RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘यू आर लुकिंग गॉर्जस, एंड एब्स्ल्यूटिलि स्टनिंग।’’ कबीर ने गुलदस्ता प्रिया के हाथों में देते हुए उसके बाएँ गाल को चूमा। यह प्रिया के बदन पर कबीर का पहला स्पर्श था। कबीर का किस सॉ़फ्ट और जेंटल था; उतना ही जेंटल, जितना कबीर ख़ुद था।
‘‘थैंक्स; एंड द फ्लॉवर्स आर लवली, प्ली़ज कम इन।’’ प्रिया ने शर्म और ऩजाकत में लिपटी मुस्कान से कहा।
‘‘प्रिया लेट्स गो; यू नो लन्दन्स ट्रैफिक।’’
‘‘ओके, ए़ज यू विश।’’ प्रिया ने दरवा़जा बंद करते हुए कबीर का हाथ थामा। यह कबीर का दूसरा स्पर्श था। प्रिया के बदन में एक शॉकवेव सी उठी; जैसे कबीर का पैशन उसकी रगों में दौड़ उठा हो।
‘‘वेट ए मोमेंट।’’ कबीर की आँखें उसके चेहरे पर टिकीं। उन आँखों में एक मासूम बच्चे सा कौतुक था, और एक परिपक्व वयस्क की गहराई।
कबीर ने गुलदस्ते से एक गुलाब निकालकर प्रिया के बालों में लगाया; ठीक गाल के उसे हिस्से के थोड़ा ऊपर, जहाँ उसने उसे किस किया था। प्रिया ने चाहा कि कबीर उसके दूसरे गाल को भी चूम ले, मगर उस चाह की किस्मत में थोड़ा इंत़जार करना लिखा था। डार्क क्रिमसन गुलाब, प्रिया की क्रिमसन रेड ड्रेस से पूरी तरह मैच कर रहा था, और उसकी क्रिमसन लिपस्टिक से भी।
कबीर, छोटी सी ही, मगर खूबसूरत कार लेकर आया था। रेड होंडा जा़ज। प्रिया को लगा कि कबीर की जगह कोई और होता, तो कोई पॉश कार लेकर आता; अगर ख़ुद के पास न भी होती तो हायर ही कर लेता। क्या कबीर वाकई इतना सिंपल था, या फ़िर वह अपनी सादगी का प्रदर्शन कर रहा था।
‘‘प्ली़ज गेट इन।’’ पैसेंजर सीट का दरवा़जा खोलते हुए कबीर ने प्रिया से कार के भीतर बैठने को कहा। कार के भीतर, महकती जास्मिन की मीठी खुशबू यह अहसास दे रही था, कि कार अभी-अभी वैलिट होकर आई थी; और साथ ही यह अहसास भी, कि कबीर, सादगी और बेरु़खी के बीच फर्क करना अच्छी तरह जानता था।
‘‘आपके साथ और कौन रहता है?’’ कार स्टार्ट करते हुए कबीर ने पूछा।
‘‘कबीर, ये आप वाली फॉर्मेलिटी छोड़ो, अब हम दोस्त हैं।’’ प्रिया ने पैसेंजर सीट पर ख़ुद को एडजस्ट करते हुए कहा। प्रिया ने कबीर के साथ बेतकल्लु़फ होने का इरादा का़फी पहले ही कर लिया था।
‘‘तुम्हारे साथ और कौन रहता है?’’
‘‘हूँ, ये ठीक है।’’
‘क्या?’
‘‘आप नहीं तुम।’’
‘‘तुमने जवाब नहीं दिया।’’
‘‘मैं अकेली रहती हूँ।’’
‘‘तुम्हारे पेरेंट्स?’’
‘‘पेरेंट्स मुंबई में हैं; मैं यहाँ एमबीए कर रही हूँ।’’
‘‘एमबीए करके क्या करोगी?’’
‘‘डैड का बि़जनेस ज्वाइन करूँगी; और तुम क्या कर रहे हो कबीर?’’
‘‘किंग्स कॉलेज से इंजीनियरिंग की है; फ़िलहाल कुछ नहीं कर रहा हूँ।’’ कबीर के लह़जे में एक अजीब सी बे़फिक्री थी।
‘‘जॉब ढूँढ़ रहे हो?’’
‘उँहूँ।’
‘‘तो फिर?’’
‘‘प्यार ढूँढ़ रहा हूँ।’’ कबीर ने मुस्कुराकर प्रिया की आँखों में अपनी आँखें डालीं। प्रिया को कबीर की आँखों में एक ठहरा हुआ दृश्य दिखाई दिया, जैसे कोई स्टेज पऱफॉर्मर किसी एक जगह आकर थम गया हो... किसी एक स्पॉटलाइट पर।
‘मिला?’ प्रिया की आँखें चमक उठीं।
‘‘कुछ मिला तो है, जो बेहद खूबसूरत है।’’
‘‘प्यार जितना?’’
‘‘पता नहीं प्यार खूबसूरत होता है, या जो खूबसूरत है उससे प्यार होता है; मगर प्यार में इंसान ख़ुद बहुत खूबसूरत हो जाता है।’’ कबीर की आँखों की स्पॉटलाइट थिरक उठी, और साथ ही उसमें ठहरा हुआ पऱफॉर्मर भी। प्रिया के गाल ब्लश करके क्रिमसन हो गए।
कबीर को फाइन डाइनिंग का शौक हमेशा ही रहा है। खाना जितना ल़जी़ज हो, उतनी ही ल़ज़्जत से परोसा भी गया हो, तो स्वाद दुगुना हो जाता है; और फिर एम्बिएंस, माहौल... दैट इ़ज द रियल ऐपटाइ़जर। और फिर उस खूबसूरत माहौल को किसी रूहानी मह़िफल में तब्दील कर रहा था प्रिया का साथ।
|