RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
चैप्टर 15
कबीर, नेहा की तस्वीर को एकटक देखता रहा। न तो उसके आँसू थम रहे थे, और न ही मन को चीरते विचार। अब तक वह नेहा के साथ हुए बलात्कार के अपराधबोध से उबर भी न पाया था, कि नेहा ने ख़ुदकुशी कर उसे एक नए अपराधबोध से भर दिया। कबीर, जो पहले ही अपनी ग्रंथियों का बोझ नहीं उठा पा रहा था, उसे इन अपराधों का बोझ भी उठाना था; और इस बोझ से उसकी ग्रंथियों को और भी उलझना था। कबीर के मन में रह-रहकर नेहा के ये शब्द चोट करते, ‘तुम नहीं समझ सकते कि एक औरत किसी मर्द से क्या चाहती है... थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान, थोड़ी सी हमदर्दी, थोड़ा सा विश्वास।’ कबीर, नेहा को यह सब दे सकता था, यदि उसने कभी इसे जाना या समझा होता। अगर वह नेहा की आँखों को, उनमें उठते सवालों को, पढ़ सका होता, तो वह नेहा को बचा सकता था। कबीर, नेहा को चाहता था, मगर उससे कह न सका। वह नेहा से हमदर्दी रखता था, मगर उसे जता न सका। अगर उसमें नेहा से यह कहने की हिम्मत होती, कि वह उसे चाहता है; अगर उसमें यह विश्वास होता, कि नेहा उसकी चाहत और उसकी हमदर्दी को स्वीकार करेगी, तो वह नेहा को बचा सकता था। नेहा को उसकी नासमझी से कहीं अधिक, उसकी ग्रंथियों ने मारा था, उसके हौसले की कमी ने मारा था। मगर हिकमा के सामने तो उसने हौसला दिखाया था, लेकिन उस हौसले में नासमझी भरी थी। कबीर, आँखों में आँसू और मन पर बोझ लिए, इन्हीं विचारों में उलझा रहा, और हर विचार उसकी ग्रंथियों को और उलझाता गया।
कबीर ने कुछ दिनों के लिए कॉलेज से छुट्टी लेकर घर जाना तय किया। कैंब्रिज और यूनिवर्सिटी का माहौल उसे रह-रहकर नेहा की याद दिलाता था, और वे यादें उसे लगातार तंग करती थीं। शहर से निकलकर कबीर ने अपनी कार मोटरवे पर उतारी। हवा में ठंढक थी, मगर धूप खिली हुई थी। कबीर का मन इस खिली धूप और हवा के ठंढे झोंकों में भी उदास था। कबीर ने कार की खिड़कियों के काँच चढ़ाए, और सीडी प्लेयर में हिन्दी फिल्मों के नए डांस नंबर्स की सीडी लगाई; मगर थोड़ी देर में उसका मन उन गानों से भी ऊबने लगा। अचानक खिली हुई धूप मुरझाने लगी, और आसमान में काले बादल छाने लगे। हल्की बूँदाबाँदी शुरू हुई, जिसने जल्दी ही ते़ज बारिश का रूप ले लिया। कबीर ने म्यू़िजक सीडी बंद किया, और वाइपर की स्पीड बढ़ाई। उसे अपना मन कुछ डूबता सा लगने लगा। उसे लगा, जैसे वह अपने माहौल से कटने लगा था, और समय ठहरने लगा था। ते़ज गति से चलता कार का वाइपर, धीमी गति से टिक-टिक करती घड़ी की सुई सा लगने लगा। अचानक उसे लगा, जैसे वह टाइम और स्पेस के अनंत महासागर में किसी छोटी सी नौका पर सवार हो, जिसकी नियति कुछ लहरें पार कर इसी महासागर में डूबकर खो जाने की हो। बाहर ते़ज गति से दौड़ती कारों की कतारें, पानी की उस धार की तरह लगने लगीं, जो किन्हीं काली अँधेरी कंदराओं की ओर बढ़ रही हों। सबकी एक ही नियति है; इस अनंत के अँधेरे में खो जाना... मृत्यु, जीवन का एकमात्र सत्य है।
