RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
चैप्टर 19
इस तरह मेरी मुलाकात माया से हुई। जिस माया से मैं मिला, वह उस माया से का़फी अलग थी, जिससे कबीर पहली बार मिला था। मर्दों से होड़ लेने वाली माया, अब अपने भीतर की औरत को ढूँढ़ रही थी। सफलता और समृद्धि पाने की जो लपट उसके भीतर थी, वह धीमी पड़ रही थी।
‘नमस्कार!’ मैंने माया का हाथ जोड़कर अभिवादन किया।
पुरुषों से तपाक से हाथ मिलाने की आदी माया को, मेरे अभिवादन के तरीके से थोड़ा आश्चर्य हुआ, मगर फिर भी उसने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘मेरा नाम माया है।’’
‘‘मेरा नाम काम है; और मेरा काम माया से मुक्ति दिलाना है।’’ मैंने हँसते हुए कहा।
‘‘हा हा..यू आर फनी।’’ माया ने हँसते हुए कहा, ‘‘फिर तो कबीर को आपसे दूर रहना चाहिए।’’
‘‘कबीर मेरे पास हो या मुझसे दूर; मैं उसे कभी आपके सौन्दर्य से दूर रहने की शिक्षा नहीं दूँगा।’’ मैंने माया के खूबसूरत चेहरे को निहारते हुए कहा।
‘‘मैं कुछ समझी नहीं।’’ माया के चेहरे पर उलझन की कुछ लकीरें खिंच आर्इं।
‘‘माया, मनुष्य की मुक्ति सौन्दर्य से नहीं, बल्कि सौन्दर्य में है।’’
‘कैसे?’
‘‘मनुष्य की मुक्ति, जीवन के सौन्दर्य को समझने में है, जीवन के सौन्दर्य को जीने में है... आ़िखर सौन्दर्य है क्या? क्या सौन्दर्य सि़र्फ मूर्त में है? सि़र्फ रंगों और आकृतियों में बसा है? क्या वह सि़र्फ रूप और शृंगार में समाया है? क्या वह दृश्य में है? या दृश्य से परे दर्शक की दृष्टि में है? या दृश्य और दृष्टि के पारस्परिक नृत्य से पैदा हुए दर्शन में है? मगर जो भी है, सौन्दर्य में एक पवित्र स्पंदन है; सौन्दर्य हमारी आध्यात्मिक प्रेरणा होता है। हमारे मिथकों में, पुराणों में, साहित्य में, सौन्दर्य किसी गाइड की तरह प्रकट होता है, जो अँधेरी राहों को जगमगाता है, पेचीदा पहेलियों को सुलझाता है, भ्रांतियों की धुंध चीरता है, और पथिक को कठिनाइयों के कई पड़ाव पार कराता हुआ सत्य की ओर ले जाता है।’’
‘‘हूँ... वेरी डीप।’’ माया ने मेरे शब्दों पर विचार करते हुए कहा, ‘‘और वह सत्य क्या है?’’
‘‘वह सत्य है मनुष्य की अपनी जागृति... सौन्दर्य के प्रति पूरी तरह जागृत होना ही सत्य है; वही मुक्ति है उस भटकाव से, उस भ्रम से; जिससे गु़जरकर मनुष्य सौन्दर्य को समझता है।’’
‘‘भ्रम और भटकाव?’’
‘‘माया, हम सौन्दर्य को मूर्त में ही देखने के आदी हैं। एक औरत होते हुए तुमसे बेहतर कोई इसे क्या समझ सकता है। हम नारी की देह, उसके रूप और उसके शृंगार में ही उसका सौन्दर्य देखते हैं; पुरुष ही नहीं, नारी भी यही करती है; मगर नारी का सौन्दर्य, उसकी देह, रूप और शृंगार के परे भी बसा होता है... उसके सौम्य स्वभाव में, उसकी करुणा में, उसके नारीत्व की दिव्य प्रकृति में; मगर ये दुर्भाग्य है कि आज नारी स्वयं अपने सौन्दर्य को नहीं समझती। आज की अधिकांश नारियाँ न तो अपने सौन्दर्य के उस संगीत को सुन पाती हैं, जो उनकी देह के परे गूँजता है, और न ही उसमें यकीन करती हैं...और पुरुषों का भी यही हाल है। बहुत कम पुरुष होते हैं, जो नारी के इस अतीन्द्रिय सौन्दर्य को देख पाते हैं; नतीजा ये है कि हमारे समाज से नारीत्व खो रहा है; हमारे समाज का सबसे बड़ा नुकसान उसके नारीत्व के खोने में ही है; और हमारे समाज की मुक्ति, उस नारीत्व को फिर से जीवित करने में है।’’
माया मेरे शब्दों पर गौर करती रही। वो कबीर के साथ बिताए अब तक के समय पर भी गौर करती रही। उसके भीतर फिर एक लपट उठने लगी; मगर वह लपट पिछली लपट, से बहुत अलग थी। वह एक ऐसी लपट थी, जिसकी गुनगुनी आँच में उसका सौन्दर्य निखरने लगा था। माया से मेरी और भी बातें हुर्इं; कुछ गंभीर और कुछ हँसी म़जाक भरी। अंत में जाने से पहले माया ने दोनों हाथ जोड़कर मुझे नमस्कार किया। मैंने जवाब में अपना हाथ बढ़ाया, ‘‘गुड टू मीट यू माया; होप टू सी यू अगेन।’’
‘‘ओह येह, इट वा़ज ए ग्रेट प्ले़जर टू मीट यू।’’ माया ने मुझसे हाथ मिलाकर कहा।
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