RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
उस रात माया, वही गुनगुनी आँच लपेटे घर लौटी; मगर वह आँच बहुत देर तक सि़र्फ गुनगुनी न रही। अचानक माया को अपने बॉटम में एक ते़ज दर्द सा महसूस हुआ, जैसे कि कोई शूल सा चुभा हो, जैसे कि उसकी स्कर्ट के भीतर कोई शोला सुलग उठा हो, जैसे कि उसकी पैंटी ने आग पकड़ ली हो। माया ने झटपट अपनी स्कर्ट नीचे खींची, और अपनी नायलोन की पैंटी को छूकर देखा। पैंटी तप रही थी। माया ने झटके से पैंटी भी नीचे खींचकर पैरों पर उतारी, मगर उसकी जलन कम न हुई। माया ने तुरंत अपना मोबाइल फ़ोन उठाया, और कबीर को फ़ोन लगाया।
‘‘हे कबीर!’’ माया ने चीखते हुए कहा।
‘‘माया, क्या हुआ? आर यू ओके?’’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘नो कबीर, मेरा बदन जल रहा है।’’ माया एक बार फिर चीखी।
‘‘व्हाट? तुम्हें फीवर है?’’
‘‘नहीं, बहुत तीखी जलन है; कबीर तुम यहाँ आ सकते हो, अभी?’’
‘‘हाँ माया, मैं अभी आया।’’ कबीर ने घबराते हुए कहा।
माया की जलन बढ़ती गयी। उसके बॉटम और क्रॉच से होकर जलन किसी ते़ज लपट की तरह उसकी कमर और पीठ पर पहुँचने लगी। माया ने अपनी टाँगों को झटककर स्कर्ट और पैंटी उतारी, और दौड़कर बाथरूम के भीतर गई। झटपट अपना टॉप और ब्रा उतारते हुए शावर के नीचे खड़े होकर शॉवर चालू किया। शावर के टेम्प्रेचर कण्ट्रोल को सबसे ठण्ढे वाले हिस्से पर घुमाते हुए उसने ख़ुद पर लगभग बर्फीले पानी की बौछार कर डाली, मगर उसकी जलन अब भी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। माया ने शावर के हैंडल को पकड़कर उसे शॉवर स्टैंड से नीचे खींचा, और पानी की धार सीधे अपने क्रॉच पर डाली। सुलगते क्रॉच पर बर्फीले ठण्ढे पानी की धार से उसे थोड़ी राहत मिली। माया ने एक ठण्ढी साँस ली, और पानी की धार को थोड़ा और ते़ज किया। थोड़ी सी राहत और मिली। माया अब बेहतर महसूस कर रही थी, मगर तभी अपार्टमेंट की डोरबेल बजी। कबीर आ चुका था। माया, शॉवर से हटना नहीं चाहती थी, मगर कबीर के लिए दरवा़जा खोलना भी ज़रूरी था। माया ने शावर से निकलते हुए अपने गीले बदन पर तौलिया लपेटा और दौड़कर दरवा़जा खोला।
‘‘माया, क्या हुआ?’’ माया के गीले बदन को यूँ सि़र्फ एक तौलिये में लिपटे देख कबीर को एक गुनगुनी कसक सी हुई; जैसे कि माया के बदन में उठती आँच उसके बदन तक पहुँच गई हो।
‘‘कबीर, आई एम स्केयर्ड।’’ कहते हुए माया कबीर से लिपट गई।
माया के भीगे बदन का यूँ अचानक उससे लिपटना... कबीर इसके लिए तैयार नहीं था। उसे ऐसा लगा, मानो कोई ते़ज लौ, लहराकर उससे लिपट गई हो। माया ने उसे कसकर अपनी बाँहों में भींच लिया; इतनी ज़ोरों से, कि ख़ुद माया का बदन तौलिये के भीतर कस गया, और उसके बदन पर लिपटा तौलिया ढीला होकर नीचे सरकने लगा... मगर माया को जैसे उसकी फ़िक्र ही नहीं थी। उसे अचानक महसूस हुआ कि कबीर के बदन से लिपटकर उसके बदन को कुछ ठंढक मिली। उसकी जलन जाने लगी। उस वक्त माया बस वही चाहती थी; बदन की जलन से मुक्ति। माया ने अपने बदन को इतना कसा, कि तौलिया खुलकर नीचे पैरों में जा गिरा। माया का बेलिबास बदन, कबीर के बदन से जा सटा। माया के बदन को मिलती ठंढक, कबीर के बदन को आँच देने लगी। माया का भीगा बदन, कबीर से लिपटा हुआ था। माया के मुलायम अंग उसे अपने भीतर कस रहे थे। कबीर को एक बार फिर वैसा ही महसूस हुआ, जैसा उसे कभी टीना के बदन से लिपटकर हुआ था... वही आनंद, वही भय, वही कशमकश; मगर अबकी बार न कबीर ख़ुद पर काबू रख पाया, और न ही माया उसे छोड़ने को तैयार हुई। कबीर ने माया की कमर पर अपनी बाँहें लपेटीं। माया ने अपने हाथ उसकी पीठ पर सरकाते हुए उसके कन्धों पर जमाए, और अपनी दायीं टाँग उठाकर अपना घुटना कबीर की टाँगों के बीच डालकर उसे अपनी ओर इतना खींचा, कि उसका क्रॉच कबीर के प्राइवेट से जा सटा। कबीर का प्राइवेट कुछ इतना तना, कि उसके दबाव से माया के क्रॉच की रही-सही जलन भी जाती रही। कबीर ने माया के कूल्हों को जकड़ा, और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। माया के पूरे बदन में शीतलता की एक लहर सी दौड़ गई।
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