RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘वैसे कामदेव की कहानी तो आप जानती ही होंगी?’’ मैंने अंदा़ज लगाया, जो ग़लत था।
‘‘नहीं, कुछ ख़ास नहीं पता।’’
‘‘कामदेव ने समाधि में लीन भगवान शिव का ध्यान भंग किया था, और क्रोध में आकर भगवान शिव ने उन्हें भस्म कर दिया था; इसीलिए आप भगवान शिव को कामेश्वर कहते हैं... पालन करने वाले ईश्वर को आपने भस्म करने वाला बना दिया।’’
‘‘ओह! तो फिर रति का क्या हुआ?’’ स्त्री होने के नाते उसमें रति के लिए सहानुभूतिपूर्ण उत्सुकता होना स्वाभाविक था।
‘‘रति, काम को जीवित कर सकती थी; काम को और कौन जीवित कर सकता है रति के अलावा? काम तो रति का दास है। विश्वामित्र के काम को मेनका की रति ने ही जगाया था; ब्रह्मर्षि का तप भी नहीं चला था रति की शक्ति के आगे।’’ मैंने एक बार फिर उसके रतिपूर्ण शृंगार को निहारा।
‘‘तो क्या रति ने कामदेव को जीवित कर दिया?’’
‘‘आपके समाज के महंत, रति से उसकी यही शक्ति तो छुपाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि जिस दिन रति को अपनी इस शक्ति का बोध हो गया, उस दिन पुरुष स्त्री का दास होगा।’’
शर्म की वही गुलाबी आभा एक बार फिर उसके गालों पर फैल गई। शायद उस समाज की कल्पना उसके मन में उभर आई, जिसमें पुरुष स्त्री का दास हो। सि़र्फ एक औरत के मन में ही पुरुष पर शासन करने का विचार भी एक लजीली संवेदना ओढ़कर आ सकता है।
‘‘तो फिर रति ने क्या किया?’’
‘‘रति ने कामदेव को जीवित करने के लिए भगवान शिव से विनती की; और जानती हैं भगवान शिव ने क्या किया?’’
‘क्या?’
‘‘उन्होंने कामदेव को जीवित तो किया, मगर बिना शरीर के; ताकि रति की देह को कामदेव के अंगों की आँच न मिल सके। अब कामदेव अनंग हैं, और रति अतृप्त है।’’
‘ओह!’ उसके चेहरे पर एक गहरा असंतोष दिखाई दिया; ‘‘वैसे आपके नाम की तरह आप भी दिलचस्प आदमी हैं; कितना कुछ जानते हैं इंडिया के बारे में... मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप पहली बार इंडिया आए हैं।’’
‘‘मेरी पैदाइश लंदन की है, मगर मेरी जड़ें इंडिया में ही हैं। मेरे ग्रैंडपेरेंट्स इंडिया से ईस्ट अप्रâीका गए थे, फिर मेरे पेरेंट्स, ईस्ट अप्रâीका से निकलकर ब्रिटेन जा बसे।’’
‘‘कैसा लगा इंडिया आपको?’’
‘‘खूबसूरत और दिलचस्प; आपकी तरह।’’ मैंने फिर उसी शो़ख ऩजर से उसे देखा। उसके गाल फिर गुलाबी हो उठे, ‘‘आपने अपना नाम नहीं बताया।’’
‘मीरा।’ वैसे मुझे लगा कि उसका नाम रति होता तो बेहतर था।
‘‘काम क्या करते हैं आप?’’ मीरा का अगला प्रश्न था।
मैं इसी प्रश्न की अपेक्षा कर रहा था। हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहाँ आपका काम, आपका व्यवसाय ही आपकी पहचान होता है। आप कैसे इंसान हैं, उसकी पहचान व्यवसाय की पहचान के पीछे ढकी ही रहती है। मेरी पहचान ‘योगा इंस्ट्रक्टर।’ की है... हिंदी में कहें तो ‘‘योग प्रशिक्षक।’’
इंस्ट्रक्शन्स या निर्देशों की योग में अपनी जगह है। ज़मीन पर सिर रखकर, गर्दन मोड़कर, टाँगें उठाकर, पैर आसमान की ओर तानकर यदि सर्वांगासन करना हो, तो उसके लिए सही निर्देशों की ज़रूरत तो होती ही है, वरना गर्दन लचक जाने का डर होता है; और यदि कूल्हों को हाथों से सही तरह से न सँभाला हो तो, जिस कमर की गोलाई कम करने के कमरकस इरादे से योगा सेंटर ज्वाइन किया हो, वो कमर भी लचक सकती है। मगर योग वह होता है, जो पूरे मनोयोग से किया जाए, और मन को साधने के लिए निर्देश नहीं, बल्कि ज्ञान की ज़रूरत होती है, और ज्ञान सि़र्फ गुरु से ही मिल सकता है, इसलिए मैं स्वयं को योग गुरु कहता हूँ।
‘‘मैं योग गुरु हूँ।’’
‘‘योग गुरू! वो कपालभाती सिखाने वाले स्वामी जी जैसे? आप वैसे लगते तो नहीं।’’ मीरा की आँखों के कौतुक में फिर पहली सी बेचैनी दिखाई दी।
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