने तो हद ही करदी बेटा! कल रात भर (घिंनन से) बस रेवती का नाम लिए जा रहा था!!
राहुल मन ही मन खुश हुआ, के रेवती ने अपनी चाल चलना शुरू कर दी थी, लेकिन फिलहाल नाटक करता हुआ बोला "क्या??? पापा?"। लेकिन जब उसने गौर से अपने मा के चेहरे की और देखा, तो कुछ खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि आशा के चेहरे पर कुछ खास चिंतन नहीं थी। वोह केवल लहरों की तरफ देखे जा रही थी। इस मौके के फायदा लिए राहुल अब आशा के हाथ को उठकर, उसे चूम लेता है प्यार से "तो फिर पापा को भाव देना बन्द कर दो! मेरे पास रेहलो!"। बेटे के वाणी में एक मिठास थी और साथ साथ करवा सच भी! लेकिन पल पल आशा को ऐसी लगी के वोह धीरे धीरे अपने बेटे के और नज़दीक आ रही थी।
"राहुल! में.... क्या यह सही...एक्स"। उसकी होंठ पर उंगली रखकर राहुल उसे शांत कर देती है और फिर एक और करवा सच उसके मुंह से निकल जाता है "मा! मुझे यह भी मालूम है के तुमने दादाजी के साथ क्या क्या किए! और सच मानिए तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं! आप हो हो इतनी आकर्षित के कोई भी आपको बाहों में लिए जन्नत का सवारी कर लेगा!"। अब कहते कहते उसके हाथ आशा की पीठ की और चला jaata है और वोह बिकिनी स्टेप्स के इर्द गिर्द नग्न त्वचा को सहलाने लगा।
उफ़! आशा वहीं धसना चाहती थी उसके बाहों में। सच पूछिए तो आशा अपने बेटे के उपर से नग्न जिस्म की और काफी आकर्षित हो चुकी थी। इस बीच के माहौल में मा बेटे का प्यार एक दूसरे के लिए फुट फुट के उभर रहा था। ऐसे में बिना विलंब किए राहुल अपने मा का चेहरा थाम लेता है और प्यार से अपना होंठ उनके होंठ पर रख देता है। होंठो के मिलन होते ही एक करेंट सा दौड़ गया दोनों के जिस्म में से और आशा भी पूरा साथ देने लगी अपनी बेटे का। पहले तो प्यार से उसके बलो को सहलाती है और फिर उसके मजबूत पीठ पर नाखून फिराने लगी।
राहुल भी मौका देखकर अपने हाथ को आशा के पीठ पर थाम लेता है और पूरी पीठ पर मलने लगा। दोनों बस एक दूसरे के रस पीने में ही व्यस्त होते गए और आते जाते कुछ कपल्स भी उन्हीं को देखने लगे। तभी हुआ यू के अचानक आस पास के भीड़ का एहसास होते ही आशा कुछ शरमा जाती है और अपने आप को अलग कर देती है अपने बेटे से। "चल, कहीं और चलते है!" प्यार से आशा बोल परी और राहुल वापस उसका हाथ थामे चलने लगा। ठीक ऐसे ही समय एक महिला उनके और आने लगी। वोह औरत थी अफ्रीकन, लेकिन जैसे ही आगे आके "नमस्ते" बोली, तो दोनों मा बेटे हैरानी से उनकी और देखने लगे, खास करके राहुल, जो उस औरत को उपर से नीचे तक अपने आंखो से नापने लगा। चॉकलेट रंगत की त्वचा को चार चांद लगा रही थी उसकी भारी भरकम सी जिस्म, जो एक तरह से आशा के ही बराबर थी। उसने बहुत ही हल्की पीली रंग की शवल पहनी हुई थी, जो उसकी स्तन की दरार से लेकर नीचे घुटनों तक अाई हुई थी। चेहरे पर एक कातिलाना मुस्कुराहट और उम्र के हिसाब से आशा से बस कुछ ही छोटी थी। सबसे आकर्षित अंदाज़ थी उसकी बाल, जो एक अनानास फल के समान लिपटी हुई थी उपर के तरफ।