बारिश थमने लगी और धूप फिर से निकल आई। कबीर ने अपने डूबते हुए मन को सँभालने की कोशिश की। मोटरवे के पार, हरे खेतों पर ऩजर डाली। खेतों की हरियाली भी उसके मुरझाते मन को हर्षित न कर पायी। बाहर एनिमल फार्म में कुछ मेमने उछल-कूद कर रहे थे। मेमनों की उछल-कूद उसे कुछ देर अच्छी लगी; फिर अचानक लगा, जैसे वे सारे मेमने एक कतार में लगकर किसी कसाईखाने की ओर बढ़ रहे हों। सबकी एक ही नियति है... मृत्यु। मेमना हो या मनुष्य, पाँवों पर हो या कार में, होण्डा में हो या फ़रारी में, हर यात्रा का अंत, अनंत अँधेरा है। नेहा ने फरारी की, सवारी की और झटपट वहाँ पहुँच गई। उसकी होण्डा धीमी गति से उसी अनंत अँधेरे की ओर बढ़ रही है... एक वन वे ट्रैफिक में।
कुछ दिन कबीर को अपनी मनःस्थिति कुछ समझ न आई। उदासी थी, और उदासी का सबब नेहा की मौत था, बस इतना ही उसे समझ आया था; मगर इस उदासी में उसकी सोच का सारा खलिहान ही मुरझा गया था। जिन विचारों में खूबसूरत सपने सजते थे, जिन ख़यालों में रंगीन फैंटसियाँ मचलती थीं; उनमें सि़र्फ मृत्यु की निराशा छाई हुई थी। सपनों के अर्थ टूट चुके थे, ख़्वाबों के मायने बिखर चुके थे। गहन अवसाद की धुंध घेरे हुए थी; मगर उस धुंध के पार भी वह सि़र्फ अँधेरे की ही कल्पना कर पा रहा था। ऐसी धुंध से निकलने का अर्थ भी क्या था? मगर उस धुंध में घुटते दम की पीड़ा भी असहनीय थी।
‘‘डू यू नो, व्हाट्स हैपनिंग विद यू?’’ लंदन साइकियाट्रिक क्लिनिक के लीड साइकाइट्री कंसलटेंट डॉ. खान ने सामने बैठे कबीर से पूछा।
‘‘आई डोंट नो... मन उदास रहता है, जीवन में दिलचस्पी खत्म हो रही है; मगर जीवन को लेकर मन में हर समय ख़याल दौड़ते रहते हैं, कि जीवन क्यों, यदि मृत्यु ही सच है; ज़िन्दगी का हासिल क्या है? किसी ख़ुशी को ढूँढ़ने का अर्थ क्या है? किसी तकली़फ से गु़जरने के मायने क्या हैं? यदि सब कुछ एक दिन खत्म ही हो जाना है, तो फिर कुछ होने का मतलब ही क्या है? स़फर धीमा हो या ते़ज; यदि अंत मृत्यु में ही है, तो उस स़फर का आनंद कैसे लिया जा सकता है? कैसे कोई किसी यात्रा का आनंद ले सकता है, जब पता है कि उसका अंत एक ऐसे घनघोर अँधेरे में होना है, जिसके पार कुछ नहीं है... सि़र्फ और सि़र्फ अंधकार है।’’
‘‘कबीर! दिस इस कॉल्ड क्लिनिकल डिप्रेशन; तुम क्लिनिकल डिप्रेशन से पीड़ित हो, मगर साथ ही तुम्हें बॉर्डर लाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी है। आई एम प्रिसक्राइबिंग यू एन एंटीडिप्रेसेंट; तुम्हें इसे लगभग छह महीने तक लेना होगा; इसके साथ ही मैं तुम्हें काउन्सलिंग के लिए भी भेज रहा हूँ; एंटीडिप्रेसेंट तुम्हारे डिप्रेशन को कम करेगी, और काउन्सलिंग से तुम्हें ख़ुद को डिप्रेशन से दूर रखने में मदद मिलेगी। होप यू विल बी फाइन सून; आई विल आल्सो राइट टू योर कॉलेज, दैट यू नीड सम स्पेशल केयर व्हाइल यू आर सफरिंग फ्रॉम डिप्रेशन।’’
कबीर को डॉ. खान की बातें थोड़ी अजीब सी ही लगीं। जीवन को लेकर उसके गहरे और गूढ़ सवालों का जवाब किसी दवा में कैसे हो सकता है? कोई केमिकल कैसे ज़िन्दगी की पेचीदा गुत्थी को सुलझा सकता है? शायद काउन्सलिंग से कोई हल निकले; मगर क्या किसी काउंसलर के पास उसके सवालों के जवाब होंगे?
फिर भी डॉ. खान का शुक्रिया अदा कर वह क्लिनिक से लौट आया।
‘‘हे कबीर! व्हाट्स अप डियर?’’ समीर ने उदास बैठे कबीर का कन्धा थपथपाया।
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