RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
निशा के सामने अपने प्रेम को स्वीकार कर लेने के बाद, कबीर की उलझनें और भी बढ़ गयीं। अब वह सि़र्फ माया से ही नहीं, बल्कि हर किसी से ऩजरें चुराने लगा। इससे उसका काम भी प्रभावित होने लगा, साथ ही ऑफिस में भी यह फुसफुसाहट होने लगी, कि कबीर और माया के बीच कुछ गड़बड़ है। माया का इससे परेशान होना स्वाभाविक था। एक दिन माया ने कबीर को फ़ोन किया,
‘‘कबीर, मुझे हमारे प्राइम इन्वेस्टर्स की इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट चाहिए; क्या तुम मुझे कंप्यूटर से निकालकर दे सकते हो?’’
‘‘येह श्योर।’’
कबीर ने रिपोर्ट प्रिंट की, और ले जाकर माया की डेस्क पर रखकर लौटने लगा। माया से ऩजर उसने इस बार भी नहीं मिलाई।
‘‘वन मिनट कबीर।’’ माया ने कहा।
‘क्या?’ कबीर ने बड़ी मुश्किल से माया से ऩजर मिलाई।
‘‘तुम मुझे अवॉयड क्यों कर रहे हो?’’
‘‘माया, हमारे लिए अच्छा यही है कि हम एक दूसरे से न मिलें।’’
‘‘क्यों? क्यों न मिलें? क्या हो जाएगा मिलने से? तुम ख़ुद पर काबू नहीं रख पाओगे? मैं ख़ुद पर काबू नहीं रख पाऊँगी? कबीर, क्या तुम इतने भी मेच्योर नहीं हुए हो, कि किसी लड़की के सामने ख़ुद को काबू में रख सको?’’ माया ने कबीर को झिड़का।
कबीर को एक चोट सी लगी। पिछली बार कब, किसने कहा था कि वह मच्योर नहीं हुआ था? कितनी पीड़ा दी थी हिकमा के उस एक वाक्य ने। नौ साल हो गए उस बात को... क्या वह अब तक मच्योर नहीं हुआ था।
‘‘कबीर, लेट्स गो टू कै़फे; मुझे तुमसे बात करनी है।’’ माया ने अपनी चेयर से उठते हुए कहा।
माया और कबीर, ऑफिस से निकलकर, बाहर सड़क के मोड़ पर बने कै़फे में गए। छोटा सा कै़फे व्यस्त था, मगर फिर भी माया ने बैठने के लिए ऐसा बूथ ढूँढ़ निकाला, जहाँ आसपास भीड़ नहीं थी।
‘‘क्या लोगी?’’ कबीर ने माया से पूछा।
‘‘कबीर तुम्हें क्या हो गया है; तुम जानते हो कि मैं कैपुचिनो लेती हूँ।’’ माया ने आश्चर्य से कहा।
‘‘ओह सॉरी!’’ कहते हुए कबीर उठा, और बार से माया के लिए कैपुचिनो और अपने लिए लेट्टे कॉ़फी ले आया।
‘‘हाँ तो कहो कबीर; क्या दिक्कत है हमें इस तरह साथ बैठने में? साथ बैठकर कॉ़फी पीने में?’’ माया ने कॉ़फी का घूँट भरते हुए कहा।
‘‘दिक्कत है माया।’’
‘‘मगर क्या? क्या दिक्कत है?’’
‘‘दिक्कत ये है कि तुम सि़र्फ, कोई भी लड़की नहीं हो।’’ कबीर ने कुछ खीझते हुए कहा।
‘‘क्या कहना चाहते हो कबीर?’’
‘‘माया, मैं तुम्हें देखकर ख़ुद को काबू में नहीं रख पाता; आई फाइंड यू इरिजस्टिेबल। उस रात जो हुआ था, वो अचानक नहीं हुआ था... मैं तुम्हें...।’’
‘
‘कबीर, उस रात मुझे क्या हुआ था? मेरा बदन क्यों जल रहा था? क्यों मुझे तुमसे लिपटकर ठंढक मिली थी? क्या वह तुम्हारा प्लान किया हुआ था? क्या तुम्हारे गुरु काम ने मुझ पर कोई जादू किया था?’’ कबीर के वाक्य खत्म करने से पहले ही माया ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘नहीं माया, ऐसा कुछ नहीं है, तुम़ गलत समझ रही हो।’’
‘‘तो फिर सच क्या है?’’
‘‘सच ये है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ; और तुम भी मुझसे प्यार करती हो।’’ कबीर ने कॉ़फी का मग छोड़कर माया का हाथ थामा।
‘‘ये सच नहीं है कबीर; तुम प्रिया को चीट कर रहे हो।’’ माया ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया।
‘‘और तुम ख़ुद को चीट कर रही हो माया।’’ कबीर ने माया की आँखों में झाँका।
‘‘कबीर, लेट्स गेट बैक टू वर्क; मुझे बहुत से काम करने हैं।’’ कबीर से ऩजरें चुराती हुई माया अचानक से उठ खड़ी हुई; वह उस विषय पर कबीर से और बात नहीं करना चाहती थी।
मगर ऑफिस लौटकर माया का मन काम में नहीं लगा; वह बस यूँ ही फाइलों के पन्ने उलटती-पलटती रही।
‘‘माया! लुकिंग अपसेट; क्या हुआ?’’
माया ने ऩजर उठाकर देखा। सामने निशा थी।
‘‘कुछ नहीं बस ऐसे ही।’’ माया ने एक फाइल पर ऩजर जमाते हुए व्यस्त होने का अभिनय किया।
‘‘तुम्हारे और कबीर के बीच क्या चल रहा है? इतना खिंचे-खिंचे क्यों रहते हो एक-दूसरे से?’’ निशा ने प्रश्न किया।
‘‘ऐसा कुछ नहीं है निशा, वी आर गुड फ्रेंड्स।’’
‘‘जस्ट फ्रेंड्स?’’ निशा ने मुस्कुराकर पूछा। उसकी मुस्कान में एक शरारत छुपी थी।
‘‘क्या कहना चाहती हो निशा?’’ हालाँकि माया निशा का आशय समझ रही थी।
‘‘बनो मत माया; तुम जानती हो, कबीर इ़ज इन लव विद यू।’’
‘‘हाउ डू यू नो?’’ माया ने खीझते हुए पूछा।
‘‘हर कोई जानता है माया... कबीर के चेहरे पर लिखा है, बड़े बड़े कैपिटल लेटर्स में– ही इ़ज इन लव विद माया।’
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‘‘निशा..!’’ माया कुछ और खीझ उठी।
‘‘कितना क्यूट और हैंडसम है कबीर; तुम उसे एक चांस क्यों नहीं देती; आई टेल यू, ही विल वरशिप द फ्लोर यू वॉक ऑन।’’ निशा ने माया के गले में बाँह डालते हुए कहा।
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