उन्हें देख मा और बेटा वहीं रुक जाते है और वोह महिला अपनी परिचय देती है "मेरा नाम वेरोनिका है, हैरान मत होइए, में भारत में काफी सालो से रह रही हूं!" एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ वोह बोली। उन्हें देख आशा भी मुस्कराई "नमस्ते! आपका हिन्दी सच में बहुत अच्छी है!"। राहुल भी मुस्कुराए इन्हे देखे जा रहा था। फिर, वेरोनिका एक कार्ड आशा की हाथ पर थमा देती है और वापस नमस्ते कहके चलती बनी। कार्ड को हाथ में लिए आशा हैरानी से अपने बेटे की और देखने लगी, और फिर वापस कार्ड की और, जिसमे कुछ इस प्रकार लिखा हुआ था :
"लेडीज और उनके प्रेमियों के दिलकश शाम के नाम! पेश है "स्पाइसी कपल नाइट"
कार्ड के लखन को देखकर दोनों आशा और राहुल हैरान रह गए और आशा की दिल की धकन तेज़ हो गईं। राहुल कार्ड को देखते देखते अपने मा की और आवाज़ देने लगा "कहीं यह महिला हमें कोई कपल तो नहीं समझ रही है??" बार बार वोह अपने मा की और देखकर एक सवाली चेहरा पेश करने लगा और आशा बेचारी टमाटर बने शरमा जाती है। ऐसा अनुभव उसे कभी होगा, सोची भी नहीं थी उसने! खुद को और अपने बेटे को एक कपल की तरह तसव्वुर करके बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो जाती है।
राहुल कार्ड को अपने शर्ट्स के पॉकेट में रखकर अपने उत्तेजना का ऐलान किया "हम चलेंगे मा! आज शाम को ही!"। "बेटा, लेकिन हम कैसे..." आशा की दिल की धड़कन वहा मौजूद हर किसी को सुनाई दे जा सकती थी इस समय। उस चिंतित टमाटर समान चेहरे को वापस एक बार चूम लेता है राहुल "मा! हम जाएंगे!"। उस अचानक आए हुए चुम्बन से आशा फिर गदगद हो जाती है और एक तिनका आंसू उसके गाल पर टपक परी। राहुल वोह पोंछ देता है और मा को गले लगा देता है।
सच पूछिए तो इस समाय, आशा के नज़रों में। राहुल महेश से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया था।
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वहा दूसरे और महेश बेचैन होकर वापस अपने बेटी और भांजी को यहां वहा तलाश करने लगा। यह बेचैनी किसी बाप की नहीं थी, बल्कि एक मर्द का था! तलाश करते करते अखिर्कर उसे रेवती दिख जाती है, जो हमेशा की तरह गुलाबी बिकिनी में मस्त लग रही थी। इस समय वोह बैठी हुई समुंदर की और देखे जा रही थी। आस पास महेश ने जब दखा तो रिमी का कहीं अता पता नहीं थी। इस बात का फायदा उठाएं महेश जाकर सीधा रेवती के बाजू बैठ जाता है और अपने ताऊजी का एहसास एहसास मिलते ही रेवती भी अपनी मूह को उनके और मोड़ लेती है "अरे ताऊजी आप???"।
महेश : तुम सही कह रही हो रेवती! तन्हाई अच्छी बात नहीं!
रेवती : (नाटकीय अंदाज़ में) ताऊ, उस घटना के लिए आई एम्.....
महेश : कोई बात नहीं बेटा! इट्स ओके। मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है इस बात से! (कुछ ठहर के) सच पूछो तो... यह गलती दुबारा हो सकता है!
