RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
कबीर ने आगे झुकते हुए हिकमा के पैर पर अपने होंठ रख दिए। उसके भीतर एक शॉकवेव सी उठी, और एक अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई। ऐसे आनंद की अनुभूति उसे टीना के सीने पर होंठ रखकर भी नहीं हुई थी। अचानक उसे अपनी टाँगों के बीच गीलापन महसूस हुआ। उस गीलेपन में उसकी नींद खुल गई।
अगले दिन कबीर ने तय किया कि वह हिकमा को मनाएगा, उसके सामने अपना दिल खोलकर रख देगा; उसे बताएगा कि वह उसे कितना चाहता है। अगर वह न मानी तो उसके पैर पकड़ लेगा, मगर उसे मनाएगा ज़रूर।
उस दिन कबीर ने हिकमा को कंप्यूटर रूम में अकेले पाया।
‘हाय!’ कबीर ने हिकमा के पास जाकर कहा।
‘हाय!’ हिकमा ने दबी हुई मुस्कान से कहा।
कबीर कुछ देर चुप रहा, फिर अचानक उसने कहा, ‘‘आई लव यू।’’
‘कबीर!’ हिकमा चौंक उठी।
‘‘यस हिकमा, आई रियली लव यू।’’ कबीर ने पूरी हिम्मत बटोरकर कहा।
‘‘तो फिर तुमने मेरा म़जाक क्यों बनाया?’’
‘‘वह कूल ने किया था।’’
‘‘और वह नोट? वह भी कूल ने लिखा था।’’
कबीर ने कुछ नहीं कहा; नीची ऩजरों से हिकमा को देखता रहा।
‘‘कबीर, तुम हम दोनों की बात को किसी तीसरे तक क्यों ले जाते हो? कभी कूल तो कभी टीना।’’
‘‘अब इसमें टीना कहाँ से आ गई?’’ कबीर झँुझला उठा।
‘‘वही तो मैं पूछ रही हूँ; टीना कहाँ से आई?’’
‘‘टीना इ़ज माइ क़िजन्स गर्लफ्रेंड।’’
‘‘तुम्हारा क्या रिश्ता है टीना से?’’
‘‘छोड़ो न यार टीना को।’’
‘‘तुमने छोड़ा है?’’
‘‘मैंने उसे कभी नहीं पकड़ा था; उसी ने मुझे पकड़ा था, जकड़ा था, अपनी ओर खींचा था; मगर मैं उसे छोड़कर भाग आया था... और क्या सुनना चाहती हो तुम?’’ कबीर अपनी झुँझलाहट में चीख उठा।
हिकमा कुछ देर उसे यूँ ही देखती रही... एक निस्तब्ध मौन के साथ; और फिर वही मौन, साथ लपेटे वहाँ से उठकर जाने लगी। कबीर को जब तक यह अहसास होता कि झुँझलाहट में उसने क्या कह दिया, हिकमा उससे का़फी दूर चली गई थी।
कबीर दौड़ा, और हिकमा के पास पहुँचकर उसने घुटनों के बल बैठते हुए हिकमा की टाँगें पकड़ लीं। हिकमा की टाँगें थामते हुए कबीर को यह ख़याल ज़रा भी न आया, कि वे वही टाँगें थीं, जिन्हें उसने न जाने कितनी बार कितनी हसरत भरी निगाहों से देखा था; जिन्हें लेकर न जाने कितनी फैंटसियाँ उसके ख़यालों में मचल चुकी थीं। मगर उस वक्त वे टाँगें किसी फैंटसी का मस्तूल नहीं, बल्कि उसकी बेबसी का सहारा थीं।
‘‘हिकमा आई लव यू, प्ली़ज।’’
‘‘कबीर ये बचपना छोड़ो, मुझे जाने दो।’’ हिकमा ने अपनी टाँगें खींचनी चाहीं, मगर कबीर ने उन्हें और ज़ोरों से जकड़ लिया।
‘‘नो, आई रियली लव यू।’’
‘‘कबीर, यू रियली नीड टू ग्रो अप, नाउ प्ली़ज लीव मी।’’
यू नीड टू ग्रो अप। इतना बहुत था कबीर को उसके घुटनों से उठाने के लिए। वह चार्ली नहीं था, जो उपेक्षा और अपमान सहकर भी घुटनों पर बैठा रहे; जो तिरस्कार में आनंद ले। यदि हिकमा प्रेम से कहती, तो वह उसके पैरों में जीवन बिता देता, उसकी ठोकरें भी सह लेता; मगर यहाँ तो स्वाभिमान को ठोकर मारी गई थी। इस ठोकर को कबीर बर्दाश्त नहीं कर सकता था। उसने हिकमा की टाँगें छोड़ दीं।
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