RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘बड़ी माँ की बिगड़ी औलाद हूँ, इतने पैसे तो हैं मेरे पास।’’ कबीर ने हँसते हुए माया के हाथ से बिल लेना चाहा।
‘‘नो कबीर, आई इंसिस्ट।’’ माया ने अपना हाथ पीछे खींचा।
‘‘इस बार तो नहीं, फिर कभी।’’ कबीर ने अपने वॉलेट से कार्ड निकालकर वेटर को थमाया, ‘‘प्ली़ज चार्ज द अमाउंट ऑन माइ कार्ड।’’
उसके बाद लगभग एक सप्ताह कबीर और माया की बातचीत या मिलना न हुआ। माया, नई जॉब में कड़ी मेहनत कर रही थी... सीनियर मैनेजमेंट में इम्प्रेशन की गहरी जड़ें जमाने और उन पर सफलता के विशाल वृक्ष के विस्तार की कामना में। अगले रविवार कबीर ने सुबह-सुबह माया को फ़ोन किया,
‘‘हाय माया! हाउ आर यू?’’
‘‘आइ एम फाइन कबीर, हाउ अबाउट यू?’’ माया ने जवाब दिया।
‘‘आई एम गुड; प्रिया का फ़ोन आया था, उसकी मॉम की तबीयत अभी भी ठीक नहीं है, उसे कुछ और भी समय लगेगा आने में; मगर वह मुझसे नारा़ज है कि मैं तुम्हें वक्त नहीं दे रहा हूँ।’’
‘‘डोंट से दिस कबीर, इट्स मी, हू इ़ज बि़जी।’’ माया ने विनम्र स्वर में कहा।
‘‘आज अगर प्रâी हो तो तुम्हें लंदन घुमाया जाए।’’
‘‘थैंक्स कबीर; हाँ आज प्रâी हूँ।’’
‘‘ओके, आई विल कम इन ए बिट।’’
आसमान सा़फ था। धूप खिली हुई थी और हवा गुनगुनी थी। माया के साथ कबीर, पिकाडिली सर्कस पहुँचा। पिकाडिली सर्कस किन्हीं करतब दिखाने वाले जानवरों और आदमियों का सर्कस नहीं है; पिकाडिली सर्कस में सर्कस का अर्थ है, चौक या चौराहा... फिर भी पिकाडिली सर्कस में दर्शकों की भीड़ से घिरे कोई न कोई करतब दिखाते कुछ लोग अक्सर मिल जाते हैं। पिकाडिली सर्कस, उस पिकाडिली मार्ग पर बना है, जिसके बारे में चाल्र्स डिकेन्स ने ‘डिकेन्स डिक्शनरी ऑ़फ लंदन’ में लिखा है, ‘पिकाडिली वह एकमात्र विशाल मार्ग है, जिसकी तुलना लंदन इतराकर पेरिस के मार्गों से कर सकता है।’ उस दिन भी पिकाडिली सर्कस उतना ही व्यस्त था, जितना किसी भी अन्य दिन होता है। माया और कबीर पिकाडिली सर्कस मेट्रो स्टेशन से बाहर निकले। सामने शैफ्ट्सबरी अवेन्यू और ग्लास हाउस स्ट्रीट के मोड़ पर बनी इमारत पर लगे बड़े-बड़े बिलबोर्ड पर निऑन लाइटें चमक रही थीं। पास ही कहीं कोई भीड़ से घिरा, साइकिल पर करतब दिखा रहा था। अचानक माया की ऩजर हाथों में मैप लिए बारी़की से कुछ तलाशते हुए बच्चों के कुछ समूहों पर गई।
‘‘ये बच्चे यहाँ क्या ढूँढ़ रहे हैं?’’ माया ने कबीर से पूछा।
‘‘ये ट्रे़जर हंट खेल रहे हैं... खज़ाने की तलाश में हैं।’’
‘खज़ाना?’
‘‘हाँ ये एक खेल है; इन्हें मैप के साथ कुछ क्लू दिए जाते हैं, जिनके सहारे इन्हें खज़ाने तक पहुँचना होता है... तुम खेलना पसंद करोगी?’’
‘‘अब इस उम्र में क्या ये बच्चों का खेल खेलेंगे?’’ माया ने अरुचि जताई।
‘‘बड़े होकर हमारी दुनिया कितनी छोटी हो जाती है न माया! बचपन में हमारा सपना होता है कि घोड़े पर सवार होकर कहीं दूर किसी खज़ाने की खोज में निकल पड़ें; किसी मायावी संसार में पहुँचें; किसी तिलिस्म को तोड़ें, किसी ड्रैगन से लड़ें; बड़े होकर ये सारे सपने पता नहीं कहाँ चले जाते हैं।’’
‘‘बड़े होकर हम प्रैक्टिकल हो जाते हैं, और इन किस्से-कहानियों की बातों पर विश्वास करना बंद कर देते हैं।’’
‘‘मैं अब भी किस्से-कहानियों में यकीन रखता हूँ माया; सपने पूरे होने के लिए ही होते हैं, मगर हम ही उन्हें अधूरा छोड़ देते हैं। किस्से-कहानियाँ हमें सि़र्फ यही नहीं बताते, कि ड्रैगन होते हैं; वे हमें ये भी बताते हैं कि ड्रैगन से लड़कर उसे हराया भी जा सकता है।’’
‘‘फ़िलहाल तो तुम्हें ये मुंगेरीलाल के हसीन सपने छोड़कर कुछ काम करने की ज़रूरत है... बिना कुछ किए कोई सपना सच नहीं होता।’’ माया ने हँसते हुए कहा। माया के चेहरे पर दर्प था। कबीर को उसमें लूसी के गुरूर की झलक दिखाई दे रही थी।
पिकाडिली सर्कस के बाद माया और कबीर टावर ऑ़फ लंदन के करीब थेम्स नदी पर बने टावर ब्रिज पहुँचे। खूबसूरत, टावर ब्रिज के नीचे बहते थेम्स के पारदर्शी प्रवाह को देखते हुए कबीर ने कहा।
‘‘माया! पता है; यहाँ थेम्स नदी को फादर थेम्स कहते हैं, जबकि हमारे भारत में नदियों को माँ कहा जाता है।’’
‘‘हम लोग नदियों को माँ कहकर भी उन्हें सा़फ तक नहीं रखते, जबकि ये लोग फादर कहकर भी नदियों को कितना सा़फ और खूबसूरत बनाकर रखते हैं।’’ माया की ऩजरें थेम्स के सौन्दर्य को निहार रही थीं।
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