रेवती शरमा जाती है और समुंदर की और देखने ही वाली थी के वापस महेश उसकी जबरे को हाथ से थामे, उसकी चेहरे को अपने और घुमा लेता है। एक बार फिर से उसके आंखे अपने भतीजी की रसीले होंठो तक चला जाता है। बिना विलंब किए वोह अपने चेहरे को और नज़दीक लेके आता है, लेकिन चूमता नहीं है, क्योंकि उसे रेवती की प्रक्रिया भी देखना था। खुशकिस्मती से रेवती भी रजामंदी देती हुई, खुद महेश के चेहरे को अपने हाथो से जकड़े अपनी होंठ उससे सिल देती है।
फिर एक बार ताऊ भतीजी एक प्रेम लीला में बन्ध जाते है। यह चुम्बन की दूसरी घरी थी, और इसलिए महेश और ज़्यादा शिद्दत के साथ चूम रहा था, मानो पिछले चुम्बन का सारा कसर पूरा कर रहा हो!
अब चुम्बन से अलग होकर महेश उठ जाता है और साथ साथ रेवती को भी उठा देता है। "कहीं और चले" अपने ताऊजी के मुंह से यह अल्फाज़ सुनके रेवती और ज़्यादा उत्तेजित हो जाती है और रजामंदी में सर को हीलाई। दोनों एक दूसरे के हाथ थामे, कुछ ही दूरी पे एक पेड़ दिख जाता है जिसके इर्द गिर्द का माहौल काफी सुनसान थी। झट से दोनों उस पेड़ की बौर भाग जाते है और सारे दुनिया रस्मो को भुला के, एक बार पिर दोनों एक दूसरे पे टूट परे। बिना किसी झिझक के महेश अपने हाथ को रेवती की स्टेप्स की तरफ लेके जाता है और जैसे ही इस बात की आगाज़ उसे होती है, तो वोह खुद पीछे हाथ ले जाकर अपनी स्टेप्स खोल देती है और महेश को पेड़ के शाखा पर धकेल देती है।
अब पीठ के बल तिरछा खड़ा हुआ महेश अपने आंखे टटोले रेवती की ब्रा से आजाद हुई आमो को देखने लगा। उफ़! क्या दिलकश नज़ारा था! नग्न स्तन पर भूरे रंग की निप्पल कमल लग रही थी और इस बार रेवती खुद मुंह से सिसकियों निकलती हुई अपनी स्तन को अपनी हाथो से मसलती गई "ओह ताऊजी! ऐसे मत देखिए मुझे!! कुछ होता है मुझे!"। प्यार से मीठी वाणी भरी शब्दो को सुनके महेश के अंदर का सांड जाग जाता है और रेवती को बाहों में लिए, उसके गाल, गर्दन और होंठ को फिर एक बार बारी बारी चूमने लगा। अपनी पूरी चेहरे और गर्दन पर गीली गिली एहसास से रेवती पागल सी होने लगी और वोह अब महेश के चेहरे को नीचे की और धकेल देती है, जिससे अब महेश उसके मीठे मीठे आमो के चारो और अपना होठ फिराता गया।
निप्पलों पे मुंह और हाथो से आम दबोचे जाने पर रेवती और सिसकने लगीं। पेड़ की छाया के तेले यह दोनों नए नए उभरे हुए प्रेमी एक दूसरे के आगोश में खोए रहे और रेवती महेश के बालो को और जकड़ती गई, जैसे जैसे महेश स्तन को चूसता गया। "सच में! बाप बेटे, दोनों के दोनों सांड की पैदाइश!" मन ही मन मुस्कुराए रेवती अपनी सोशन का आनंद लेती गई और महेश को और उकसाती गई। महेश लट्टू बना स्तन को कभी चूसता गया, मसलता गया और वापस फिर होंठ तक होंठ ले आता गया। यह रास लीला चलता गया बेझिझक और बेहया, दुनिया से बेखबर।
वहा दूसरे और रिमी यूंही बीच का सैर करते करते पहुंच जाती है अपने भाई और मा के पास। दोनों के शारीरिक भाषा को देखकर, वोह समझ जाती है के कुछ तो ज़रूर हुआ है इन दोनों के बीच में। राहुल और आशा हाथ पे हाथ धरे रिमी की और देखने लगे और रिमी एक पीक लेलेती है दोनों की "क्यूट कपल भइया!" कहते हुए आंख मार लेती है और आशा उसकी कोहनी पर एक थपकी देने लेगी "हट! बदमाश कहीं की, बहुत बोलने लगी है तू आजकल!"। राहुल भी मुस्कुरा उठा, दोनों महिलाओं के बात चित से।
रिमी : (मा को उपर से नीचे देखती हुईं) गोश मा! कयामत शब्द भी फिका लगे आपकी टिरफ में! क्यों भइया??
आशा बस शर्माकर मुस्कुराई। अब बच्चो के नज़र से अपनी कामुकता को छुपाना आसान नहीं था।
राहुल : वैसे सेक्सी तो तू भी लग रही हैं! में तो दो दो सेक्सी मालो के बीच उलझन में आ गया!
"माल???" एक साथ दोनों मा बेटी बोल परे और बारी बारी राहुल को थपकियों से मारने लगे। "सोरी सोरी लेडीज!" राहुल हसी हसी कान पकड़ लिया और ऐसे में उसकी पॉकेट से वोह कार्ड नीचे गीर जाता है, जिसे रिमी देख लेती है। कार्ड को उठकर जब रिमी गौर से देखने लगी तो राहुल कुछ खास रिएक्ट नहीं की, लेकिन आशा टमाटर हो गई फिर से। कार्ड के लेखन को पड़कर रिमी आंखे चौड़ी किए दोनों मा और भाई की तरफ देखने लगी "वाउ मा! भइया! आप दोनों तो छुपे रुस्तम निकले!"
दोनों के दोनों एक दूसरे को देखकर दबे हुए अंदाज़ में मुस्कुरा उठे और हैरानी से रिमी की और देखने लगे जब उसके मुंह से निकल जाती है के "इस क्लब में आप दोनों को ऐसिस्ट में करूंगी! मिलते है शाम को!" यूं कहके वोह मटक मटक के बीच के सैर को वापस निकल पड़ती है और बेटी के सामने अपने नए रिश्ते का खुलासा किए आशा काफी उत्तेजित हो जाती है। वैसे, यही हाल राहुल का भी था।
.......
वहा दूसरे और, ताऊ और भतीजी में प्रेम वासना इस हद तक आ चुकी थी के शाखाओं पर अपने पीठ जमाए महेश खड़ा खड़ा सिसकियां दिए जा रहा था और उसके लिंग को रेवती चूसे जा रही थी। बॉब बॉब की मिठी आवाज़ उस माहौल में चार चांद लगा रही थी और सुपाड़े से लेकर बीच के हिस्से तक रेवती चूसती गई और वैसे वैसे महेश "आह! ओह!!" करता गया। रेवती की खुले हसीन ज़ुल्फो पे हाथ फेरता हुआ महेश बार बार उसे और अपने लिंग की आगोश में लेता गया और रेवती भी अपने क्रिया में पूरी मगन होती गई।
अपने ताऊजी के बालो से घेरे जांघो को जकड़कर उसे और मज़ा आने लगी थी लिंग को चूसने में और सच में गोआ के माहौल का असली मज़ा तो अब आने लगा था महेश को।
जब सर से पानी उपर चड़ने लगा, तो एक हुंकार देते हुए महेश वहीं के वहीं रेवती के मुंह में अपना माल छिड़कने लगा और रेवती भी पूरी साथ देने लगी! हा, घिण तो अाई पहले पहले, लेकिन कुछ बात थी अपने ताऊ को उकसाने में, के वोह भी उत्तेजना से सारा का सारा माल को घटक लेती है।
दिल थामे और तृप्त होकर महेश नीचे गांड़ के बल बैठ जाता है और रेवती भी उसके बाहों में पसर जाती है। एक नए रिश्ते का आरंभ हो चुका था और बाहों में बाहें डाले इन दोनों ने वोह साबित कर दी थी!
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